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जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने एनडीपीएस मामले में एफएसएल रिपोर्ट गुम होने और साक्ष्यों पर संदेह का हवाला देते हुए जमानत दी

Shivam Y.

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने एनडीपीएस मामले में जमानत दी, एफएसएल रिपोर्ट की अनुपस्थिति और साक्ष्यों की कमी पर जताई चिंता। कोर्ट ने व्यावसायिक मात्रा का कोई पुख्ता प्रमाण नहीं पाया, आरोपी दो साल से हिरासत में था।

जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने एनडीपीएस मामले में एफएसएल रिपोर्ट गुम होने और साक्ष्यों पर संदेह का हवाला देते हुए जमानत दी

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने हाल ही में एनडीपीएस अधिनियम के तहत गिरफ्तार तौसीफ अहमद खान को जमानत दे दी। कोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष आरोपी के पास व्यावसायिक मात्रा में मादक पदार्थ की प्राथमिक दृष्टया पुष्टि नहीं कर सका, क्योंकि जांच में कई खामियां और आवश्यक फोरेंसिक सबूतों की अनुपस्थिति पाई गई।

न्यायमूर्ति संजय धर की एकल पीठ ने भारत नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 483 के तहत दायर जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए अभियोजन की कमजोरियों और गवाहों की असंगतियों को गंभीरता से लिया। कोर्ट ने पाया कि आरोपी के पास से बरामद 11 कोडीन सिरप की बोतलों में से केवल 3 ही फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (FSL) को जांच के लिए भेजी गईं।

“प्रथम दृष्टया, रेडिंग टीम के प्रमुख का यह बयान अभियोजन की कहानी पर संदेह उत्पन्न करता है।”
न्यायमूर्ति संजय धर

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अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि रेड एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट की देखरेख में हुई थी। हालांकि, मजिस्ट्रेट ने अपने बयान में साफ किया कि वह रेड में शामिल नहीं थे और केवल पुलिस द्वारा लाई गई सामग्री को सील किया था। इस विरोधाभास से जब्ती और एकत्रित साक्ष्य की वैधता पर गंभीर सवाल खड़े हुए।

साथ ही, कोर्ट ने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ता का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है और ऐसा कोई सबूत नहीं है कि वह जमानत मिलने पर दोबारा ऐसा अपराध करेगा। आरोपी पहले से ही दो वर्षों से न्यायिक हिरासत में था और अभियोजन के केवल दो गवाह—FSL विशेषज्ञ और जांच अधिकारी—बाकी थे।

“ऐसे युक्तियुक्त आधार हैं जिससे यह माना जा सकता है कि याचिकाकर्ता व्यावसायिक मात्रा में मादक पदार्थ रखने का दोषी नहीं है।”
न्यायमूर्ति संजय धर

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कोर्ट ने कहा कि जमानत के स्तर पर साक्ष्यों की बारीकी से जांच करना उचित नहीं है। उपलब्ध तथ्यों के सामान्य मूल्यांकन से यह स्पष्ट हुआ कि आरोपी को लंबी अवधि तक हिरासत में रखने का कोई ठोस आधार नहीं है। दोनों बचे हुए गवाह सरकारी अधिकारी हैं, जिससे साक्ष्य से छेड़छाड़ की संभावना भी नगण्य है।

अतः कोर्ट ने ₹50,000 के व्यक्तिगत बांड और दो जमानतदारों की शर्त पर जमानत प्रदान की, साथ ही क्षेत्र छोड़ने, गवाहों को डराने या दोबारा ऐसे अपराध में लिप्त होने से मना किया।

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यह मामला एफआईआर संख्या 37/2023 के अंतर्गत NDPS अधिनियम की धारा 8, 21 और 29 के तहत दर्ज किया गया था और विशेष न्यायाधीश (NDPS मामलों) श्रीनगर के समक्ष लंबित है। अभियोजन के अनुसार, आरोपी पर बच्चों सहित अन्य को मादक पदार्थ बेचने का आरोप था। हालांकि, जब्त की गई वस्तुओं की अधूरी रासायनिक जांच के कारण "व्यावसायिक मात्रा" सिद्ध नहीं हो सकी।

“जमानत के स्तर पर साक्ष्यों की सूक्ष्म जांच की अनुमति नहीं है।”
न्यायमूर्ति संजय धर

उपस्थिति:

  • याचिकाकर्ता के अधिवक्ता: श्री अबू ओवैस पंडित
  • उत्तरदाताओं की ओर से: श्री फहीम निसार शाह, सरकारी अधिवक्ता, व सुश्री महा मजीद

मामले का शीर्षक: तौसीफ अहमद खान बनाम जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश एवं अन्य, 2025