दिल्ली हाईकोर्ट ने हिंदुस्तान हाइड्रॉलिक्स प्रा. लि. बनाम भारत संघ मामले में मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 34 के तहत दायर याचिका को खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी ने फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि पंचाट निर्णय अन्यथा न्यायसंगत और तर्कयुक्त है, तो उसमें की गई मामूली या महत्वहीन त्रुटियाँ उसे चुनौती देने का आधार नहीं हो सकतीं।
"यदि किसी निर्णय में कुछ छोटी-मोटी गलतियाँ या चूके हैं, तो भी वह निर्णय अमान्य नहीं हो जाता, जब तक उसका मूल तर्क और प्रक्रिया न्यायोचित हो," अदालत ने कहा।
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मामले की पृष्ठभूमि
यह विवाद हिंदुस्तान हाइड्रॉलिक्स प्रा. लि. द्वारा भारत सरकार को मशीन आपूर्ति को लेकर उत्पन्न हुआ। अनुबंध के अनुसार, मशीन 21 जून 2005 से 10 माह के भीतर दी जानी थी, परंतु यह 28 जुलाई 2008 को—तीन वर्ष से अधिक देरी के बाद—सौंपी गई। गुणवत्ता से जुड़ी खामियों के चलते उत्तरदाता ने मशीन को अस्वीकार कर दिया, जबकि याचिकाकर्ता ने ₹14.32 लाख की शेष राशि की मांग करते हुए अस्वीकृति को चुनौती दी।
मामला मध्यस्थता में गया और पंचाट न्यायाधिकरण ने उत्तरदाता के पक्ष में निर्णय सुनाया। याचिकाकर्ता ने यह कहते हुए निर्णय को चुनौती दी कि पंचाट ने साक्ष्यों की अनदेखी की, अनुबंध की गलत व्याख्या की और गलत निष्कर्ष निकाले।
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न्यायमूर्ति ओहरी ने कहा:
"पंचाट ने अनुबंध की धाराओं की उचित व्याख्या की। यह अनुबंध की शर्तों को दोबारा नहीं लिख रहा था, बल्कि आपूर्ति की तारीख को सफल कमीशनिंग की तारीख के रूप में पढ़ रहा था, जैसा कि अनुबंध की प्रकृति में अपेक्षित था।"
याचिकाकर्ता की मुख्य दलील अनुच्छेद 2102 पर आधारित थी, जिसके अनुसार मशीन की आपूर्ति के 45 दिनों के भीतर अस्वीकृति की जा सकती थी। अदालत ने स्पष्ट किया कि "आपूर्ति" से अभिप्राय केवल भौतिक आपूर्ति नहीं, बल्कि सफल कमीशनिंग की तिथि से है, क्योंकि यह मशीन प्रदर्शन-आधारित थी।
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जहाँ तक डिजाइन में भिन्नता की बात है, याचिकाकर्ता ने स्वीकार किया था कि अनुबंध में निर्धारित रोलर गाइडिंग सिस्टम के बजाय फ्लैट गाइडिंग सिस्टम का उपयोग किया गया था।
"यह सही है कि पंचाट ने कुछ पत्रों पर विचार नहीं किया या कुछ बिंदुओं की गलत व्याख्या की, परंतु मूल निर्णय—कि मशीन अनुबंध के विनिर्देशों से भिन्न थी—सही था," अदालत ने कहा।
अदालत ने माना कि:
- याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए त्रुटियों के आधार पंचाट निर्णय को रद्द करने के लिए पर्याप्त नहीं थे।
- स्वयं याचिकाकर्ता द्वारा स्वीकार की गई डिजाइन की भिन्नता ही मशीन की अस्वीकृति को उचित ठहराने के लिए पर्याप्त थी।
"याचिकाकर्ता ऐसी स्पष्ट रूप से महत्वहीन त्रुटियों और चूकों का लाभ उठाकर निर्णय को चुनौती नहीं दे सकता," अदालत ने निष्कर्ष निकाला।
अतः धारा 34 के तहत दायर याचिका खारिज कर दी गई।
केस का शीर्षक: हिंदुस्तान हाइड्रोलिक्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम यूनियन ऑफ इंडिया
केस नंबर: ओ.एम.पी. (कॉम) 6/2017
याचिकाकर्ता के वकील: श्री फैसल जफर, अधिवक्ता
प्रतिवादी के वकील: श्री मुकुल सिंह (सीजीएससी), सुश्री इरा सिंह और श्री भरत सिंह, अधिवक्ता।