जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में NDPS अधिनियम की धारा 8/15 के तहत दर्ज एक मामले में दो आरोपियों को बरी करने के ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। यह मामला एक तेल टैंकर से पोपी स्ट्रॉ (अफीम डंठल) बरामदगी का था, लेकिन अभियोजन पक्ष द्वारा जांच में कई गंभीर चूक—जैसे कि नमूने गायब होना, गवाहों के बयान में विरोधाभास और जब्त वस्तुओं की सुरक्षित रखवाली में विफलता—इसका कारण बनी।
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मामले की पृष्ठभूमि
यह घटना 18 फरवरी 2010 की है, जब बटोटे पुलिस थाने की एक नाका पार्टी ने श्रीनगर से जम्मू की ओर आ रहे एक तेल टैंकर को रोका। जांच के दौरान, पुलिस ने वाहन के केंद्रीय चैंबर में 18 बोरे पोपी स्ट्रॉ पाए।
वाहन में सवार गुरमीत सिंह (चालक) और राजविंदर सिंह (कंडक्टर) को हिरासत में लिया गया। बरामदगी के बाद, सब-इंस्पेक्टर मकसूद अहमद ने हेड कांस्टेबल अब्दुल रशीद के माध्यम से पुलिस स्टेशन को डाकेट भेजा, जिस पर NDPS अधिनियम की धारा 8/15 के तहत एफआईआर दर्ज की गई।
इस मामले की जांच तत्कालीन एसएचओ इंस्पेक्टर गुलाम नबी मीर ने की। उन्होंने दावा किया कि हर बोरे से एक-एक नमूना, कुल 18 नमूने, लिए गए जिन्हें नायब तहसीलदार अब्दुल रशीद राथर द्वारा री-सील कर फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (FSL) भेजा गया।
मामला सेशंस जज, रामबन की अदालत में चला, जिसने दोनों आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए। अभियोजन पक्ष ने कुल नौ गवाहों को पेश किया, जिनमें पुलिसकर्मी, फोरेंसिक विशेषज्ञ और कार्यपालक मजिस्ट्रेट शामिल थे।
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हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने पाया कि अभियोजन की कहानी में कई अहम खामियां थीं:
- नमूनों की संख्या पर अस्पष्टता: जहाँ जांच अधिकारी ने 18 नमूने भेजने की बात कही, वहीं FSL को केवल 9 नमूने ही मिले। कोर्ट ने कहा: “यह स्पष्ट नहीं किया गया कि बाकी 9 नमूनों का क्या हुआ। जांच अधिकारी इस मुद्दे पर चुप हैं।”
- मुख्य गवाहों के बयान नहीं लिए गए: पुलिस ने दो मजदूरों के बयान नहीं लिए जिन्होंने जब्त बोरे वाहन में लादने में मदद की थी। हाईकोर्ट ने कहा: “ये मजदूर स्वतंत्र गवाह थे और इनका बयान अभियोजन के लिए अहम था, जिसे पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया।”
- सुरक्षित रखवाली साबित करने में विफलता: नमूनों को मलक़ाना (पुलिस एविडेंस रूम) में जमा करने की बात कही गई, लेकिन ना तो मलक़ाना रजिस्टर पेश किया गया और ना ही इंचार्ज को गवाही के लिए बुलाया गया। कोर्ट ने टिप्पणी की: “नमूनों की सुरक्षित रखवाली पर संदेह उत्पन्न होता है। यदि मलक़ाना रजिस्टर पेश किया गया होता, तो उसमें नमूने जमा करने और वापस लेने का दिन और समय स्पष्ट होता।”
- नमूनों को दोबारा सील करने में देरी: कार्यपालक मजिस्ट्रेट, जो बरामदगी के समय मौके पर मौजूद थे, ने अगले दिन अपने कार्यालय में नमूनों को सील किया। कोर्ट ने पूछा कि जब वे वहीं मौजूद थे तो मौके पर ही सीलिंग क्यों नहीं की गई?
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जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी और तर्क दिया कि बरामदगी प्रक्रिया सही तरीके से की गई और पर्याप्त सबूत मौजूद थे। लेकिन न्यायमूर्ति संजीव कुमार और न्यायमूर्ति पुनीत गुप्ता की पीठ ने अपील खारिज कर दी।
3 अप्रैल 2025 को दिए गए मौखिक आदेश में हाईकोर्ट ने कहा:
“रिकॉर्ड पर उपलब्ध सबूत आरोपियों को अपराध से नहीं जोड़ते। अभियोजन पक्ष कोई ठोस और विश्वसनीय साक्ष्य प्रस्तुत करने में विफल रहा है।”
अपील को खारिज करते हुए, न्यायालय ने निम्नलिखित मुख्य बिंदुओं पर जोर दिया:
- जब्त वस्तुओं की सुरक्षित रखवाली प्रमाणित नहीं की गई।
- मौके पर मौजूद स्वतंत्र गवाहों को शामिल नहीं किया गया।
- मलक़ाना में नमूनों की जमा और वापसी की कोई दस्तावेजी पुष्टि नहीं की गई।
न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा:
“जिस प्रकार से अभियोजन पक्ष ने कार्यवाही की, वह हमें ट्रायल कोर्ट के दृष्टिकोण को स्वीकार करने के लिए बाध्य करता है।”
उपस्थिति:
पी.डी. सिंह, उप महाधिवक्ता, याचिकाकर्ता के वकील
ए.के. शान, प्रतिवादियों के वकील
केस-शीर्षक: जम्मू और कश्मीर राज्य बनाम गुरमीत सिंह और अन्य, 2025