इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 के तहत अंतरिम भरण-पोषण तय करने में यह देखना अप्रासंगिक है कि पहली शादी जीवित है या नहीं।
न्यायमूर्ति अरिंदम सिन्हा और न्यायमूर्ति अवनीश सक्सेना की खंडपीठ ने यह फैसला उस अपील पर सुनवाई करते हुए सुनाया, जिसमें महिला की अंतरिम भरण-पोषण याचिका को फैमिली कोर्ट ने खारिज कर दिया था।
यह मामला एक विवाद से जुड़ा है, जिसमें पति ने यह कहते हुए विवाह को अमान्य घोषित करने की याचिका दी थी कि विवाह के समय पत्नी की पहली शादी अभी भी कायम थी। इस मामले की सुनवाई के दौरान, पत्नी ने धारा 24 के तहत अंतरिम भरण-पोषण और मुकदमे के खर्च की मांग की थी।
Read Also:- मुंबई कोर्ट ने पति की संपत्ति का हवाला देते हुए घरेलू हिंसा के लिए मुआवज़ा ₹5 लाख से बढ़ाकर ₹1 करोड़ किया
फैमिली कोर्ट ने यह कहते हुए उसकी याचिका खारिज कर दी कि महिला ने अपनी पूर्व शादी की जानकारी छिपाई, जो कि 15 अप्रैल 2024 को समाप्त हुई थी।
हालांकि, हाईकोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया।
“महत्वपूर्ण यह है कि कोर्ट यह देखे कि क्या अंतरिम भरण-पोषण और खर्च की मांग करने वाले पक्ष को वास्तव में इसकी आवश्यकता है, जिसे दूसरे पक्ष द्वारा दिया जाना चाहिए,”
— खंडपीठ ने कहा।
अपीलकर्ता ने कहा कि उसका पति के साथ लंबे समय से संबंध था, जो पुलिस विभाग में कार्यरत है और ₹65,000 प्रति माह कमाता है, साथ ही बिल्डिंग मटेरियल का व्यवसाय भी करता है। उसने ₹20,000 प्रति माह की मांग की।
वहीं, प्रतिवादी ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि भरण-पोषण देना कोर्ट के विवेक पर है और इसमें संबंधित पक्षों के आचरण का भी महत्व होता है। उसने यह भी आरोप लगाया कि पत्नी ने अपनी पूर्व शादी की जानकारी छुपाई और वह इनकम टैक्स विभाग में कार्यरत है।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 24 के तहत यह देखना आवश्यक नहीं है कि विवाह वैध है या नहीं, बल्कि यह देखा जाता है कि क्या आवेदनकर्ता के पास स्वयं के लिए पर्याप्त आय है या नहीं।
Read Also:- SC का ऐतिहासिक फैसला: CrPC के तहत पीड़ितों को अपील करने का स्वतंत्र अधिकार है
“यह संभव है कि अपीलकर्ता ने अपने बारे में जानकारी छिपाई और प्रतिवादी को गुमराह किया... लेकिन फैमिली कोर्ट के समक्ष ऐसा कोई साक्ष्य नहीं था जिससे यह सिद्ध हो सके कि अपीलकर्ता के पास स्वयं का भरण-पोषण करने के साधन हैं,”
— कोर्ट ने कहा।
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि पति द्वारा यह साबित करने के लिए कोई दस्तावेज़ नहीं लाया गया कि पत्नी इनकम टैक्स विभाग में कार्यरत थी। यह भी माना गया कि विवाह के बाद दोनों साथ रह चुके थे और पत्नी वर्तमान में झांसी में रह रही है।
Read Also:- भूमि वर्गीकरण मामले में अनुचित मुकदमेबाज़ी पर केरल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार पर ₹25,000 का जुर्माना लगाया
फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए, हाईकोर्ट ने पति को आदेश दिया कि वह पत्नी को ₹15,000 प्रति माह की दर से अंतरिम भरण-पोषण दे, जिसकी गणना 15 अप्रैल 2025 से की जाएगी।
“प्रतिवादी को आवेदन की तिथि से भुगतान करना होगा... लंबित राशि 14 जून 2025 तक और इसके बाद की मासिक राशि प्रत्येक माह की 7 तारीख तक दी जानी चाहिए,”
— खंडपीठ ने आदेश दिया।
कोर्ट ने फैमिली कोर्ट को निर्देश भी दिया कि वह लंबित वैवाहिक कार्यवाही को शीघ्र पूरा करे और यह भी कहा कि अपीलकर्ता को सुनवाई में टाल-मटोल नहीं करनी चाहिए।
मामले का शीर्षक: सविता देवी @ पिंकी गौतम @ शिवांगी शिशोदिया बनाम जितेन्द्र गौतम