श्रीनगर की अदालत में सुबह से ही हलचल थी। फाइलें खुलीं, वकीलों की दलीलें चलीं और आखिरकार डिवीजन बेंच ने वह फैसला सुनाया, जिसका इंतज़ार पुलिस विभाग को वर्षों से था। 2016 के हथियार छीनने की घटना से जुड़े मामले में हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को पलटते हुए बर्खास्त कांस्टेबल की सेवा समाप्ति को सही ठहराया।
Background
मामला मई 2016 का है, जब कुलगाम के आदजिन इलाके में स्थित एक माइनॉरिटी गार्ड पिकेट पर रात के अंधेरे में उग्रवादियों ने हमला किया। ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मियों को काबू में कर उनके हथियार छीन लिए गए। पुलिस की ओर से यह आरोप रहा कि किसी भी गार्ड ने जवाबी फायरिंग नहीं की।
Read also:- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अभियुक्तों की रिवीजन याचिका खारिज की, कहा- धारा 156(3) CrPC के तहत FIR आदेश को इस स्तर पर चुनौती नहीं दी जा सकती
इस घटना के बाद संबंधित कांस्टेबल को निलंबित कर विभागीय जांच शुरू की गई। जांच के बाद उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। कांस्टेबल ने यह कहते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया कि जांच प्रक्रिया में नियमों का पालन नहीं हुआ और उसे अपनी बात रखने का पूरा मौका नहीं मिला। सिंगल जज ने उसकी दलील मान ली थी, जिसे बाद में सरकार ने चुनौती दी।
Court’s Observations
डिवीजन बेंच ने पूरे रिकॉर्ड को ध्यान से देखा और पुलिस नियमों के तहत होने वाली विभागीय जांच की प्रक्रिया को विस्तार से समझाया। अदालत ने कहा कि आरोपों की जानकारी दी गई, गवाहों के बयान दर्ज हुए और आरोपी को जवाब देने का अवसर भी मिला।
पीठ ने टिप्पणी की, “जांच के हर जरूरी चरण का पालन किया गया है, और यह नहीं कहा जा सकता कि आरोपी को सुनवाई का मौका नहीं मिला।”
Read also:- कलकत्ता हाईकोर्ट ने एमएसटीसी को सीडीए नियमों के तहत ग्रेच्युटी से नुकसान वसूली की अनुमति दी, एकल न्यायाधीश का आदेश पलटा
अदालत इस दलील से भी सहमत नहीं हुई कि अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक को जांच अधिकारी बनने का अधिकार नहीं था। न्यायालय के अनुसार, कानून में ऐसे अधिकारी को यह जिम्मेदारी सौंपने की अनुमति है।
सबसे अहम टिप्पणी हथियारों को बिना प्रतिरोध सौंपने को लेकर आई। अदालत ने कहा कि ऐसी चूक को हल्के में नहीं लिया जा सकता क्योंकि यह पुलिस बल की छवि और जिम्मेदारी से जुड़ा मामला है।
Decision
अंत में, हाईकोर्ट ने सरकार की अपील स्वीकार करते हुए सिंगल जज का आदेश रद्द कर दिया और कांस्टेबल की बर्खास्तगी को बहाल कर दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि न तो जांच प्रक्रिया में कोई गंभीर कमी थी और न ही सजा असंगत कही जा सकती है।
Case Title: UT of Jammu & Kashmir & Others vs Bashir Ahmad Mir
Case No.: LPA No. 27/2022
Case Type: Letters Patent Appeal (Service / Police Disciplinary Matter)
Decision Date: 18 December 2025