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दिल्ली हाईकोर्ट ने तलाक बरकरार रखा, पत्नी द्वारा वैवाहिक संबंधों से इनकार और बेटे को दूर करने को माना क्रूरता

Shivam Y.

x & y - दिल्ली उच्च न्यायालय ने तलाक को बरकरार रखा, तथा 2008 से पत्नी द्वारा वैवाहिक संबंधों से इनकार करने और माता-पिता द्वारा जानबूझकर अलगाव को मानसिक क्रूरता बताया।

दिल्ली हाईकोर्ट ने तलाक बरकरार रखा, पत्नी द्वारा वैवाहिक संबंधों से इनकार और बेटे को दूर करने को माना क्रूरता

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में पति को 2021 में पारिवारिक अदालत द्वारा दिए गए तलाक को बरकरार रखा है। अदालत ने माना कि पत्नी द्वारा लंबे समय तक साथ रहने से इनकार करना और बेटे को पिता से जानबूझ

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पृष्ठभूमि

मार्च 1990 में संपन्न हुई इस शादी से एक बेटा, राहुल, पैदा हुआ। पति के अनुसार 2008 के बाद पत्नी ने सभी शारीरिक संबंध बंद कर दिए, बार-बार ससुराल छोड़ दी, और परिवार पर संपत्ति अपने नाम करने का दबाव डाला। पति ने 2009 में तलाक का मुकदमा दायर करने के बाद पत्नी ने कई एफआईआर दर्ज कराईं, जिनमें उत्पीड़न, मारपीट और दहेज मांगने के आरोप थे।

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तीस हजारी स्थित पारिवारिक न्यायालय ने सितंबर 2021 में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(ia) के तहत क्रूरता के आधार पर विवाह को भंग कर दिया था। पत्नी ने इस निष्कर्ष को चुनौती दी, आरोपों को बढ़ा-चढ़ाकर बताया और जोर देकर कहा कि एफआईआर वास्तविक शिकायतें थीं, न कि प्रतिवाद।

अदालत की टिप्पणियाँ

पीठ ने गवाही और जिरह के दौरान आए वर्षों के रिकॉर्ड को ध्यान से देखा। पत्नी के अपने बयानों ने अदालत का ध्यान खींचा। उसने अदालत में स्वीकार किया,

“मैं और प्रतिवादी 2008 से पति-पत्नी की तरह कोई शारीरिक संबंध नहीं रख रहे हैं।” उसने यह भी कहा कि उसका अंतिम करवाचौथ 2008 में हुआ था।

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न्यायाधीशों ने कहा कि जबकि झगड़े और कभी-कभार विवाद वैवाहिक जीवन का सामान्य हिस्सा हैं, बिना कारण पति-पत्नी के रिश्तों से पूरी तरह इनकार करना क्रूरता की श्रेणी में आता है। सुप्रीम कोर्ट के विनीता सक्सेना बनाम पंकज पंडित मामले का हवाला देते हुए पीठ ने याद दिलाया कि "बिना यौन संबंधों के विवाह एक अभिशाप है।"

अदालत के लिए उतना ही चिंताजनक था यह तथ्य कि पत्नी ने बेटे को पिता से दूर कर दिया। मुलाक़ात के अधिकार मिलने के बावजूद पिता ने गवाही दी कि बेटा उससे बात तक नहीं करता। पीठ ने पहले के फैसलों का हवाला दिया जिसमें कहा गया है कि बच्चे को जानबूझकर एक माता-पिता से दूर करना मानसिक क्रूरता का सबसे गंभीर रूप है।

अदालत ने यह भी नोट किया कि पत्नी ने अपनी बूढ़ी सास के प्रति उदासीनता दिखाई। उसने यहां तक कह दिया कि उसे सास की उम्र, उनकी चलने-फिरने की समस्या या 2012 में हुई हिप सर्जरी के बारे में जानकारी नहीं है।

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न्यायाधीशों ने कहा,

"ऐसा व्यवहार पति और उसके परिवार के लिए अनावश्यक पीड़ा का कारण बना।" भारतीय पारिवारिक परिवेश में बुजुर्गों की देखभाल करना वैवाहिक दायित्व का हिस्सा माना जाता है।

पत्नी द्वारा दर्ज कराई गई आपराधिक शिकायतों पर पीठ ने सावधानी बरती। अदालत ने माना कि कई एफआईआर दर्ज हुईं, लेकिन उनका समय तलाक की अर्जी के बाद इन्हें प्रतिशोधात्मक दिखाता है। आदेश में कहा गया,

"इन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, लेकिन इनका संदर्भ बताता है कि ये असली शिकायतें कम और तलाक की कार्यवाही का जवाब अधिक थीं।"

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फैसला

आख़िर में पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि लगातार वैवाहिक संबंधों से इनकार, बार-बार घर छोड़ना, मुकदमे के बाद शिकायतें करना, बेटे को पिता से दूर करना और बुजुर्ग ससुराल वालों के प्रति उदासीनता-ये सब मिलकर क्रूरता की श्रेणी में आते हैं।

पत्नी की अपील खारिज करते हुए अदालत ने तलाक को बरकरार रखा। पीठ ने कहा,

"लंबे समय तक वैवाहिक निकटता से इनकार, नाबालिग बेटे को दूर करना और ससुराल के माता-पिता के प्रति उदासीनता-ये सब मिलकर पति और उसके परिवार को मानसिक पीड़ा देने वाली स्थायी क्रूरता सिद्ध करते हैं।"

इस तरह तिस हजारी पारिवारिक अदालत द्वारा 2021 में दिया गया तलाक आदेश बरकरार रहा और विवाह कानूनी रूप से भंग हो गया।

केस का शीर्षक:- X और Y

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