केरल हाईकोर्ट ने सिविल प्रक्रिया कानून के एक महत्वपूर्ण पहलू को स्पष्ट करते हुए कहा है कि इंटरोगेटरी (Interrogatories) — यानी मुकदमे के दौरान एक पक्ष द्वारा दूसरे पक्ष से किए गए लिखित प्रश्न — का उपयोग जानकारी जुटाने या अनियंत्रित जांच के लिए नहीं किया जा सकता। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसे प्रश्न केवल उस पक्ष के पक्ष में मामले को मजबूत करने के उद्देश्य से होने चाहिए, और इनकी वैधता ‘पूर्वाग्रह की कसौटी’ पर तय की जाएगी।
यह मामला एक ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती देने से संबंधित था, जिसमें वादी को प्रतिवादी से पूछताछ करने की अनुमति दी गई थी। न्यायमूर्ति के बाबू ने इस याचिका को खारिज कर दिया और निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा।
Read also:- बड़ी पीठ को भेजे गए SC के निर्णय तब तक बाध्यकारी रहते हैं जब तक निर्देश न हो: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
याचिकाकर्ता ने यह आपत्ति जताई थी कि वादी ने एक संबंधित वाद में अंतिम निर्णय और डिक्री प्रस्तुत नहीं की। लेकिन अदालत ने पाया कि उन दस्तावेजों का उपलब्ध न होना परिस्थिति में बदलाव के अंतर्गत आता है, और इससे पूछताछ के लिए नई याचिका दाखिल करने का कानूनी अधिकार प्राप्त होता है — भले ही पहले की याचिका वापस ले ली गई हो।
“वादी ने रिपोर्ट किया कि अंतिम निर्णय और डिक्री... नहीं मिल रही थी। इस बदली हुई परिस्थिति के कारण पूछताछ के लिए नई अनुमति याचिका दायर की गई। यह नहीं कहा जा सकता कि वादी दूसरी याचिका दाखिल करने से वर्जित है।”
– केरल हाईकोर्ट
अदालत ने यह भी कहा कि भारत में सिविल प्रक्रिया संहिता की आदेश XI नियम 1 के तहत पूछताछ का उद्देश्य केवल अपने पक्ष को मजबूत करना होता है, न कि यह जानना कि प्रतिपक्ष किस तरह की रणनीति अपना रहा है।
“पूछताछ का उद्देश्य यह है कि एक पक्ष अपने मुकदमे को बनाए रखने के लिए विपक्ष से जानकारी प्राप्त कर सके… इस शक्ति को सीमित दायरे में नहीं रखना चाहिए… लेकिन इसका उपयोग बहुत सतर्कता और सावधानी से होना चाहिए।”
– केरल हाईकोर्ट
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि पूछताछ का उपयोग केवल उसी जानकारी के लिए किया जा सकता है जो सीधे मुद्दे से संबंधित हो, न कि प्रतिवादी के गवाहों या साक्ष्यों की जानकारी जुटाने के लिए।
हालाँकि ट्रायल अंतिम चरण में था, अदालत ने कहा कि निर्णय का मुख्य आधार यह होगा कि पूछे गए प्रश्नों से प्रतिवादी को कोई पूर्वाग्रह तो नहीं होगा। चूंकि प्रतिवादी ने यह नहीं कहा कि उससे कोई पूर्वाग्रह होगा, इसलिए याचिका में कोई ठोस आधार नहीं पाया गया।
“अंतिम कसौटी 'पूर्वाग्रह की कसौटी' होगी। इस मामले में प्रतिवादी नं.1 ने यह नहीं कहा कि पूछे गए प्रश्नों से उसे कोई पूर्वाग्रह होगा… पूछताछ केवल उसी विषय से संबंधित है जो विचाराधीन है।”
– केरल हाईकोर्ट
इन्हीं कारणों से हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और याचिका खारिज कर दी।
मामला संख्या: OP(C) No. 2794 of 2019
शीर्षक: के. सी. शिवशंकर पणिक्कर बनाम के. सी. वसंथकुमारी @ के. सी. वसंथी व अन्य
न्यायाधीश: न्यायमूर्ति के बाबू
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता: आर. राजेश कोर्मथ, के. दिलीप
प्रतिवादियों के अधिवक्ता: मीना ए., विनोद रविंद्रनाथ, के. सी. किरण, एम. आर. मिनी, एम. देश, अनीश एंटनी अनाथझथ, थरीक अनवर के., और निवेधिता प्रेम वी.