बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों में समझौता समाज के हित में नहीं होता और इस आधार पर एफआईआर को रद्द नहीं किया जा सकता। अदालत ने यह भी कहा कि अगर शिकायतकर्ता महिला बाद में अपने आरोपों से मुकरती है, तो उस पर झूठी गवाही (Perjury) का मामला चलाया जा सकता है।
यह फैसला न्यायमूर्ति विभा कंकनवाड़ी और न्यायमूर्ति संजय देशमुख की खंडपीठ ने दिया, जब दो अभियुक्त—ज्ञानेश्वर सूर्यवंशी और आकाश लाटुरे—ने उनके खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करने की याचिका दायर की थी। इन दोनों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 376D, 366, 354A, 323, 506 r/w 34 के तहत बलात्कार, अपहरण और अन्य अपराधों के आरोप लगे थे।
पीड़िता, जो कि दो बच्चों की मां है, ने 25 जनवरी 2023 को रिपोर्ट दर्ज कराई थी। उसके अनुसार, जब वह खेत से पैदल लौट रही थी, एक काली कार में बैठे व्यक्ति ने रास्ता पूछने के बहाने उसे बेहोश करने वाला पदार्थ मुँह पर फेंका और उसे जबरन कार में खींच लिया। उसके बाद उसे एक लॉज में ले जाकर उसके साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाए गए। लॉज के मालिक और कार मालिक सहित कई गवाहों के बयान इस शिकायत का समर्थन करते हैं।
बाद में, पीड़िता ने अदालत में हलफनामा देकर कहा कि वह और आरोपी पुराने दोस्त हैं और यह मामला "गलतफहमी" के चलते दर्ज हो गया। उन्होंने आपसी समझौते का हवाला देते हुए एफआईआर रद्द करने की मांग की।
“ऐसी गलतफहमी नहीं हो सकती कि कोई महिला बलात्कार का झूठा मामला दर्ज करवा दे,” अदालत ने टिप्पणी की।
पीठ ने यह भी कहा कि समझौते की शर्तें स्पष्ट नहीं हैं और पीड़िता ने यह नहीं कहा कि एफआईआर में लिखे गए तथ्य गलत थे। केवल “माफ करना चाहती हूं” कहकर इतना गंभीर मामला नहीं खत्म किया जा सकता।
“ऐसे समझौते समाज के हित में नहीं होते। इससे आरोपी पैसे या दबाव के जरिए शिकायतकर्ताओं को मना सकते हैं,” कोर्ट ने कहा।
न्यायाधीशों ने माना कि ट्रायल के दौरान शिकायतकर्ता मुकर सकती है, लेकिन ट्रायल कोर्ट के पास ऐसे मामलों में परजरी की कार्यवाही शुरू करने की शक्ति है।
इन टिप्पणियों के साथ, अदालत ने अभियुक्तों की याचिका खारिज कर दी और एफआईआर को बरकरार रखा।