भारत के सुप्रीम कोर्ट ने हरिश कुमार द्वारा दायर एक सिविल अपील को स्वीकार करते हुए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें कथित बिक्री समझौते के आधार पर दायर विशिष्ट निष्पादन (Specific Performance) की मांग को मंज़ूरी दी गई थी।
यह मामला 2000 में दायर सिविल सूट संख्या 91-T/04 से शुरू हुआ था, जिसमें उत्तरदाता अमर नाथ और एक अन्य ने दावा किया था कि 12 फरवरी 1999 को हरिश कुमार ने पटियाला में स्थित अपने घर को ₹70,000 में बेचने का समझौता किया था और ₹55,000 की अग्रिम राशि भी ले ली थी, साथ ही संपत्ति का कब्ज़ा भी उन्हें सौंप दिया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि बाद में किराए के अनुबंध के तहत हरिश कुमार उसी घर में ₹700 प्रति माह के किराए पर रहने लगे।
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लेकिन, हरिश कुमार ने यह दावा खारिज करते हुए कहा कि ऐसा कोई बिक्री समझौता हुआ ही नहीं था। उन्होंने कहा कि उन्होंने ₹50,000 का कर्ज़ लिया था, जिस पर 2.25% मासिक ब्याज देना तय हुआ था। उत्तरदाताओं ने पैसे देते समय उनके हस्ताक्षर को खाली स्टांप पेपर पर ले लिया था और बाद में उसका दुरुपयोग कर दस्तावेज तैयार कर लिया।
"बिक्री का कोई समझौता नहीं हुआ था। खाली कागज़ों पर लिए गए दस्तावेज़ों का दुरुपयोग किया गया है," अपीलकर्ता ने कहा।
ट्रायल कोर्ट और प्रथम अपीलीय न्यायालय दोनों ने वादी का मुकदमा खारिज कर दिया था, यह कहते हुए कि उनके पास पर्याप्त सबूत नहीं हैं और ₹4.04 लाख की अनुमानित बाजार कीमत वाले घर के लिए ₹70,000 का सौदा अविश्वसनीय लगता है। कोर्ट ने यह भी माना कि वादी पेशेवर रूप से कर्ज देने वाले हैं जो आमतौर पर खाली कागज़ों पर हस्ताक्षर लेते हैं।
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हालाँकि, हाईकोर्ट ने इस निर्णय को पलटते हुए कहा कि प्रतिवादी द्वारा किए गए हस्ताक्षर और ₹55,000 की भुगतान संबंधी लिखावट बिक्री समझौते की वैधता को सिद्ध करते हैं। कोर्ट ने किराया रसीद और अनुबंध को भी प्रमाण माना।
"प्रतिवादी की स्वयं की लिखावट और हस्ताक्षर इस बात पर गंभीर संदेह उत्पन्न करते हैं कि समझौता नहीं हुआ था," हाईकोर्ट ने कहा।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट इससे सहमत नहीं हुआ। उसने पाया कि उत्तरदाताओं ने न तो किसी गवाह को पेश किया और न ही किराए के अनुबंध को सिद्ध करने के लिए कोई पुख्ता सबूत दिया। सारा मामला स्वयं के बयान पर आधारित था। कोर्ट ने कहा कि विशिष्ट निष्पादन के लिए यह आवश्यक है कि वैध बिक्री समझौता स्पष्ट रूप से सिद्ध किया जाए।
"अगर वादी अपने हिस्से का कार्य करने को तैयार भी थे, तो भी वैध समझौते का प्रमाण न होने पर मामला खारिज होना चाहिए," सुप्रीम कोर्ट ने कहा।
सुप्रीम कोर्ट ने अपील को स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट का फैसला रद्द कर दिया और विशिष्ट निष्पादन की मांग खारिज कर दी। हालांकि, कोर्ट ने यह माना कि कर्ज़ लिया गया था और अपीलकर्ता को चार हफ्तों के भीतर ₹3,00,000 की राशि चुकाने का निर्देश दिया।
केस का शीर्षक: हरीश कुमार बनाम अमर नाथ एवं अन्य
केस संख्या: सिविल अपील संख्या 308/2015