सुप्रीम कोर्ट ने के. पौनम्मल, जो केंद्रीय उत्पाद शुल्क की पूर्व निरीक्षक थीं, के खिलाफ दिए गए फैसले में बदलाव किया है। उन्हें भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत दोषी ठहराया गया था। अदालत ने ₹300 की रिश्वत लेने का दोष बरकरार रखते हुए उनकी जेल की सजा घटाकर केवल पहले से भुगती गई अवधि मान ली है। हालांकि, कोर्ट ने उन पर लगाया गया जुर्माना बढ़ाकर ₹25,000 कर दिया है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला सितंबर 2002 का है, जब सिवकासी स्थित परानी माच फैक्ट्री के एक सुपरवाइजर ने नया केंद्रीय उत्पाद शुल्क पंजीकरण प्रमाणपत्र पाने के लिए आवेदन किया था। यह आवेदन पौनम्मल के अधिकार क्षेत्र में आया। अभियोजन के अनुसार, पौनम्मल ने इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए ₹300 की अवैध रिश्वत मांगी।
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शिकायतकर्ता ने सीबीआई में शिकायत दर्ज कराई। सीबीआई ने जाल बिछाकर पौनम्मल को रिश्वत लेते हुए पकड़ा। उनके हाथों पर की गई फिनॉल्फथेलीन जांच (Phenolphthalein Test) में भी रिश्वत लेने की पुष्टि हुई। 2003 में सीबीआई की विशेष अदालत ने उन्हें दोषी ठहराया और जेल की सजा सुनाई। 2010 में मद्रास हाईकोर्ट ने इस सजा को बरकरार रखा।
पौनम्मल ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। हालांकि उन्होंने अपनी दोषसिद्धि को चुनौती नहीं दी, लेकिन सजा कम करने की गुजारिश की। उनके वकील ने तर्क दिया कि यह घटना बीस साल से भी अधिक पुरानी है, वह पहले ही 31 दिन जेल में बिता चुकी हैं और अब वह 75 वर्षीय विधवा हैं जो अकेली रहती हैं।
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न्यायमूर्ति एन.वी. अंजरिया और न्यायमूर्ति अतुल एस. चंदूरकर ने पुराने फैसलों का हवाला दिया, जिनमें लंबी देरी और छोटे रिश्वत मामलों में जेल की सजा घटाई गई थी।
“किसी आपराधिक मामले का लंबे समय तक लंबित रहना अपने आप में एक तरह की सजा है। यह उस व्यक्ति के लिए मानसिक कारावास जैसा है जो ऐसे मुकदमे का सामना कर रहा है।”
अदालत ने कहा कि सजा तय करते समय केवल डराने और दंड देने पर ही नहीं, बल्कि सुधार पर भी ध्यान देना चाहिए, खासकर जब उम्र, विधवा होने और मुकदमे की लंबी अवधि जैसी परिस्थितियाँ हों।
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सुप्रीम कोर्ट ने दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए सजा में बदलाव किया:
- पहले से भुगती गई 31 दिन की जेल को पर्याप्त माना।
- जुर्माना बढ़ाकर ₹25,000 कर दिया गया। यह राशि 10 सितंबर 2025 तक जमा करनी होगी।
- यदि जुर्माना समय पर जमा नहीं किया गया तो पुरानी सजा फिर से लागू होगी और आरोपी को आत्मसमर्पण करना होगा।
केस का नाम: K. Pounammal बनाम State Represented by Inspector of Police
केस नंबर: Criminal Appeal No. 1716 of 2011
जजमेंट दिनांक: 21 अगस्त 2025
अपीलकर्ता (Appellant): K. Pounammal (पूर्व Inspector of Central Excise)
प्रतिवादी (Respondent): State Represented by Inspector of Police