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चेक संख्या, तिथि और राशि के बिना बैंक स्लिप साक्ष्य नहीं: धारा 146 एनआई एक्ट के तहत केरल हाईकोर्ट का फैसला

Shivam Y.

केरल हाईकोर्ट ने फैसला दिया कि यदि बैंक स्लिप में चेक संख्या, तिथि और राशि का उल्लेख नहीं है, तो वह एनआई एक्ट की धारा 146 के तहत साक्ष्य नहीं मानी जाएगी।

चेक संख्या, तिथि और राशि के बिना बैंक स्लिप साक्ष्य नहीं: धारा 146 एनआई एक्ट के तहत केरल हाईकोर्ट का फैसला

केरल हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि यदि किसी बैंक स्लिप या डिसऑनर मेमो में चेक की संख्या, तिथि और राशि स्पष्ट रूप से नहीं दी गई हो, तो उसे नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 146 के तहत साक्ष्य नहीं माना जा सकता। यह निर्णय अब्दुल रहीम बनाम सुकु एस एवं अन्य (सीआरएल.ए. नंबर 553/2014) के केस में सुनाया गया।

यह फैसला न्यायमूर्ति ए. बधरुद्दीन ने सुनाया, जिन्होंने कहा:

“एनआई एक्ट की धारा 146 बैंक की स्लिप को चेक के अमान्य होने का प्राथमिक साक्ष्य मानती है। लेकिन इस धारा को लागू करने के लिए जरूरी है कि बैंक स्लिप में उस अमान्य चेक की संख्या, तिथि और राशि स्पष्ट रूप से दर्ज हो।”

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यह मामला ₹1,46,000 के एक चेक से जुड़ा था, जो आरोपी ने शिकायतकर्ता अब्दुल रहीम के पक्ष में जारी किया था। फंड की कमी के कारण यह चेक बाउंस हो गया और शिकायतकर्ता ने धारा 138 एनआई एक्ट के तहत मामला दर्ज किया। परंतु ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया क्योंकि डिसऑनर मेमो और सूचना मेमो में चेक संख्या का उल्लेख नहीं था।

हाईकोर्ट ने पाया कि शिकायतकर्ता ने बैंक मैनेजर को गवाह के रूप में बुलाने की याचिका दाखिल की थी, ताकि वह चेक के अमान्य होने को प्रमाणित कर सकें। लेकिन ट्रायल कोर्ट ने यह याचिका अस्वीकार कर शिकायतकर्ता को उचित मौका नहीं दिया।

“ट्रायल कोर्ट ने शिकायतकर्ता को साक्ष्य प्रस्तुत करने का उचित अवसर नहीं दिया,” हाईकोर्ट ने कहा।

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न्यायमूर्ति बधरुद्दीन ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल डिसऑनर मेमो पेश करना पर्याप्त नहीं है, जब तक कि उसमें अमान्य चेक के सटीक विवरण न दिए गए हों। यदि आवश्यक विवरण नहीं है, तो शिकायतकर्ता को बैंक अधिकारी को बुलाने का पूरा अवसर दिया जाना चाहिए।

इन तथ्यों के आधार पर केरल हाईकोर्ट ने बरी करने का आदेश रद्द कर दिया और मामले को ट्रायल कोर्ट को वापस भेज दिया, ताकि शिकायतकर्ता बैंक मैनेजर को गवाही के लिए बुला सके और जरूरी दस्तावेज पेश कर सके।

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“शिकायतकर्ता को साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर देने हेतु मैं निर्णय को रद्द करने के पक्ष में हूं,” न्यायाधीश ने कहा।

शिकायतकर्ता अब्दुल रहीम, स्वागथ फ्यूल्स (इंडियन ऑयल डीलर) के प्रोपराइटर हैं। उनकी ओर से एडवोकेट पी.बी. सहस्रनामन, टी.एस. हरिकुमार और के. जगदीश ने पक्ष रखा। वहीं, अभियोजन की ओर से सीनियर पब्लिक प्रॉसिक्यूटर रेंजीत जॉर्ज उपस्थित रहे।

हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि अब्दुल रहीम को 1 जुलाई 2025 को सुबह 11 बजे ट्रायल कोर्ट में उपस्थित होना होगा, और यह आदेश 10 दिनों के भीतर ट्रायल कोर्ट को भेजने के निर्देश दिए गए हैं।

केस का शीर्षक: अब्दुल रहीम बनाम सुकू एस एंड अन्य

केस संख्या: सीआरएल.ए संख्या 553 ऑफ 2014

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