कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद में एक महत्वपूर्ण विकास में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आगे की सभी कार्यवाहियों में 'शाही ईदगाह मस्जिद' शब्द को 'विवादित ढांचा' से बदलने की याचिका खारिज कर दी।
जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्र ने मौखिक रूप से कहा कि याचिका को "इस स्तर पर खारिज किया जा रहा है।" यह याचिका वकील महेंद्र प्रताप सिंह द्वारा मूल वाद संख्या 13/2023 में दायर की गई थी और इसे अन्य याचिकाकर्ताओं, जिनमें मूल वाद संख्या 07/2023 के वादी भी शामिल हैं, ने समर्थन दिया था।
"अदालत ने कानूनी रिकॉर्ड में मस्जिद के नाम को बदलने से इनकार कर दिया, फिलहाल 'शाही ईदगाह मस्जिद' शब्द को बरकरार रखा।"
विवाद की पृष्ठभूमि
यह विवाद मथुरा में स्थित शाही ईदगाह मस्जिद को लेकर है, जिसे मुगल बादशाह औरंगजेब के शासनकाल में भगवान कृष्ण के जन्मस्थान पर एक मंदिर को तोड़कर बनाए जाने का आरोप है।
1968 में, श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान (मंदिर प्रबंधन) और ट्रस्ट शाही मस्जिद ईदगाह के बीच एक समझौता हुआ था, जिसमें दोनों धार्मिक स्थलों को एक साथ संचालित करने की अनुमति दी गई थी। हालांकि, हाल के मुकदमों में इस समझौते को "धोखाधड़ी और कानूनी रूप से अमान्य" बताया गया है।
कई हिंदू समूहों ने मस्जिद को हटाने की मांग की है, जो विवादित भूमि पर पूजा करने का एकमात्र अधिकार चाहते हैं।
कानूनी कार्यवाही और नवीनतम अपडेट
- मई 2023 में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा की अदालतों में लंबित सभी संबंधित मामलों को अपने पास स्थानांतरित कर दिया।
- मस्जिद कमेटी और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने इस स्थानांतरण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
- दिसंबर 2023 में, हाईकोर्ट ने मस्जिद के निरीक्षण के लिए कोर्ट कमिश्नर नियुक्त करने की अनुमति दी, लेकिन जनवरी 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगा दी।
याचिकाकर्ताओं की ओर से: हरि शंकर जैन, महेंद्र प्रताप सिंह, सौरभ तिवारी और अन्य (वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से)।
प्रतिवादियों की ओर से: तसनीम अहमदी, नसीरुज्जमान, हरे राम त्रिपाठी और अन्य।