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दिल्ली उच्च न्यायालय ने पति की याचिका खारिज की: पत्नी और बच्चे के लिए ₹50,000 रुपये मासिक गुजारा भत्ता बरकरार

Shivam Y.

दिल्ली हाई कोर्ट ने एक पत्नी और नाबालिग बच्चे के लिए ₹50,000 प्रति माह के अंतरिम गुजारा भत्ता आदेश को बरकरार रखा, जिसमें धारा 125 सीआरपीसी के तहत पति के कानूनी दायित्व पर जोर दिया गया। न्यायालय के तर्क और कानूनी सिद्धांतों को जानें।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने पति की याचिका खारिज की: पत्नी और बच्चे के लिए ₹50,000 रुपये मासिक गुजारा भत्ता बरकरार

24 जुलाई, 2025 के एक हालिया फैसले में, दिल्ली हाई कोर्ट ने एक पत्नी और उसके नाबालिग बच्चे के लिए ₹50,000 प्रति माह के अंतरिम गुजारा भत्ता आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया। न्यायालय ने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत पति के कानूनी और नैतिक दायित्व को मजबूती से रेखांकित किया।

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मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता, ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें उन्हें अपनी पत्नी और उनके पांच साल के बेटे को अंतरिम गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया गया था। दंपति ने 2017 में शादी की थी, और पत्नी ने क्रूरता और उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए अलग रहने का फैसला किया था। उसने धारा 125 सीआरपीसी के तहत गुजारा भत्ता मांगा, यह दावा करते हुए कि पति को पैतृक संपत्ति से ₹4 लाख प्रति माह की आय होती है। फैमिली कोर्ट ने अंतरिम राहत के रूप में ₹50,000 प्रति माह की राशि देने का आदेश दिया, जिसके बाद पति ने यह पुनरीक्षण याचिका दायर की।

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पति ने दावा किया कि आदेश उनकी वित्तीय सीमाओं पर विचार किए बिना पारित किया गया था। उन्होंने तर्क दिया:

  • वे बेरोजगार थे और अपनी बीमार माँ पर निर्भर थे।
  • पैतृक संपत्ति से किराये की आय (₹73,000 प्रति माह) परिवार के सदस्यों में बंटती थी और उनकी माँ को मिलती थी।
  • पत्नी योग्य थी और स्वयं का भरण-पोषण करने में सक्षम थी।
  • न्यायालय ने उनकी स्थगन याचिका को अस्वीकार कर दिया, जिससे प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन हुआ।

हाई कोर्ट ने इन तर्कों को खारिज करते हुए स्थापित कानून का हवाला दिया:

"एक सक्षम पति अपनी पत्नी और बच्चे के भरण-पोषण के दायित्व से बच नहीं सकता। वित्तीय कठिनाइयाँ या बेरोजगारी का बहाना, बिना ठोस सबूत के, स्वीकार्य नहीं है।"
-- शमीमा फारूकी बनाम शाहिद खान (2015) 5 एससीसी 705

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मुख्य टिप्पणियों में शामिल थे:

प्राथमिक आकलन: अंतरिम चरण में, आय का विस्तृत प्रमाण अनिवार्य नहीं होता। न्यायालय ने पत्नी के हलफनामे और पति के किराये की आय को स्वीकार करने पर भरोसा किया।

नैतिक और कानूनी दायित्व: पति का दायित्व व्यक्तिगत आय से परे है। उनकी संयुक्त परिवार की संपत्ति और निवास ने उनकी वित्तीय क्षमता को दर्शाया।

बच्चे का कल्याण: नाबालिग की जरूरतों (शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल) ने राशि को उचित ठहराया, भले ही पत्नी योग्य क्यों न हो।

प्राकृतिक न्याय: पति के पास दस्तावेज जमा करने के अवसर थे, लेकिन उन्होंने बिना वैध कारण के स्थगन मांगा।

    न्यायालय ने अंजू गर्ग बनाम दीपक कुमार गर्ग (2022) का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पतियों को परिवार का भरण-पोषण करना चाहिए, जब तक कि वे अक्षम साबित न हों।

    मामले का शीर्षक: X & Y

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