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केरल उच्च न्यायालय: बीएनएसएस के तहत निहित शक्तियों का इस्तेमाल अवैधानिकता के बिना घरेलू हिंसा अधिनियम के आदेशों को चुनौती देने के लिए नहीं किया जा सकता

Shivam Y.
केरल उच्च न्यायालय: बीएनएसएस के तहत निहित शक्तियों का इस्तेमाल अवैधानिकता के बिना घरेलू हिंसा अधिनियम के आदेशों को चुनौती देने के लिए नहीं किया जा सकता

हाल ही में केरल हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 528 के तहत डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट, 2005 (DV एक्ट) के अंतर्गत पारित अंतरिम आदेशों को चुनौती केवल “स्पष्ट अवैधता या गंभीर अनियमितता” की स्थिति में ही दी जा सकती है।

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मामला टाइटस बनाम स्टेट ऑफ केरल एवं अन्य शीर्षक के तहत उच्च न्यायालय के समक्ष एक बिना नंबर के आपराधिक विविध मामला (Crl.M.C No. 5751 of 2025) के रूप में प्रस्तुत हुआ था। याचिकाकर्ता टाइटस ने ग्राम न्यायालय, वेल्लनाडु द्वारा DV एक्ट की धारा 12(1) के तहत पारित एक अंतरिम आदेश को चुनौती दी थी।

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हालांकि, रजिस्ट्री ने एक त्रुटि इंगित की और यह प्रश्न उठाया कि जब DV एक्ट की धारा 29 के तहत अपील का प्रावधान मौजूद है, तब धारा 528 BNSS के तहत याचिका की स्वीकार्यता पर विचार किया जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति जी. गिरीश ने इस विषय पर टिप्पणी की:

“केवल उन्हीं मामलों में जहां स्पष्ट अवैधता और गंभीर अनियमितता हो, हाई कोर्ट को BNSS की धारा 528 (पूर्व में Cr.P.C की धारा 482) के तहत क्षेत्राधिकार का प्रयोग करना उचित होगा।”

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कोर्ट ने विजयलक्ष्मी अम्मा वी.के. बनाम बिंदु वी., नरेश पॉटरीज़ बनाम आरती इंडस्ट्रीज, तथा सौरभ कुमार त्रिपाठी बनाम विधि रावल जैसे मामलों पर भरोसा किया, जिनमें यह दोहराया गया कि DV एक्ट जैसे कल्याणकारी कानून के मामलों में उच्च न्यायालय को अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग “सावधानीपूर्वक और दुर्लभ मामलों में ही” करना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट के सौरभ कुमार त्रिपाठी फैसले से कोर्ट ने उद्धृत किया:

“हाई कोर्ट को बहुत सावधानीपूर्वक और धीमे व्यवहार करना चाहिए। हस्तक्षेप केवल तभी किया जाना चाहिए जब मामला स्पष्ट रूप से गंभीर अवैधता या कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग का हो… जब तक अदालतें इस क्षेत्राधिकार का संयमित उपयोग नहीं करतीं, तब तक DV एक्ट, 2005 के निर्माण का उद्देश्य विफल हो जाएगा।”

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केरल हाई कोर्ट ने देखा कि टाइटस द्वारा चुनौती दिए गए अंतरिम आदेश में ऐसी कोई गंभीर अवैधता या अनियमितता नहीं है। साथ ही, कोर्ट ने बताया कि याचिकाकर्ता के पास वैकल्पिक उपाय उपलब्ध हैं:

“याचिकाकर्ता संबंधित न्यायालय के समक्ष उसी आदेश को संशोधित या रद्द करने हेतु आवेदन कर सकता है अथवा DV एक्ट की धारा 29 के अंतर्गत अपील दायर कर सकता है।”

रजिस्ट्री द्वारा दर्ज की गई त्रुटि को सही ठहराते हुए उच्च न्यायालय ने यह निष्कर्ष निकाला कि BNSS की धारा 528 के तहत दायर यह याचिका स्वीकार्य नहीं है और याचिका को याचिकाकर्ता को लौटाने का निर्देश दिया।

मामला: टाइटस बनाम स्टेट ऑफ केरल एवं अन्य

मामला संख्या: Crl.M.C. No. 5751 of 2025 (फाइलिंग संख्या)

आदेश की तिथि: 1 जुलाई 2025

याचिकाकर्ता के वकील: अधिवक्ता एम.आर. सरिन

प्रतिवादी के वकील: लोक अभियोजक (प्रथम प्रतिवादी)

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