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राजस्थान हाईकोर्ट ने कांस्टेबल को किया बरी, कहा - "निर्णय में मात्र त्रुटि आपराधिक लापरवाही नहीं है"

Shivam Y.

राजस्थान हाईकोर्ट ने दो अंडरट्रायल कैदियों के फरार होने के मामले में कांस्टेबल को बरी किया, कहा कि चरम परिस्थितियों में लिया गया निर्णय अगर मानवीय हो तो उसे आईपीसी की धारा 223 के तहत आपराधिक लापरवाही नहीं माना जा सकता।

राजस्थान हाईकोर्ट ने कांस्टेबल को किया बरी, कहा - "निर्णय में मात्र त्रुटि आपराधिक लापरवाही नहीं है"

राजस्थान हाईकोर्ट ने दो अंडरट्रायल कैदियों के पुलिस हिरासत से फरार होने के मामले में दोषी ठहराए गए एक कांस्टेबल को भारतीय दंड संहिता की धारा 223 के तहत दोषमुक्त कर दिया है, यह कहते हुए कि –

“हर निर्णय में की गई त्रुटि को आपराधिक लापरवाही नहीं कहा जा सकता।”

यह मामला मुश्ताक अली, कांस्टेबल, पुलिस थाना चांदेरिया, चित्तौड़गढ़ से जुड़ा है, जिन्हें एक साथ गुард ड्यूटी और वायरलेस संचार की जिम्मेदारी दी गई थी। लॉकअप की सुविधा न होने के कारण दो अंडरट्रायल कैदियों सुरेश कुमार और रजाक खान को SHO कार्यालय में मेज से हथकड़ी से बांधकर रखा गया था।

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20 और 21 जून, 1994 की रात को अचानक बिजली चली गई और तेज गर्मी के कारण घुटन हो गई। कैदियों ने राहत के लिए चिल्लाना शुरू किया। ऐसे में कांस्टेबल ने मानवीय दृष्टिकोण से उन्हें बाहर खुले स्थान पर ले जाकर एक खंभे से हथकड़ी से बांध दिया। अंधेरे का फायदा उठाकर कैदी भाग निकले और कांस्टेबल को दोषी ठहराया गया।

लेकिन हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति फर्जंद अली ने स्पष्ट किया:

“याचिकाकर्ता का कार्य मानवीय भावना से प्रेरित था, न कि लापरवाही या उद्दंडता से।”

अदालत ने कहा कि धारा 223 आईपीसी के तहत दोषसिद्धि के लिए आवश्यक है कि दोषी का कृत्य "आपराधिक लापरवाही" हो — यानी इतनी गंभीर चूक जो किसी समझदार व्यक्ति की अपेक्षित सावधानी से बहुत नीचे हो।

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सुप्रीम कोर्ट के फैसले जैकब मैथ्यू बनाम पंजाब राज्य का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा:

“आपराधिक लापरवाही में संभावित परिणामों की उपेक्षा और स्पष्ट, रोके जा सकने वाले खतरे को नजरअंदाज करना शामिल होता है।”

कोर्ट ने यह भी कहा:

“जब पुलिस अधिकारी को दोहरी जिम्मेदारी दी जाती है — जैसे कि पहरा देना और वायरलेस ऑपरेशन संभालना — तब उनसे त्रुटिहीन निगरानी की अपेक्षा यथार्थवाद के साथ की जानी चाहिए।”

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कोर्ट ने निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदुओं पर गौर किया:

  • पुलिस स्टेशन में लॉकअप की सुविधा नहीं थी।
  • कांस्टेबल को एक साथ गुार्ड और वायरलेस ऑपरेटर का कार्य सौंपा गया था।
  • भीषण गर्मी और घुटन के कारण कैदियों की स्थिति बिगड़ रही थी।
  • कैदियों को हथकड़ी के साथ ही स्थानांतरित किया गया था।

अंत में कोर्ट ने कहा:

“जब यह साबित नहीं हो पाया कि याचिकाकर्ता का कार्य इतनी गंभीर लापरवाही थी कि उस पर धारा 223 के तहत अपराध तय किया जाए, तो दोषसिद्धि टिक नहीं सकती।”

कोर्ट ने यह माना कि याचिकाकर्ता ने परिस्थितियों को देखते हुए व्यावहारिक और मानवीय निर्णय लिया था, जो कि कर्तव्य से बचने का संकेत नहीं देता। इसलिए ट्रायल और अपीलीय अदालतों के निर्णयों को रद्द करते हुए कांस्टेबल को बरी कर दिया गया।

शीर्षक: मुश्ताक अली बनाम राजस्थान राज्य

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