राजस्थान हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि अस्थायी शिक्षक भी राजस्थान गैर-सरकारी शिक्षण संस्थान अधिनियम, 1989 की धारा 19 के तहत सेवा समाप्ति के खिलाफ अपील कर सकते हैं। न्यायमूर्ति अनूप कुमार ढंड ने कहा कि धारा 18, जो कि कर्मचारियों को हटाने, बर्खास्त करने या पदावनति के लिए प्रक्रिया तय करती है, वह नियमित और अस्थायी दोनों प्रकार के कर्मचारियों पर लागू होती है।
“1989 का अधिनियम और 1993 के नियम एक सामाजिक कानून हैं, जो स्कूल प्रबंधनों द्वारा मनमानी कार्यवाही को रोकने के लिए बनाए गए हैं,” अदालत ने टिप्पणी की।
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यह मामला तब सामने आया जब कई निजी स्कूलों की प्रबंध समितियों ने राजस्थान गैर-सरकारी शिक्षा न्यायाधिकरण के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें कई शिक्षकों की सेवा समाप्ति को रद्द कर उन्हें पुनः नियुक्त करने का निर्देश दिया गया था।
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि संबंधित शिक्षक नियत अवधि के अनुबंध पर थे और उनकी नियुक्ति नियमित चयन प्रक्रिया के माध्यम से नहीं हुई थी। इसलिए, उनके अनुसार, धारा 18 लागू नहीं होती और धारा 19 के तहत अपील भी मान्य नहीं है।
हालांकि, हाईकोर्ट ने यह तर्क खारिज कर दिया और कहा:
“धारा 2(i) के तहत 'कर्मी' शब्द में किसी भी शिक्षक या कर्मचारी को शामिल किया गया है, चाहे वह स्थायी हो या अस्थायी।”
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अदालत ने 1993 के नियम 39 और धारा 18 के संयुक्त पढ़ने पर कहा कि:
“अस्थायी कर्मचारियों की सेवाएं भी सिर्फ 6 महीने का नोटिस या उसके बदले वेतन और शिक्षा निदेशक की पूर्व अनुमति के बाद ही समाप्त की जा सकती हैं।”
महत्वपूर्ण रूप से, अदालत ने "Ubi jus ibi remedium" (जहां अधिकार है, वहां उपचार भी है) के सिद्धांत को दोहराया। अदालत ने कहा कि अस्थायी कर्मचारियों को अपील का अधिकार न देना इस मूल सिद्धांत के खिलाफ होगा।
न्यायमूर्ति ढंड ने कहा:
“इस अधिनियम का उद्देश्य स्कूल प्रबंधन की मनमानी और शोषण की नीति को रोकना है। धारा 18 की प्रक्रिया का पालन किए बिना की गई सेवा समाप्ति अवैध है और धारा 19 के तहत अपील योग्य है।”
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अंततः, राजस्थान हाईकोर्ट ने स्कूल प्रबंधनों की सभी याचिकाएं खारिज कर दीं और न्यायाधिकरण के आदेश को बरकरार रखा, जिसमें शिक्षकों को सेवा में बहाल करने का निर्देश दिया गया था।
शीर्षक: प्रबंध समिति, डी.ए.वी. उच्च माध्यमिक विद्यालय बनाम सौरभ उपाध्याय, और अन्य संबंधित याचिकाएँ