सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा टोल ब्रिज कंपनी लिमिटेड (NTBCL) की पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया है। यह याचिका दिल्ली-नोएडा डायरेक्ट (DND) फ्लाईवे पर टोल वसूली की अनुमति संबंधी पहले के फैसले को पलटने के लिए दायर की गई थी। यह आदेश जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने पारित किया।
कोर्ट दो अलग-अलग पुनर्विचार याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी—एक NTBCL की ओर से और दूसरी इसके निदेशक प्रदीप पुरी की ओर से। जहां पुरी के मामले में कुछ टिप्पणियों को हटाने पर कोर्ट सहमत हुआ, वहीं NTBCL की याचिका को पूरी तरह खारिज कर दिया गया।
"आप पहले ही काफी कमा चुके हैं… क्या अकाउंटेंट की सोच है!" – न्यायमूर्ति सूर्यकांत
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NTBCL ने दलील दी कि पहले के फैसले में जिस नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट पर भरोसा किया गया, उसमें कंपनी के पक्ष में की गई कुछ टिप्पणियों को नज़रअंदाज़ कर दिया गया। कंपनी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अमन हिंगोरानी ने यह भी कहा कि कंपनी को यह प्रोजेक्ट 2031 तक बनाए रखना है। लेकिन कोर्ट ने इन दलीलों को महत्वहीन मानते हुए याचिका खारिज कर दी।
"सामान्य जनता को सैकड़ों करोड़ रुपये देने के लिए मजबूर किया गया और यह सब सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के नाम पर धोखा था।" – सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
कोर्ट ने अपने पहले के इस रुख को दोहराया कि नोएडा और NTBCL के बीच हुआ अनुबंध सार्वजनिक पैसे की कीमत पर कंपनी को अनुचित लाभ देने वाला था। कोर्ट ने कहा कि कंपनी पहले ही अपनी परियोजना लागत, रखरखाव खर्च और निवेश पर मुनाफा वसूल चुकी है। ऐसे में अब टोल वसूली का कोई औचित्य नहीं बचता।
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दूसरी ओर, प्रदीप पुरी की पुनर्विचार याचिका में अधिवक्ता पीयूष जोशी ने दलील दी कि पहले के फैसले में पुरी के खिलाफ की गई कुछ व्यक्तिगत टिप्पणियां CAG रिपोर्ट से मेल नहीं खातीं। उन्होंने बताया कि पुरी उस समय सरकारी सेवा में नहीं थे और न ही इस मामले में पक्षकार थे। कोर्ट ने इस पर सहमति जताते हुए कुछ टिप्पणियों को हटाने का निर्णय लिया।
"CAG रिपोर्ट चौंकाने वाली बात उजागर करती है कि NTBCL के निदेशकों ने कोई ज़िम्मेदारी नहीं निभाई, फिर भी उनके सभी खर्च, जिसमें भारी वेतन भी शामिल है, परियोजना लागत में जोड़ दिए गए।" – सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2016 के फैसले को सही ठहराया था जिसमें NTBCL के पक्ष में बने अनुबंध को रद्द कर दिया गया था। यह फैसला नोएडा निवासी कल्याण संघ के द्वारा दायर जनहित याचिका पर आया था।
"NOIDA ने अपने अधिकारों से बाहर जाकर NTBCL को शुल्क वसूलने का अधिकार दे दिया, जो कि कानूनन गलत था।" – सुप्रीम कोर्ट
कोर्ट ने अनुच्छेद 14 का हवाला देते हुए कहा कि इस अनुबंध के लिए कोई खुली निविदा या प्रतिस्पर्धात्मक प्रक्रिया नहीं अपनाई गई थी। सरकार ने बिना किसी पारदर्शी प्रक्रिया के NTBCL को अनुबंध सौंप दिया, जो संविधान का उल्लंघन था।
"जब राज्य कोई ऐसी परियोजना करता है जिसमें जनता का पैसा और संसाधन शामिल होते हैं, तो उसकी कार्रवाई निष्पक्ष, पारदर्शी और नीति-आधारित होनी चाहिए।" – सुप्रीम कोर्ट
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह जनहित याचिका वाजिब थी, भले ही मामला एक वाणिज्यिक अनुबंध का था, क्योंकि इसमें जनता के पैसे का सवाल था और यह सार्वजनिक हित से जुड़ा था।
उपस्थिति: वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अमन हिंगोरानी के साथ अधिवक्ता रौनक ढिल्लों, माधवी खन्ना और निहाद दीवान (एनटीबीसीएल के लिए); अधिवक्ता पीयूष जोशी और सुमिति यादव, एओआर सोनाक्षी मल्हान (प्रदीप पुरी के लिए)
केस का शीर्षक: प्रदीप पुरी बनाम नोएडा टोल ब्रिज कंपनी लिमिटेड और अन्य, डायरी संख्या 1373-2025 (और संबंधित मामला)