11 जून 2025 को दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया जिसमें समयपूर्व रिहाई से संबंधित मामलों में सज़ा समीक्षा बोर्ड (SRB) की कार्यप्रणाली में सुधार का निर्देश दिया गया। कोर्ट ने इस बात पर आपत्ति जताई कि बोर्ड के सदस्य व्यक्तिगत रूप से बैठकों में शामिल नहीं होते और केवल अपने प्रतिनिधियों को भेज देते हैं, जिससे प्रक्रिया की गंभीरता कम हो जाती है।
न्यायमूर्ति गिरीश कथपालिया, जो कि आजीवन कारावास भुगत रहे विक्रम यादव के मामले की सुनवाई कर रहे थे, ने पाया कि 2020 से 2023 तक की SRB बैठक की कार्यवाही “कॉपी-पेस्ट” प्रतीत होती है। अदालत ने कहा कि ऐसे यांत्रिक निर्णय न्याय में सुधार की भावना को कमजोर करते हैं।
“SRB मानव जीवन से जुड़ा मामला है… इसका दृष्टिकोण सुधार पर केंद्रित होना चाहिए, न कि केवल आंकड़ों या औपचारिकताओं पर।”
विक्रम यादव, जो आईपीसी की कई धाराओं में दोषी हैं, उन्होंने 21 साल से अधिक की सज़ा (रिहाई की छूट सहित) पूरी कर ली है। उनकी याचिकाएं लगातार खारिज होती रहीं, मुख्य रूप से 2010 में पैरोल से भागने और अपराध की गंभीरता को आधार बनाकर। हालांकि, बाद में उन्हें उन दो नए मामलों में बरी कर दिया गया जिनमें 2015 में दोबारा गिरफ्तार किया गया था।
कोर्ट ने SRB की वर्तमान संरचना की कड़ी आलोचना की। न्यायालय ने कहा कि मंत्री, गृह सचिव और विधि सचिव जैसे सदस्य व्यक्तिगत रूप से व्यवहार या सुधार परखने में सक्षम नहीं होते। कोर्ट ने सुझाव दिया कि SRB में शामिल किए जाएं:
- वही न्यायिक अधिकारी (या उनका उत्तराधिकारी) जिसने सज़ा सुनाई थी
- एक प्रमुख समाजशास्त्री और अपराध विज्ञान विशेषज्ञ, जिनकी सोच सुधारात्मक हो
- संबंधित जेल अधीक्षक, जो कैदी के व्यवहार को नजदीक से देख चुका हो
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“SRB की संरचना सदस्य के पद के बजाय, जेल में कैदी के प्रदर्शन और सदस्य की भूमिका के बीच के संबंध पर आधारित होनी चाहिए।”
निर्णय प्रक्रिया के बारे में कोर्ट ने कहा कि केवल ‘हां’ या ‘ना’ का जवाब न्यायसंगत नहीं हो सकता। इसके लिए SRB को चाहिए कि:
- अपराध के पक्ष और विपक्ष की तुलना करे
- अगर रिहाई के लिए समय सही नहीं है, तो कैदी को पहले अर्ध-खुली जेल, फिर खुली जेल में स्थानांतरित किया जाए
- रिहा करते समय निगरानी जैसे निर्देश भी जोड़े जा सकते हैं, जैसे कि पुलिस थाने में साप्ताहिक उपस्थिति
“ऐसे क्रमिक बदलाव कैदी को स्वतंत्रता का अहसास देंगे और उसमें सुधार की प्रेरणा जगाएंगे।”
विक्रम यादव ने अपनी तरफ से जेल में अच्छे आचरण और गतिविधियों के प्रमाण प्रस्तुत किए, जिसमें उन्हें कोविड काल में प्रशासन में मदद, योग कोर्स और कंप्यूटर सीखने के प्रमाण पत्र मिले। कोर्ट ने कहा कि ये सुधार के ठोस संकेत हैं और इन्हें नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
पुलिस द्वारा उनकी रिहाई पर आपत्ति पर कोर्ट ने कहा:
“हर याचिका का पुलिस द्वारा स्वाभाविक विरोध आवश्यक नहीं है।”
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हालांकि कोर्ट ने तुरंत रिहाई का आदेश नहीं दिया, लेकिन SRB को चार सप्ताह के भीतर 2004 की नीति के तहत पुनः विचार करने का निर्देश दिया।
“SRB का निर्णय ऐसा होना चाहिए जिससे यह स्पष्ट हो सके कि बोर्ड ने क्या सोचकर निर्णय लिया।”
केस का शीर्षक: विक्रम यादव बनाम दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की राज्य सरकार
केस संख्या: डब्ल्यू.पी.(सीआरएल) 3429/2024