वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता पर दो घंटे की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के खिलाफ प्रदर्शनों के कारण हो रही हिंसा पर गहरी चिंता व्यक्त की।
“एक बात बहुत परेशान करने वाली है, वह है हिंसा होना। जब मामला कोर्ट में है… यह नहीं होना चाहिए… हम निर्णय लेंगे।”
— भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना
मुख्य न्यायाधीश की यह टिप्पणी हाल ही में पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में हुए प्रदर्शन के संदर्भ में आई, जहां अधिनियम के विरोध में हुई हिंसा में तीन लोगों की मौत हो गई थी।
इस मामले की सुनवाई कर रही पीठ में मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट इस समय अधिनियम के खिलाफ दायर 70 से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। इनमें एक याचिका मूल वक्फ अधिनियम, 1995 की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती दे रही है।
“यह एक प्रवृत्ति बन गई है कि आप हिंसा से सिस्टम पर दबाव बना सकते हैं।”
— भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता
इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, जो आज की सुनवाई में सबसे पहले बहस कर रहे थे, ने कहा:
“मुझे नहीं पता कौन किस पर दबाव बना रहा है।”
अन्य वकीलों ने भी हिंसा के खिलाफ अपील की। कोर्ट ने कहा कि इस मामले की सुनवाई कल दोपहर 2 बजे फिर से शुरू होगी और सभी पक्षों से अधिनियम के "सकारात्मक" पहलुओं को भी उजागर करने को कहा।
सुनवाई के लिए शुरू में सूचीबद्ध दस याचिकाएं निम्नलिखित लोगों द्वारा दायर की गई हैं:
- AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी
- दिल्ली के AAP विधायक अमानतुल्लाह खान
- एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स
- जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष अर्शद मदनी
- समस्था केरल जमीयतुल उलेमा
- अंजुम कदरी
- तैय्यब खान सलमानी
- मोहम्मद शफी
- मोहम्मद फ़ज़लुर्रहीम
- RJD सांसद मनोज कुमार झा
भाजपा शासित पांच राज्यों—असम, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, हरियाणा और महाराष्ट्र—ने इस संशोधन का समर्थन करते हुए हस्तक्षेप याचिकाएं दायर की हैं।
चुनौती दी गई मुख्य प्रावधान
Read Also:- दिल्ली हाई कोर्ट के जज ने नलिन कोहली की दैनिक भास्कर के खिलाफ मानहानि याचिका की सुनवाई से खुद को अलग किया
सभी याचिकाओं में जिन प्रावधानों को चुनौती दी गई है, उनमें शामिल हैं:
- 'प्रयोग से वक्फ' प्रावधान को हटाना
- गैर-मुस्लिम सदस्यों को केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्ड में शामिल करना
- परिषदों और बोर्डों में महिला सदस्यों की संख्या दो तक सीमित करना
- वक्फ बनाने के लिए 5 वर्षों का प्रैक्टिसिंग मुस्लिम होने की पूर्व शर्त
- वक्फ-अलाल-औलाद (पारिवारिक वक्फ) को कमजोर करना
- वक्फ अधिनियम, 1995 का नाम बदलकर “एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तिकरण, दक्षता और विकास” करना
- न्यायाधिकरण के आदेश के खिलाफ अपील के प्रावधान
- सरकारी संपत्ति पर अतिक्रमण से संबंधित विवादों में सरकार को हस्तक्षेप करने की अनुमति देना
- वक्फ अधिनियम पर लिमिटेशन एक्ट लागू करना
- ASI संरक्षित स्मारकों पर बनाए गए वक्फ को अमान्य घोषित करना
- अनुसूचित क्षेत्रों में वक्फ बनाने पर प्रतिबंध
“न्यायपालिका ही वह मंच है जहां इन मामलों का फैसला होगा। जब मामला न्यायिक प्रक्रिया में है, तब हिंसा की कोई जगह नहीं है।”
— पीठ की टिप्पणी
यह मामला मुख्य याचिका के तहत सुना जा रहा है:
असदुद्दीन ओवैसी बनाम भारत सरकार | W.P.(C) No. 269/2025 एवं अन्य
सुप्रीम कोर्ट आगे भी इस मामले की सुनवाई जारी रखेगी और सभी पक्षों की दलीलें सुनकर वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक स्थिति पर निर्णय लेगी—विधिक और शांतिपूर्ण तरीके से।