इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आरोपी के खिलाफ बार-बार और मनमाने ढंग से उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स एंड एंटी सोशल एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) एक्ट, 1986 के इस्तेमाल पर कड़ी आपत्ति जताई है, और इसे "कानून का निर्लज्ज दुरुपयोग" करार दिया है।
न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल ने आरोपी मंशाद @ सोना की जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए मुजफ्फरनगर के पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाया, जिन्होंने पुराने मामलों के आधार पर बार-बार गैंगस्टर्स एक्ट लगाकर उसे जेल में बनाए रखा।
"यह केवल एसएचओ की मनमानी नहीं बल्कि एसएसपी और जिलाधिकारी, मुजफ्फरनगर की भी घोर लापरवाही को दर्शाता है, जिन्हें संयुक्त बैठक करते समय नियम 5(3)(a) के तहत विवेकपूर्वक विचार करना चाहिए था," कोर्ट ने कहा।
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आरोपी के खिलाफ पहले ही 2025 में गैंगस्टर्स एक्ट के तहत मामले दर्ज थे, इसके बावजूद 2023, 2024 और 2025 के पुराने मामलों के आधार पर फिर से यही कानून लागू कर दिया गया। कोर्ट ने पाया कि ये मामले पहले से ही उपलब्ध थे और यह दोहरावपूर्ण कार्रवाई दुर्भावनापूर्ण प्रतीत होती है।
राज्य सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सरकारी अधिवक्ता (एजीए) कोर्ट को यह स्पष्ट नहीं कर सके कि पुराने मामलों के आधार पर बार-बार गैंगस्टर्स एक्ट क्यों लगाया गया।
पूरे प्रकरण का गंभीरता से संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने आरोपी को अंतरिम जमानत प्रदान की और कुछ शर्तों के साथ रिहाई के आदेश दिए, जिनमें ट्रायल में सहयोग और किसी भी आपराधिक गतिविधि में शामिल न होना शामिल है।
सुप्रीम कोर्ट के विनोद बिहारी लाल और लाल मोहम्मद मामलों सहित कई फैसलों का हवाला देते हुए कोर्ट ने दोहराया कि गैंगस्टर्स एक्ट का यह यांत्रिक और दोहरावपूर्ण उपयोग न केवल कानून का उल्लंघन है बल्कि हाल ही में राज्य सरकार द्वारा जारी दिशानिर्देशों का भी अपमान है, जो सुप्रीम कोर्ट के गोरख नाथ मिश्रा मामले में पारित आदेश के अनुपालन में बनाए गए थे।
हाईकोर्ट ने अब मुजफ्फरनगर के थाना प्रभारी (एसएचओ), वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) और जिलाधिकारी (डीएम) को 7 जुलाई 2025 को अगली सुनवाई पर व्यक्तिगत रूप से पेश होकर अपनी कार्यप्रणाली और लापरवाही को स्पष्ट करने का निर्देश दिया है।
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"एसएचओ, एसएसपी और जिलाधिकारी को कोर्ट के समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर यह स्पष्ट करना होगा कि उनके द्वारा कानून का ऐसा निर्लज्ज दुरुपयोग क्यों किया गया," कोर्ट ने निर्देशित किया।
इसके अतिरिक्त, कोर्ट ने आदेश की प्रति उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक और गृह विभाग के सचिव को जानकारी के लिए भेजने का भी निर्देश दिया है।
केस का शीर्षक - मनशाद @ सोना बनाम उत्तर प्रदेश राज्य