हाल ही के एक आदेश में कलकत्ता हाईकोर्ट ने गायत्री ग्रेनाइट्स और उसके सहयोगियों की याचिका खारिज कर दी। कंपनी ने संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत अदालत का दरवाज़ा खटखटाया था। उन्होंने चल रही मध्यस्थता कार्यवाही में अपने बचाव को संशोधित करने और प्रतिदावा जोड़ने की अनुमति न देने के मध्यस्थ के आदेश को चुनौती दी थी।
पृष्ठभूमि
विवाद एक ऋण सुविधा समझौते से उपजा। ऋणदाता स्रेय फाइनेंस ने कथित चूक के आरोपों के बाद मध्यस्थता शुरू की। कार्यवाही के दौरान, गायत्री ग्रेनाइट्स ने अपना बचाव दाखिल किया लेकिन कोई प्रतिदावा शामिल नहीं किया। कई महीने बाद, जब स्रेय के गवाह की जिरह पूरी हो चुकी थी, कंपनी ने अपने बचाव में संशोधन कर प्रतिदावा जोड़ने का प्रयास किया। जून 2025 में मध्यस्थ ने यह आवेदन खारिज कर दिया। इसके बाद कंपनी हाईकोर्ट पहुँची।
वरिष्ठ अधिवक्ता रत्नांको बनर्जी, जो याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, ने दलील दी कि प्रतिदावा ज़रूरी है क्योंकि उनके पुनर्भुगतान रिकॉर्ड से यह स्पष्ट है कि कोई बकाया नहीं है। उन्होंने मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 23 का हवाला दिया, जो कार्यवाही के दौरान दावे या बचाव में संशोधन की अनुमति देता है।
उन्होंने कहा, "दस्तावेज़ पहले से रिकॉर्ड पर हैं, अब केवल औपचारिक रूप से प्रतिदावा जोड़ना है।"
दूसरी ओर, स्रेय फाइनेंस की ओर से अधिवक्ता सुद्दशत्व बनर्जी ने कड़ा विरोध जताया। उन्होंने ज़ोर दिया कि अदालतों को मध्यस्थता में केवल दुर्लभ परिस्थितियों में ही हस्तक्षेप करना चाहिए। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों की याद दिलाई, जिनमें हाईकोर्ट को अनुच्छेद 227 के तहत मध्यस्थ के अंतरिम आदेशों में दखल देने से रोका गया है।
अदालत की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति हिरण्मय भट्टाचार्य ने प्रावधानों की गहन जांच की। अदालत ने कहा कि यद्यपि मध्यस्थता अधिनियम की धारा 23(2A) प्रतिदावा की अनुमति देती है, परंतु यह असीमित समयसीमा नहीं देती। सुप्रीम कोर्ट के पुराने निर्णयों का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि ऐसे दावे आमतौर पर साक्ष्य चरण से पहले ही उठाए जाने चाहिए।
अदालत ने टिप्पणी की:
"मध्यस्थता कार्यवाही में प्रतिदावा मुद्दों के तय हो जाने के बाद दाखिल नहीं किया जा सकता। केवल असाधारण परिस्थितियों में ही इसे गवाहों के बयान शुरू होने तक स्वीकार किया जा सकता है।"
चूंकि गायत्री ग्रेनाइट्स ने यह आवेदन वादी के साक्ष्य बंद हो जाने के बाद दाखिल किया था, न्यायाधीश ने इसे स्पष्ट रूप से विलंबित माना।
पीठ ने और कहा,
"संशोधन आवेदन दाखिल करने में हुई देरी का संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं दिया गया। साक्ष्य शुरू होने के बाद प्रतिदावा स्थापित करने के लिए संशोधन की अनुमति नहीं दी जा सकती।"
निर्णय
अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि मध्यस्थ का आदेश न तो विकृत था और न ही अधिकार क्षेत्र से बाहर। इसलिए उसमें हस्तक्षेप की ज़रूरत नहीं है। सिविल पुनरीक्षण याचिका (सी.ओ. 2449/2025) खारिज कर दी गई, हालांकि किसी भी प्रकार का खर्च नहीं लगाया गया।
इस फैसले के साथ हाईकोर्ट ने साफ़ संकेत दिया कि मध्यस्थता की समयसीमाओं का सम्मान होना चाहिए और देर से किए गए प्रतिदावे कार्यवाही को बाधित नहीं कर सकते।
केस का शीर्षक: गायत्री ग्रेनाइट्स एवं अन्य बनाम श्री इक्विपमेंट फाइनेंस लिमिटेड
केस संख्या: C.O. 2449 of 2025