Logo
Court Book - India Code App - Play Store

दिल्ली अदालत का सख्त रुख: सीबीआई फिल्म अनुदान मामले में हस्तक्षेप की मांग खारिज, ट्रायल कोर्ट का आदेश बरकरार

Vivek G.

दिल्ली अदालत ने सीबीआई फिल्म अनुदान मामले में हस्तक्षेप याचिका खारिज की, ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही ठहराया।

दिल्ली अदालत का सख्त रुख: सीबीआई फिल्म अनुदान मामले में हस्तक्षेप की मांग खारिज, ट्रायल कोर्ट का आदेश बरकरार
Join Telegram

राउस एवेन्यू कोर्ट परिसर में गुरुवार को माहौल अपेक्षाकृत शांत था, लेकिन बहस का मुद्दा अहम था-क्या कोई गवाह या निजी व्यक्ति चल रहे आपराधिक मुकदमे में अभियोजन के साथ बैठ सकता है। दिल्ली जिला अदालत ने इस सवाल पर साफ रेखा खींचते हुए पुणे के फिल्ममेकर वी. आर. कमलापुरकर की याचिका खारिज कर दी। अदालत ने कहा कि कानून में “सहानुभूति” और “अधिकार” के बीच फर्क है, और इस मामले में हस्तक्षेप का अधिकार नहीं बनता।

Read in English

पृष्ठभूमि

मामला वर्ष 2015 का है, जब संस्कृति मंत्रालय की शिकायत पर सीबीआई ने फिल्म निर्माता विनय धुमाले के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। आरोप था कि लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक पर फिल्म बनाने के लिए मिले ₹2.5 करोड़ के सरकारी अनुदान का दुरुपयोग किया गया।

Read also:- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अभियुक्तों की रिवीजन याचिका खारिज की, कहा- धारा 156(3) CrPC के तहत FIR आदेश को इस स्तर पर चुनौती नहीं दी जा सकती

जांच में यह भी सामने आया कि दूरदर्शन के लिए पहले बनाए गए एक धारावाहिक और बाद में बनी फिल्म के कई दृश्य आपस में मिलते-जुलते थे। नियमों के मुताबिक, धारावाहिक के प्रसारण अधिकार सरकार के पास होने थे। सीबीआई ने फॉरेंसिक रिपोर्ट के आधार पर चार्जशीट दाखिल की।

इसी मुकदमे में वी. आर. कमलापुरकर ने ट्रायल कोर्ट में आवेदन देकर अभियोजन की “मदद” करने की अनुमति मांगी। उनका दावा था कि उन्होंने आरटीआई के जरिए जानकारी जुटाई, जिससे कथित गड़बड़ी सामने आई, और फिल्म में उनका नाम बिना अनुमति इस्तेमाल किया गया।

Read also:- कलकत्ता हाईकोर्ट ने एमएसटीसी को सीडीए नियमों के तहत ग्रेच्युटी से नुकसान वसूली की अनुमति दी, एकल न्यायाधीश का आदेश पलटा

अदालत की टिप्पणियाँ

विशेष न्यायाधीश ने सुनवाई के दौरान ट्रायल कोर्ट के निष्कर्षों से सहमति जताई। अदालत ने कहा कि इस मामले में वास्तविक नुकसान संस्कृति मंत्रालय या दूरदर्शन को हुआ है, न कि याचिकाकर्ता को। आदेश में साफ शब्दों में कहा गया, “केवल गवाह होना या नाम का उल्लेख होना किसी को पीड़ित नहीं बना देता।”

अदालत ने यह दलील भी खारिज कर दी कि कमलापुरकर “पहले सूचना देने वाले” थे। पीठ ने स्पष्ट किया कि एफआईआर संयुक्त सचिव, संस्कृति मंत्रालय की लिखित शिकायत पर दर्ज हुई थी, न कि याचिकाकर्ता की रिपोर्ट पर।

एक अहम टिप्पणी में अदालत ने चेताया कि अगर हर गवाह को हस्तक्षेप की इजाजत दे दी जाए, तो वह “अर्ध-अभियोजक” की भूमिका में आ सकता है, जो आपराधिक न्याय व्यवस्था के अनुरूप नहीं है।

Read also:- उन्नाव रेप केस: दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा सजा निलंबन पर CBI की सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

निर्णय

सभी तर्कों पर विचार करने के बाद अदालत ने पाया कि ट्रायल कोर्ट के आदेश में कोई कानूनी खामी नहीं है। परिणामस्वरूप, पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी गई और हस्तक्षेप की अनुमति देने से इनकार कर दिया गया। अदालत ने ट्रायल कोर्ट का आदेश बरकरार रखते हुए रिकॉर्ड वापस भेजने का निर्देश दिया।

Case Title: V. R. Kamalapurkar vs Central Bureau of Investigation & Anr.

Case No.: Criminal Revision No. 29/2025 (CNR No. DLCT11-000723-2025)

Case Type: Criminal Revision Petition (against dismissal of intervention application)

Decision Date: 26 December 2025

Recommended Posts