भारत के सुप्रीम कोर्ट ने वर्ली हिट एंड रन मामले में एक अहम कानूनी मुद्दे पर अपना आदेश सुरक्षित रखा है। कोर्ट यह तय कर रही है कि क्या हर आपराधिक मामले, जिसमें भारतीय दंड संहिता (IPC) भी शामिल है, में गिरफ्तारी से पहले या तुरंत बाद गिरफ्तारी के कारणों को लिखित रूप में देना अनिवार्य है या नहीं।
न्यायमूर्ति बीआर गवई और एजी मसीह की पीठ ने मिहिर शाह की उस याचिका पर यह मुद्दा उठाया, जिसमें उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उनकी रिहाई यह कहते हुए खारिज कर दी गई थी कि गिरफ्तारी अवैध नहीं थी।
"हमारे सामने जो प्रश्न है वह यह है कि क्या IPC जैसे मामलों में भी, हर गिरफ्तारी में, आरोपी को गिरफ्तारी के आधार गिरफ्तारी से पहले या तुरंत बाद देना जरूरी है?" — न्यायालय ने कहा।
वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. एएम सिंघवी ने मिहिर शाह की ओर से बहस करते हुए कहा कि दस महीने हिरासत में बीत जाने के बावजूद अब तक गिरफ्तारी के कारण लिखित रूप में नहीं दिए गए। उन्होंने कहा कि गंभीर मामलों में भी यह अनदेखी नहीं की जा सकती।
“कठिन मामलों से खराब कानून नहीं बनना चाहिए।” — सिंघवी
Read also:- गलत अभियोजन के पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए कानूनी ढांचा बनाने की जरूरत: केरल हाईकोर्ट
इस पर महाराष्ट्र सरकार की वकील ने कहा कि आरोपी को गिरफ्तारी के कारण मौखिक रूप से पंचों की उपस्थिति में बताए गए थे और उसके पिता को फोन पर सूचित किया गया था। उन्होंने यह भी बताया कि मिहिर फरार था और उसे वर्ली थाने के बजाय किसी अन्य थाने की पुलिस ने पकड़ा।
न्यायमूर्ति गवई ने टिप्पणी की:
"आम तौर पर गिरफ्तारी के बाद 24 घंटे के भीतर कारण क्यों नहीं बताए जाने चाहिए? यदि कोई अपवाद हो, तो वह समझा जा सकता है।"
कोर्ट ने न्याय मित्र अधिवक्ता श्री सिंह की दलीलें भी सुनीं, जिन्होंने संविधान के अनुच्छेद 22 और आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 50 का हवाला देते हुए गिरफ्तारी के कारणों को बताने की कानूनी आवश्यकता को स्पष्ट किया।
"गिरफ्तारी के कारणों की जानकारी देना आरोपी का मौलिक अधिकार है।" — न्याय मित्र
"लेकिन यह अनिवार्य नहीं है कि जानकारी लिखित रूप में ही दी जाए, बस यह ‘यथाशीघ्र संभव’ दी जानी चाहिए।"
उन्होंने यह भी कहा कि अगर पुलिस किसी आरोपी का पीछा कर रही है, तो प्राथमिकता गिरफ्तारी होती है, और कारणों की जानकारी बाद में थाने पर दी जा सकती है। कोर्ट केस डायरी से यह भी जांच सकती है कि आरोपी को जानकारी दी गई थी या नहीं।
न्यायमूर्ति मसीह ने पूछा:
"क्या रिमांड से पहले गिरफ्तारी के कारण लिखित रूप में नहीं दिए जा सकते?"
न्याय मित्र ने जवाब दिया कि ऐसा किया जाना चाहिए, लेकिन वर्तमान कानून इसकी अनिवार्यता नहीं बताता। हालांकि, यह पुलिस की जिम्मेदारी होती है कि वह यह साबित करे कि गिरफ्तारी के आधार बताए गए थे।
इस मामले के साथ अन्य समान मामलों को भी जोड़ा गया, जहां चार्जशीट दाखिल हो चुकी थी और आरोपियों को लगभग दस महीने से अधिक हिरासत में रखा गया था, इसलिए उन्हें शर्तों के साथ जमानत दे दी गई।
सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति गवई ने व्यावहारिकता पर सवाल उठाया:
"क्या वास्तव में पुलिस को किसी को रंगे हाथों गंभीर अपराध करते पकड़े जाने पर भी पहले लिखित कारणों के लिए थाने जाना चाहिए?"
सिंघवी ने आशंका जताई कि अगर अदालत यह कह दे कि हर मामले में लिखित कारण देना जरूरी नहीं है, तो इसका दुरुपयोग हो सकता है। इस पर कोर्ट ने संतुलन बनाए रखने की बात कही।
"हम नहीं चाहते कि आरोपी हमारे निर्णयों का दुरुपयोग कर कानूनी रास्तों से बच जाए।" — न्यायमूर्ति गवई
मामले का नाम: मिहिर राजेश शाह बनाम महाराष्ट्र राज्य व अन्य, SLP(Crl) No. 17132/2024 (संबंधित मामलों सहित)