इलाहाबाद हाई कोर्ट (लखनऊ खंडपीठ) ने हलफनामे की शपथ दिलाने की वर्तमान प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए हैं, जिसमें शपथ सिर्फ इलाहाबाद या लखनऊ में ही करवाई जाती है, स्थानिक क्षेत्राधिकार के अनुसार। कोर्ट ने फोटो पहचान केंद्रों पर लगाए जा रहे अतिरिक्त शुल्क की वैधता पर भी सवाल किया है।
यह मुद्दा रिट - सी संख्या 3389 / 2025 में सामने आया, जिसमें एम/एस राजधानी इंटर स्टेट ट्रांसपोर्ट कंपनी, नई दिल्ली ने उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य के खिलाफ याचिका दायर की थी। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील तुषार मित्तल ने बताया कि उन्हें एक अतिरिक्त हलफनामा दायर करने के लिए स्थगन (adjournment) लेना पड़ा, क्योंकि हलफनामा देने वाला व्यक्ति लखनऊ जाकर फोटो पहचान और शपथ नहीं दिला पाया।
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इस पर न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने सीधा लेकिन अहम सवाल किया:
“हलफनामा उस स्थान पर जहां हलफनामाकार (deponent) रहता है, वहाँ **नोटरी पब्लिक के समक्ष नोटरीज एक्ट, 1952 के तहत शपथ दिलाकर क्यों नहीं दायर किया जा सकता?”
याचिकाकर्ता की ओर से एक लिखित नोट के माध्यम से बताया गया कि भले ही नोटरीज एक्ट, 1952 के तहत हलफनामा शपथ दिलाने पर कोई रोक नहीं है, लेकिन व्यवहार में हाई कोर्ट की रजिस्ट्री केवल उन्हीं हलफनामों को स्वीकार करती है जो कि अध्याय IV के अंतर्गत नियुक्त ओथ कमिश्नर के समक्ष शपथ दिलाए गए हों। इसके अलावा, फोटो केंद्र में फोटो खिंचवाकर पहचान सत्यापित करवाना भी अनिवार्य कर दिया गया है।
कोर्ट ने इस विरोधाभास को गंभीरता से लिया।
“हर दिन इस कोर्ट के समक्ष आने वाले उन वादकारियों को असुविधा होती है जो इलाहाबाद या लखनऊ जाकर फोटो केंद्र में हलफनामा शपथ दिलवाते हैं, जबकि यह प्रक्रिया नोटरीज एक्ट के प्रावधानों के विपरीत है और **इलाहाबाद हाई कोर्ट नियमों के अध्याय IV नियम 3 द्वारा प्रदत्त शक्तियों से परे प्रतीत होती है।”
— न्यायमूर्ति पंकज भाटिया
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कोर्ट ने पूर्व में दिए गए निर्णय सज्जन कुमार बनाम सी.एल. वर्मा व अन्य: AIR 2006 All 36 का भी हवाला दिया जिसमें इसी मुद्दे को उठाया गया था।
कोर्ट ने केवल शपथ प्रक्रिया ही नहीं बल्कि वादकारियों पर वित्तीय बोझ को भी गंभीरता से लिया। एक ऑफिस मेमोरेंडम के अनुसार, फोटो पहचान का अधिकार बार एसोसिएशन को सौंपा गया है, जो रु.125/- शुल्क वसूल सकती है। लेकिन इसके अलावा रु.400/- अतिरिक्त शुल्क लिया जा रहा है, जो सीधे फोटो हलफनामा केंद्र के वकील के खाते में जाता है।
“प्रथम दृष्टया, उक्त राशि की वसूली किसी कानून द्वारा अनुमोदित नहीं है, न ही यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 265 के अनुरूप है।”
— न्यायमूर्ति भाटिया
इस मामले की गहराई से जांच के लिए कोर्ट ने वकील तुषार मित्तल को अमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) नियुक्त किया है। उन्हें याचिका व अपनी लिखित टिप्पणी की एक प्रति अधिवक्ता श्री गौरव मेहरोत्रा को सौंपने का निर्देश दिया गया है, जो हाई कोर्ट की ओर से उपस्थित होंगे। श्री मेहरोत्रा को यह बताने के लिए भी कहा गया है कि इन शुल्कों को लगाने का औचित्य क्या है, और साथ ही संबंधित कार्यालय ज्ञापन प्रस्तुत करें।
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इसके अलावा, हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को भी निर्देशित किया गया है कि वे उन सभी कार्यालय ज्ञापनों को पेश करें, जिनके आधार पर यह शुल्क वसूला जा रहा है और जो बार एसोसिएशन को दिए जाते हैं।
“यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जिसे तय करना आवश्यक है।”
— न्यायमूर्ति पंकज भाटिया
कोर्ट ने इस विषय पर आगे की सुनवाई के लिए मामले को 29 अप्रैल, 2025 को सूचीबद्ध किया है, ताकि हलफनामा शपथ प्रक्रिया और शुल्क की वैधता पर स्पष्ट निर्णय लिया जा सके।