भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने दोहराया है कि राज्य बार काउंसिल (SBCs) अधिवक्ताओं के नामांकन के लिए एडवोकेट्स एक्ट, 1961 की धारा 24(1)(f) में निर्दिष्ट राशि से अधिक कोई शुल्क नहीं ले सकतीं। यह स्पष्टीकरण K.L.J.A. किरण बाबू बनाम कर्नाटक राज्य बार काउंसिल में दायर अवमानना याचिका का निपटारा करते समय आया।
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि गौरव कुमार बनाम भारत संघ (30 जुलाई 2024) में अदालत के पहले के निर्देशों के बावजूद, कर्नाटक राज्य बार काउंसिल वैधानिक सीमा से अधिक शुल्क वसूलना जारी रखे हुए है, जिसमें 'वैकल्पिक' नाम से राशि भी शामिल है।
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इसके जवाब में, बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने एक हलफनामा दाखिल किया, जिसमें बताया गया कि उसने 06 अगस्त 2024 और 23 जुलाई 2025 के पत्रों के माध्यम से सभी राज्य बार काउंसिलों को स्पष्ट निर्देश जारी किए हैं कि वे इस निर्णय का सख्ती से पालन करें। हलफनामे में विस्तार से बताया गया कि अधिकांश राज्य बार काउंसिलें केवल ₹750 (सामान्य/ओबीसी उम्मीदवारों के लिए - ₹600 SBC और ₹150 BCI) और ₹125 (SC/ST उम्मीदवारों के लिए - ₹100 SBC और ₹25 BCI) ही वसूल रही हैं, जो अदालत के आदेश के अनुरूप है।
हालांकि, कर्नाटक राज्य बार काउंसिल को अतिरिक्त ₹6,800 वसूलते पाया गया, जो आईडी कार्ड, प्रमाणपत्र, वेलफेयर फंड और प्रशिक्षण आदि के लिए ‘वैकल्पिक’ आधार पर लिया जा रहा था।
"हम स्पष्ट कर देते हैं कि ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे वैकल्पिक कहा जा सके। कोई भी राज्य बार काउंसिल या बार काउंसिल ऑफ इंडिया किसी भी राशि का शुल्क वैकल्पिक नाम से नहीं वसूल सकती। वे केवल वही शुल्क वसूलें जो इस न्यायालय द्वारा मुख्य निर्णय में निर्दिष्ट किया गया है," पीठ ने कहा।
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अदालत ने गौरव कुमार निर्णय के पैरा 109 के चार मुख्य बिंदुओं को दोहराया:
- SBCs नामांकन शुल्क वैधानिक सीमा से अधिक नहीं ले सकतीं।
- केवल निर्दिष्ट नामांकन शुल्क और लागू स्टांप शुल्क ही लिया जा सकता है।
- अतिरिक्त शुल्क लेना संविधान के अनुच्छेद 14 और 19(1)(g) का उल्लंघन है।
- यह निर्णय भविष्य में लागू होगा; निर्णय से पहले वसूले गए शुल्क वापस करने की आवश्यकता नहीं है।
अदालत ने निर्देश दिया कि किसी भी प्रकार का अतिरिक्त या वैकल्पिक शुल्क लेना तुरंत बंद किया जाए और अवमानना याचिका का निपटारा कर दिया।
केस का शीर्षक: K.L.J.A. किरण बाबू बनाम कर्नाटक राज्य बार काउंसिल