न्याय और कार्यकुशलता को सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने यह सुनिश्चित करने के लिए विस्तृत निर्देश जारी किए हैं कि मोटर वाहन अधिनियम, 1988 और श्रम मुआवज़ा अधिनियम, 1923 के तहत दिया गया मुआवज़ा सीधे पात्र दावेदारों के बैंक खातों में स्थानांतरित किया जाए।
यह कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश बीबी पाठक द्वारा भेजे गए एक पत्र के बाद की, जिसमें अदालतों में अप्रमाणित मुआवज़ा राशि के बारे में बताया गया था। इस पत्र के आधार पर कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए "इन रे: मुआवज़ा राशि जो मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरणों और श्रम न्यायालयों में जमा हैं" शीर्षक से मामला दर्ज किया।
"हालाँकि दावा करने वालों को ये राशि मिलनी चाहिए, परंतु उन्होंने इसे नहीं निकाला है। इतनी बड़ी संख्या में सफल दावेदारों को मुआवज़े से वंचित रहना अत्यंत चिंताजनक है। इसका समाधान आवश्यक है।"
— जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ
कोर्ट ने चौंकाने वाले आँकड़े प्रस्तुत किए। केवल गुजरात में ही ₹282 करोड़ एमएसीटी में और ₹6.61 करोड़ श्रम न्यायालयों में अप्रमाणित पड़े हैं। उत्तर प्रदेश में ₹239 करोड़ एमएसीटी और ₹92 करोड़ श्रम न्यायालयों में पड़े हैं। पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और गोवा में भी भारी मात्रा में राशि अप्रमाणित पाई गई।
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इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए, सुप्रीम कोर्ट ने निम्नलिखित दिशानिर्देश जारी किए:
पूर्ण दावेदार विवरण: प्रत्येक दावे में दावेदारों और मृतकों के वैध वारिसों के नाम, स्थायी और स्थानीय पते, आधार और पैन विवरण, और ईमेल आईडी शामिल होनी चाहिए।
बैंक खाता सत्यापन: मुआवज़ा जारी करने से पहले प्रमाणित बैंक विवरण या रद्द चेक प्रस्तुत करना आवश्यक होगा। एमएसी ट्रिब्यूनल द्वारा इनका सत्यापन किया जाएगा।
सीधे ट्रांसफर का आदेश: कोर्ट ने कहा कि मुआवज़ा सीधे दावेदारों के सत्यापित बैंक खातों में स्थानांतरित किया जाए।
नियमित जानकारी अपडेट: लाभार्थियों को अपने बैंक विवरण और संपर्क जानकारी समय-समय पर अपडेट करनी होगी।
निधियों का निवेश: अगर मुआवज़ा राशि अस्थायी रूप से रोकी जाती है, तो इसे किसी राष्ट्रीयकृत बैंक में फिक्स्ड डिपॉजिट के रूप में निवेश किया जाए।
डिजिटल डैशबोर्ड: हाईकोर्ट्स और राज्य सरकारों की सहायता से एक डैशबोर्ड बनाया जाएगा, जिसमें 1988 और 1923 अधिनियमों के तहत जमा राशि का रीयल-टाइम डेटा उपलब्ध होगा।
"सभी हाईकोर्ट्स प्रशासनिक निर्देश जारी करें... ताकि ऐसे व्यक्तियों की पहचान की जा सके जो मुआवज़े के पात्र हैं लेकिन उन्हें अब तक प्राप्त नहीं हुआ है।"
— सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने जिला और तालुका विधिक सेवा प्राधिकरणों तथा पैरा-लीगल स्वयंसेवकों की सहायता से लाभार्थियों की खोज करने का निर्देश दिया। स्थानीय पुलिस और राजस्व अधिकारियों के माध्यम से राज्य सरकारों को सहयोग देने को भी कहा गया।
सभी हाईकोर्ट्स को निर्देशित किया गया है कि वे 30 जुलाई, 2025 तक अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करें, जिसे रजिस्ट्री द्वारा एडवोकेट विशाखा को सॉफ्ट कॉपी के रूप में भेजा जाएगा। इस मामले में सीनियर एडवोकेट मीनाक्षी अरोड़ा ने एमिकस क्यूरी के रूप में सहायता की।
"जब तक राज्य सरकारें मोटर वाहन अधिनियम की धारा 176 के तहत नियम नहीं बनातीं, तब तक ये निर्देश एमएसी ट्रिब्यूनल और श्रम आयुक्तों पर बाध्यकारी रहेंगे।"
— सुप्रीम कोर्ट
मामला : मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरणों और श्रम न्यायालयों में जमा की गई मुआवजा राशि के संबंध में