भारत के सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में श्याम काली दुबे को एक हत्या के मामले में बरी कर दिया, जिन पर पहले भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत दोष साबित हुआ था। उन पर और उनके पति पर आरोप था कि उन्होंने मंदिर के पास एक व्यक्ति को डंडों से पीट-पीटकर मार डाला था। यह घटना कथित तौर पर जमीन विवाद के बाद हुई थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सबूतों की गहराई से जांच के बाद दोष सिद्ध नहीं मानते हुए सजा रद्द कर दी।
मामला
यह घटना 23 मार्च 1999 की शाम की है। मृतक ने आरोपी महिला को अपनी खेत में मवेशी चराने से रोका, जिससे कहासुनी हो गई। आरोप है कि महिला ने डंडे से मृतक को मारा। उसके बेटे और सास ने उसे मौके से ले गए, लेकिन उसने मृतक को धमकी दी कि वह अपने पति के साथ वापस आएगी।
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रात को दोनों पर मृतक की हत्या करने का आरोप लगा।
- PW-6 (डॉक्टर) ने मृतक के शरीर पर 13 चोटें पाई थीं।
- मृत्यु का कारण: सिर पर गहरी चोट और श्वसन तंत्र में खून भरने से दम घुटना।
- मृत्यु का समय: रात 10 बजे से 12 बजे के बीच, जो गवाहों के मुताबिक 7 बजे के दावे से मेल नहीं खाता।
गवाहों की गवाही और विरोधाभास
- PW-7 (मृतक का पिता) ने कहा कि उसने हमला होते हुए देखा और अपने बेटे को हमलावरों का नाम लेते सुना।
- अन्य गवाह (PW-1, PW-2, PW-4) ने केवल आरोपी को भागते देखा, किसी नाम का ज़िक्र नहीं किया।
- पुलिस को मृतक का शव मकान के आंगन में मिला, जबकि हत्या मंदिर के पास हुई बताई गई थी।
- FIR रात 9 बजे दर्ज की गई, लेकिन मृत्यु उसके बाद मानी गई — यानी समय में गंभीर विरोधाभास था।
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“मृत्यु रात 10 से 12 बजे के बीच हुई जबकि घटना 7 बजे हुई बताई गई और पीड़ित को घर लाने के 10 मिनट बाद मौत हो गई।” – सुप्रीम कोर्ट
- सवाल उठा कि घायल को अस्पताल क्यों नहीं ले जाया गया, घर क्यों?
- आरोपी से बरामद खून से सना डंडा फोरेंसिक जांच के लिए नहीं भेजा गया।
- डॉक्टर से यह नहीं पूछा गया कि क्या डंडे से ऐसी चोट संभव है।
मृतक के माता-पिता पर भी चोटें
- मृतक के माता-पिता दोनों के शरीर पर तीखी धार वाले हथियारों से लगी चोटें थीं।
- डॉक्टर ने माना कि ये चोटें स्व-प्रेरित हो सकती हैं।
- मृतक के पिता ने माना कि उनके बेटे ने उन्हें धमकाया था और परिवार में संपत्ति को लेकर विवाद था।
“रक्षा पक्ष ने कहा कि मृतक और उसके परिवार के बीच पहले से रंजिश थी।” – सुप्रीम कोर्ट
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष के केस में कई कमजोरियां और विरोधाभास हैं:
- मृत्यु कहां हुई, स्पष्ट नहीं।
- मृत्यु का समय चिकित्सा साक्ष्यों से मेल नहीं खाता।
- गवाहों की गवाही या तो विरोधाभासी थी या अविश्वसनीय।
- माता-पिता की चोटों का कोई स्पष्टीकरण नहीं मिला।
“मेडिकल रिपोर्ट से समर्थन नहीं मिलने के कारण मृत्यु के समय पर स्पष्टता नहीं है।” – सुप्रीम कोर्ट
इन सभी संदेहों के आधार पर, कोर्ट ने श्याम काली दुबे को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया और कहा कि अगर वह किसी और केस में वांछित नहीं हैं, तो उन्हें तुरंत रिहा किया जाए।
अपील स्वीकार की गई, दोष सिद्धि रद्द की गई, और श्याम काली दुबे को बरी किया गया।
मामला: Criminal Appeal No. 305 of 2011
पक्षकार: श्याम काली दुबे (अपीलकर्ता) बनाम मध्य प्रदेश राज्य (प्रतिवादी)
निर्णय की तारीख: 8 अगस्त 2025