भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ इन-हाउस जांच रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दी है। यह कदम महत्वपूर्ण है और न्यायाधीशों के खिलाफ आरोपों से निपटने के लिए स्थापित इन-हाउस प्रक्रिया के अनुरूप है। यहां इस प्रक्रिया और इसके महत्व का विस्तृत विवरण दिया गया है।
जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ इन-हाउस जांच तीन-न्यायाधीशों के पैनल द्वारा की गई थी। हालाँकि रिपोर्ट के निष्कर्ष सार्वजनिक नहीं किए गए हैं, लेकिन रिपोर्ट को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजने का अर्थ है कि पैनल ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ आरोपों को सही पाया है। प्रक्रिया के अनुसार:
- यदि तीन-न्यायाधीशों का पैनल आरोपों को सत्य पाता है, तो वह अपनी रिपोर्ट CJI को सौंपता है।
- CJI, रिपोर्ट की समीक्षा के बाद, संबंधित न्यायाधीश को इस्तीफा देने या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने की सलाह दे सकता है।
- यदि न्यायाधीश इनकार करता है, तो CJI न्यायिक कार्य वापस ले सकता है और रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज सकता है।
"CJI की भूमिका तब समाप्त हो जाती है जब वह न्यायाधीश को हटाने की सिफारिश करते हुए राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखते हैं।"
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इस मामले में अपनाई गई इन-हाउस प्रक्रिया कई महत्वपूर्ण मामलों में स्थापित दिशा-निर्देशों पर आधारित है, जैसे:
- K. वीरास्वामी बनाम भारत संघ (1991)
- रविचंद्रन अय्यर बनाम न्यायमूर्ति ए.एम. भट्टाचार्य (1995)
- अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश बनाम रजिस्ट्रार जनरल, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय (2015)
यह प्रक्रिया तब शुरू होती है जब CJI को कोई शिकायत प्राप्त होती है। यदि शिकायत गंभीर पाई जाती है, तो CJI तीन न्यायाधीशों की एक समिति का गठन कर सकते हैं जो जांच करेगी। यह समिति या तो शिकायत को निराधार मान सकती है या आरोपों को सत्य मानते हुए न्यायाधीश से इस्तीफा या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की सिफारिश कर सकती है।
इस मामले में गठित तीन-न्यायाधीशों की समिति में शामिल थे:
- न्यायमूर्ति शील नागू, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश।
- न्यायमूर्ति जीएस संधवाला, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश।
- न्यायमूर्ति अनु सिवरामन, कर्नाटक उच्च न्यायालय की न्यायाधीश।
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इन न्यायाधीशों ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ आरोपों की समीक्षा की और पाया कि आरोप इतने गंभीर हैं कि उन्हें CJI को रिपोर्ट करना उचित है। इस निष्कर्ष के बाद, CJI ने रिपोर्ट को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजने का निर्णय लिया।
यदि दुराचार गंभीर है और हटाने की आवश्यकता है, तो CJI न्यायाधीश को इस्तीफा देने या सेवानिवृत्ति लेने की सलाह देते हैं। यदि न्यायाधीश इनकार करता है, तो CJI उसका न्यायिक कार्य वापस ले सकता है और रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज सकता है। यह जस्टिस वर्मा के मामले में अब हो चुका है।
"यदि न्यायाधीश इस्तीफा देने से इनकार करता है, तो CJI को यह मामला राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करना चाहिए, यह सुनिश्चित करते हुए कि न्यायाधीश का न्यायिक कार्य वापस ले लिया जाए।"
इस प्रक्रिया का उपयोग पहले भी समान मामलों में किया जा चुका है:
- न्यायमूर्ति सौमित्र सेन (कोलकाता उच्च न्यायालय): वित्तीय कदाचार के आरोप लगे, इस्तीफा देने से इनकार किया, और उनके निष्कासन की सिफारिश की गई।
- न्यायमूर्ति नारायण शुक्ल (इलाहाबाद उच्च न्यायालय): CJI दीपक मिश्रा द्वारा राष्ट्रपति को जांच रिपोर्ट भेजी गई, लेकिन महाभियोग की कार्रवाई नहीं हुई।
यह प्रक्रिया न्यायिक जवाबदेही सुनिश्चित करती है, जबकि न्यायिक स्वतंत्रता को बनाए रखती है।