सुप्रीम कोर्ट ने 21 अप्रैल 2025 को दिल्ली सरकार को एक उम्रकैद की सजा पाए कैदी की रिमिशन याचिका के लापरवाह निपटान को लेकर कड़ी फटकार लगाई। जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जल भुयान की पीठ ने इसे “अफसोसजनक स्थिति” बताते हुए कहा कि इस मामले में गहन जांच की आवश्यकता है।
“शायद इस मामले में एक गहरी जांच की आवश्यकता है कि दिल्ली सरकार द्वारा अदालती कार्यवाही किस प्रकार संभाली गई और समयपूर्व रिहाई की याचिकाओं से कैसे निपटा जा रहा है,” कोर्ट ने कहा।
यह मामला मोहम्मद आरिफ नामक एक उम्रकैद के कैदी से जुड़ा है, जिसकी समयपूर्व रिहाई की याचिका पर सितंबर 2024 में सजा समीक्षा बोर्ड (SRB) ने विचार किया था, लेकिन कोई निर्णय नहीं लिया गया। 25 नवंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने SRB के निर्णय को स्थगित करने पर सवाल उठाया और 9 दिसंबर 2024 से पहले मामले पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया।
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10 दिसंबर को SRB की बैठक हुई, लेकिन फिर से यह निर्णय नहीं ले सका। बोर्ड ने यह कहकर फैसला टाल दिया कि सर्वसम्मति नहीं बन पाई। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि दिल्ली जेल नियम 1257(b) के तहत यदि सर्वसम्मति नहीं हो तो बहुमत का निर्णय अंतिम माना जाएगा। लेकिन बैठक की कार्यवाही में यह उल्लेख नहीं था कि बहुमत की राय क्या थी।
“हमने कभी नहीं देखा कि दिल्ली सरकार इतनी तेजी से समयपूर्व रिहाई के मामलों में काम कर रही हो,” कोर्ट ने टिप्पणी की, क्योंकि उसके बाद दो बैठकों में तेजी से याचिका को खारिज कर दिया गया।
सुनवाई के दौरान यह सामने आया कि दिसंबर की बैठक में उपस्थित अधिकारी यह स्पष्ट नहीं कर सके कि बहुमत रिहाई के पक्ष में था या विरोध में। इससे पहले दिल्ली सरकार ने आश्वासन दिया था कि निर्णय लिया जाएगा।
कोर्ट में, राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता आदित्य सौंधी ने भरोसा दिलाया कि SRB फिर से बैठक करेगा और 9 मई 2025 तक निर्णय प्रस्तुत किया जाएगा।
मामले की पृष्ठभूमि
7 फरवरी 2025 को दिल्ली सरकार ने कोर्ट को बताया कि 2 फरवरी को SRB की सिफारिश उपराज्यपाल को भेज दी गई है। लेकिन मार्च में जेल अधीक्षक द्वारा दाखिल एक हलफनामे में कहा गया कि 10 दिसंबर की बैठक में कोई निर्णय नहीं लिया गया था और उपराज्यपाल को कोई सिफारिश नहीं भेजी गई थी।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने गृह विभाग के सचिव को नोटिस जारी कर पूछा कि अवमानना अधिनियम 1971 के तहत कार्रवाई क्यों न की जाए।
“सिर्फ अवमानना का नोटिस मिलने के बाद ही राज्य सरकार ने जल्दबाजी में याचिका को खारिज किया,” कोर्ट ने कहा।
बाद में प्रमुख सचिव ए. अनबरासु ने एक हलफनामा दाखिल कर कहा कि कोर्ट इस भ्रम में थी कि 2 फरवरी की सिफारिश कैदी के पक्ष में थी। इस पर जस्टिस ओका ने कहा:
“सिफारिश का मतलब या तो समयपूर्व रिहाई के पक्ष में होता है या उसके विरोध में। हम बच्चे नहीं हैं जो पहली बार रिहाई का मामला देख रहे हैं।”
कोर्ट ने इस हलफनामे को “अत्यंत आपत्तिजनक” बताया और अनबरासु को 21 अप्रैल को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश दिया।
आज की सुनवाई में पीठ ने बार-बार अधिकारियों से पूछा कि याचिकाकर्ता की रिहाई पर बहुमत की राय क्या थी, लेकिन कोई स्पष्ट उत्तर नहीं मिला। केवल यह बताया गया कि SRB के अध्यक्ष यानी दिल्ली के गृह मंत्री ने याचिका का विरोध किया।
“अगर आपके नियम कहते हैं कि बहुमत से निर्णय लेना है, तो सदस्यों को बहुमत से निर्णय लेने से रोका नहीं जाना चाहिए… सिर्फ इसलिए कि मंत्री और पुलिस विरोध कर रहे हैं, आप यह नहीं कह सकते कि हम सर्वसम्मति तक नहीं पहुंच पाए। यह बहुत खराब तस्वीर पेश करता है,” जस्टिस ओका ने कहा।
कोर्ट ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया कि अगली SRB बैठक की रिपोर्ट 9 मई 2025 तक कोर्ट में दाखिल की जाए, ताकि प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके।
केस नं. – रिट याचिका (आपराधिक) डायरी नं. 48045/2024
केस का शीर्षक – मोहम्मद आरिफ बनाम राज्य (दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार)