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दिल्ली हाईकोर्ट: आर्म्स एक्ट के तहत अभियोजन स्वीकृति के बिना दायर चार्जशीट अधूरी नहीं, धारा 187(3) बीएनएसएस के तहत डिफॉल्ट बेल का अधिकार नहीं

Shivam Y.

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि आर्म्स एक्ट के तहत स्वीकृति के बिना चार्जशीट अधूरी नहीं मानी जाएगी। बीएनएसएस की धारा 187(3) के तहत डिफॉल्ट बेल नहीं दी जा सकती। पूरा कानूनी अपडेट पढ़ें।

दिल्ली हाईकोर्ट: आर्म्स एक्ट के तहत अभियोजन स्वीकृति के बिना दायर चार्जशीट अधूरी नहीं, धारा 187(3) बीएनएसएस के तहत डिफॉल्ट बेल का अधिकार नहीं

दिल्ली हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि आर्म्स एक्ट, 1959 के तहत अभियोजन की स्वीकृति के बिना दायर चार्जशीट को अधूरी नहीं माना जाएगा और आरोपी को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 187(3) के तहत डिफॉल्ट बेल (स्वतः जमानत) का अधिकार नहीं है।

न्यायमूर्ति तेजस कारिया ने सुरज कनोजिया बनाम राज्य सरकार एनसीटी दिल्ली मामले में बेल याचिका पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि आर्म्स एक्ट की धारा 39 के तहत स्वीकृति प्राप्त करना अभियोजन के लिए अनिवार्य है, लेकिन यदि जांच एजेंसी बिना इस स्वीकृति के चार्जशीट दाखिल करती है, तो उसे अधूरी नहीं माना जाएगा। कोर्ट ने कहा:

“जांच एजेंसी द्वारा आर्म्स एक्ट की धारा 39 के तहत स्वीकृति के बिना दायर की गई चार्जशीट अधूरी नहीं मानी जाएगी और बीएनएसएस की धारा 187(3) के तहत डिफॉल्ट बेल के अधिकार का आधार नहीं बनती।”

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मामले में यह आरोप था कि आरोपी सुरज कनोजिया ने तीन अन्य सह-आरोपियों के साथ मिलकर शिकायतकर्ता के घर पर गोली चलाई। घटनास्थल से कारतूस बरामद किए गए और सीसीटीवी फुटेज में पूरा घटनाक्रम रिकॉर्ड हुआ। आरोपी फरार था और बाद में एक अन्य मामले में गिरफ्तारी के बाद पूरक चार्जशीट दायर की गई।

याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि आर्म्स एक्ट की धारा 39 के तहत स्वीकृति न होने से चार्जशीट अधूरी थी और इसी आधार पर आरोपी को डिफॉल्ट बेल का अधिकार है। उन्होंने सतेंदर कुमार अंतिल बनाम सीबीआई और एम. रविंद्रन बनाम इंटेलिजेंस ऑफिसर जैसे सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया।

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हालांकि, हाईकोर्ट ने इन दलीलों को खारिज करते हुए जजबीर सिंह बनाम एनआईए (2023) और सुरेश कुमार जैन बनाम महाराष्ट्र राज्य जैसे मामलों पर भरोसा करते हुए कहा:

“स्वीकृति लेना केवल अभियोग की प्रक्रिया का हिस्सा है, न कि जांच पूरी करने का। स्वीकृति के बिना दायर की गई चार्जशीट को अधूरी नहीं कहा जा सकता।”

कोर्ट ने पाया कि चार्जशीट बीएनएसएस की धारा 187(3) के तहत निर्धारित 90 दिनों की अवधि में दाखिल की गई थी, इसलिए याचिकाकर्ता को डिफॉल्ट बेल का अधिकार नहीं था।

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इसके अतिरिक्त, जब कोर्ट ने याचिकाकर्ता की नियमित जमानत याचिका (धारा 483 बीएनएसएस के तहत) पर विचार किया, तो उसने शिकायतकर्ता का सीसीटीवी फुटेज, बरामद कारतूस और आरोपी की सक्रिय भूमिका को ध्यान में रखते हुए कहा:

“आरोप गंभीर हैं और अभियोजन के गवाहों को प्रभावित करने की आशंका है। आरोपी के अन्य मामलों में शामिल होने का भी रिकॉर्ड है, जिससे उसके फिर से अपराध करने की संभावना बनती है।”

अंततः, कोर्ट ने जमानत याचिका खारिज कर दी।

केस का शीर्षक: सूरज कनौजिया बनाम एनसीटी दिल्ली राज्य सरकार

केस नं.: जमानत आवेदन 1713/2025

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