सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को आदेश दिया कि ओडिशा हाई कोर्ट टांकधर त्रिपाठी के खिलाफ दायर चुनाव याचिका पर दोबारा विचार करे। त्रिपाठी को 2024 ओडिशा विधानसभा चुनावों में झारसुगुड़ा सीट से विजयी घोषित किया गया था। यह याचिका उपविजेता दीपाली दास ने दायर की थी, जिसमें आरोप लगाया गया कि त्रिपाठी ने अपनी संपत्तियों और आपराधिक मामलों की पूरी जानकारी नहीं दी और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) में भी गड़बड़ी रही।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट ने यह पर्याप्त रूप से नहीं देखा कि याचिकाकर्ता द्वारा दाखिल किया गया फॉर्म 25 हलफनामा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की शर्तों के अनुसार था या नहीं। शीर्ष अदालत ने कहा,
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"यह आवश्यक है कि हाई कोर्ट हलफनामे की विशिष्ट खामियों की पहचान करे और यह तय करे कि ये खामियां घातक थीं या इन्हें सुधारा जा सकता था।"
मामले की पृष्ठभूमि
झारसुगुड़ा विधानसभा सीट का चुनाव 20 मई 2024 को हुआ था और परिणाम 4 जून को घोषित हुए। त्रिपाठी ने 1,333 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की। इसके बाद दीपाली दास ने ओडिशा हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और आरोप लगाया कि त्रिपाठी ने अपने आपराधिक मामलों की जानकारी छुपाकर और उन्हें समाचार पत्रों में ठीक से प्रकाशित न करके “भ्रष्ट आचरण” किया। उन्होंने यह भी दावा किया कि 6,000 से अधिक वोट ईवीएम के कंट्रोल यूनिट नंबरों में गड़बड़ी के कारण प्रभावित हुए, जो जीत के अंतर से कहीं ज्यादा थे।
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हालांकि, हाई कोर्ट ने प्रारंभिक स्तर पर याचिका को खारिज करने से इनकार किया और दास को नया हलफनामा दाखिल करके खामियां दूर करने की अनुमति दी। त्रिपाठी ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
अदालत ने कहा कि जहां रविंदर सिंह बनाम जन्बेजा सिंह जैसे पुराने फैसलों ने फॉर्म 25 के साथ सख्त अनुपालन का रुख अपनाया था, वहीं जी.एम. सिद्धेश्वर बनाम प्रसन्ना कुमार और ए. मन्जू बनाम प्रज्वल रेवन्ना जैसे बाद के फैसलों ने अधिक लचीला दृष्टिकोण लिया।
इन निर्णयों में कहा गया कि "पर्याप्त अनुपालन" (substantial compliance) पर्याप्त है और खामियों को कार्यवाही के दौरान भी सुधारा जा सकता है।
पीठ ने स्पष्ट किया कि असली सवाल यह है कि क्या ऐसी खामियों को निर्धारित समय-सीमा के भीतर ही ठीक करना होगा या फिर हाई कोर्ट बाद में भी इसकी अनुमति दे सकता है। चूंकि ओडिशा हाई कोर्ट ने इन पहलुओं पर उचित विचार नहीं किया था, इसलिए मामला विस्तृत जांच के लिए वापस भेजा गया।
केस का शीर्षक: टंकाधर त्रिपाठी बनाम दीपाली दास