जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख के उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि केवल क्राइम ब्रांच की क्लीयरेंस लंबित होने के आधार पर सेवानिवृत्ति लाभ रोके नहीं जा सकते, विशेष रूप से तब जब संबंधित FIR पहले ही बंद हो चुकी हो।
न्यायमूर्ति राजेश सेखरी की एकल पीठ ने यह माना कि भले ही FIR की जांच चल रही हो, यह “न्यायिक कार्यवाही” नहीं मानी जा सकती और इसलिए इस आधार पर सेवानिवृत्ति लाभ को रोका नहीं जा सकता। कोर्ट ने संबंधित प्राधिकरण को बकाया भुगतान ब्याज सहित जारी करने का निर्देश दिया।
“FIR जांच की लंबितता न्यायिक कार्यवाही के बराबर नहीं मानी जा सकती और इसके आधार पर किसी कर्मचारी को उनके सेवानिवृत्ति लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता।”
Read Also:- दूसरी पत्नी को नामित किए जाने पर अनुकंपा नियुक्ति का हक़: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट
मामले की पृष्ठभूमि
प्रेम कुमार, जो जम्मू और कश्मीर कोऑपरेटिव सप्लाई एंड मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड (JAKFED) में स्टोरकीपर के पद से 2011 में सेवानिवृत्त हुए थे, को 1995 में अनाज की गड़बड़ी के एक मामले में FIR में नामजद किया गया था। यह FIR बाद में सतर्कता विभाग द्वारा “सिद्ध नहीं” करार देकर बंद कर दी गई और इसका क्लोजर रिपोर्ट भ्रष्टाचार-निरोधी अदालत द्वारा स्वीकार कर लिया गया था।
2019 में, सरकार ने JAKFED को समाप्त करने की प्रक्रिया शुरू की और एक लिक्विडेटर को नियुक्त किया गया ताकि देनदारियों और संपत्तियों का मूल्यांकन हो सके तथा पूर्व कर्मचारियों के बकाया भुगतान किए जा सकें। लेकिन प्रेम कुमार के मामले में ₹4 लाख बकाया होने का दावा करते हुए सार्वजनिक सूचना प्रकाशित की गई। प्रेम कुमार ने इसका जवाब ‘नो ड्यूज’ सर्टिफिकेट और ₹8.4 लाख के अपने दावे के साथ दिया।
उचित जवाब नहीं मिलने पर प्रेम कुमार ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
प्रेम कुमार ने कहा कि उन्होंने सभी आवश्यक दस्तावेज जमा कर दिए थे और पूरे सहयोग के बावजूद भी उनके सेवानिवृत्ति लाभ जारी नहीं किए गए। उन्होंने संजय भगत बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर मामले का हवाला देते हुए कहा कि केवल लंबित जांच के आधार पर भुगतान को रोका नहीं जा सकता।
वहीं, सरकार की ओर से कहा गया कि प्रेम कुमार पर ₹4 लाख की देनदारी पहले की गड़बड़ी के कारण है और SRO 233/1988 के अनुसार कोऑपरेटिव संस्थानों के कर्मचारियों के लिए क्राइम ब्रांच की क्लीयरेंस जरूरी है। उन्होंने यह भी कहा कि प्रेम कुमार ने 23 सितंबर 2023 को प्रकाशित सार्वजनिक सूचना का पालन नहीं किया।
कोर्ट ने कहा कि प्रेम कुमार की सेवा 2011 में समाप्त हो गई थी और उनका बकाया भुगतान 2014 में स्वीकृत किया गया था। FIR भी पहले ही बंद हो चुकी थी और कोर्ट द्वारा स्वीकार कर ली गई थी। इसलिए ऐसा कोई आधार नहीं था जिससे उनके रिटायरमेंट लाभ को रोका जाए।
“ऐसे हालात में सेवानिवृत्ति लाभ रोकना संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 21 का उल्लंघन होगा।”
ग़ुलाम मोही-उद-दीन लोन बनाम राज्य जम्मू और कश्मीर केस का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि FIR जांच न्यायिक कार्यवाही नहीं होती और इसका आधार बनाकर लाभ नहीं रोका जा सकता। कोर्ट ने यह भी माना कि जुलाई 2023 में सरकार ने सभी JAKFED कर्मचारियों के लंबित दावों को क्लियर करने का निर्णय पहले ही ले लिया था।
Read also:- सर्वोच्च न्यायालय: रेस जुडिकाटा एक ही मामले के विभिन्न चरणों पर लागू होता है, न कि केवल अलग-अलग कार्यवाही पर
अंततः कोर्ट ने यह भी कहा कि क्राइम ब्रांच की क्लीयरेंस सेवानिवृत्ति लाभ के लिए अनिवार्य नहीं है, खासकर तब जब FIR पहले ही बंद हो चुकी हो।
“जब FIR बंद हो चुकी हो और कोई न्यायिक प्रक्रिया लंबित न हो, तब क्राइम ब्रांच क्लीयरेंस की शर्त कानूनी रूप से मान्य नहीं हो सकती।”
कोर्ट ने याचिका को मंजूर करते हुए सभी लंबित सेवानिवृत्ति लाभों का ब्याज सहित भुगतान करने का आदेश दिया।
निर्णय दिनांक: 26 मई 2025
मामला संख्या: WP(C) No. 2279/2024
याचिकाकर्ता की वकील: श्रीमती शिवानी जलाली
प्रतिवादियों की वकील: श्री पी.डी. सिंह (उप महाधिवक्ता), सुश्री सगीरा जाफर (वरिष्ठ एएजी श्रीमती मोनिका कोहली की ओर से)