Logo
Court Book - India Code App - Play Store

Loading Ad...

लिव-इन पार्टनर के दुरुपयोग का मामला: दिल्ली हाईकोर्ट ने झूठे आरोप के लिए 20 हजार रुपये का जुर्माना लगाया

Shivam Y.

दिल्ली हाईकोर्ट ने लिव-इन पार्टनर के खिलाफ महिला द्वारा दर्ज यौन उत्पीड़न की FIR को गलतफहमी का मामला मानते हुए रद्द किया, और कानून के दुरुपयोग पर ₹20,000 का जुर्माना लगाया।

लिव-इन पार्टनर के दुरुपयोग का मामला: दिल्ली हाईकोर्ट ने झूठे आरोप के लिए 20 हजार रुपये का जुर्माना लगाया

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महिला द्वारा अपने लिव-इन पार्टनर पर यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज करने पर ₹20,000 का जुर्माना लगाया है। अदालत ने कहा कि इस प्रकार के गंभीर आरोप लापरवाही या बिना सोच-विचार के नहीं लगाए जा सकते। यह फैसला आपराधिक कानून के दुरुपयोग पर अदालत की सख्त रुख को दर्शाता है।

Read in English

अनिल वर्मा बनाम स्टेट गवर्नमेंट ऑफ एनसीटी ऑफ दिल्ली एवं अन्य नामक मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने की। याचिकाकर्ता ने भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 69 और 351(2) के तहत दर्ज FIR को रद्द करने की मांग की थी, जो थाना प्रशांत विहार, दिल्ली में दर्ज की गई थी।

पक्षकार पिछले 15 वर्षों से करीबी संबंध में थे और जनवरी 2019 से लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे थे। महिला ने आरोप लगाया कि पुरुष ने उससे शादी का वादा किया था जो उसके तलाक के पूरा होने के बाद पूरी की जाएगी। हालांकि, तलाक की दूसरी अर्जी दायर होने से पहले दोनों के बीच गलतफहमियां उत्पन्न हुईं और महिला ने FIR दर्ज कराई।

Read also:- केरल उच्च न्यायालय में याचिका दायर: विपंचिका मौत मामला - परिवार ने पारदर्शी जांच और यूएई से अवशेषों की वापसी की मांग की

बाद में महिला ने अदालत में यह स्वीकार किया कि शिकायत भावनात्मक और चिकित्सकीय तनाव की स्थिति में दर्ज की गई थी, और अब वह इस मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहती।

“भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 69 और 351(2) के तहत शारीरिक उत्पीड़न और अनुचित रोकथाम जैसे गंभीर आरोप लापरवाही से दर्ज नहीं किए जा सकते,”
— दिल्ली हाईकोर्ट

याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि मामले को आगे बढ़ाना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। दूसरी ओर, राज्य पक्ष के वकील ने कहा कि यौन शोषण जैसे गंभीर आरोपों में आपसी समझौते के आधार पर मामला रद्द करना महिलाओं की सुरक्षा को कमजोर करता है।

Read also:- कर्नाटक हाईकोर्ट ने नाबालिग के यौन उत्पीड़न के लिए POCSO के तहत दोषी ठहराए गए व्यक्ति को 20 साल की जेल की सजा सुनाई

“यह न्यायालय यह नजरअंदाज नहीं कर सकता कि यदि किसी व्यक्ति को झूठे आरोप में फंसाया गया हो या गलतफहमी के कारण शिकायत दर्ज हुई हो, तो ऐसे व्यक्ति को मुकदमे की प्रक्रिया से गुजारना न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांतों के विपरीत होगा,”
— न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा

सभी पक्षों की दलीलों को सुनने और रिकॉर्ड की समीक्षा के बाद, अदालत ने FIR को रद्द कर दिया, लेकिन महिला पर ₹20,000 का जुर्माना लगाया। अदालत ने कहा कि इस प्रकार की शिकायतें सिर्फ आरोपी नहीं बल्कि पूरी न्याय व्यवस्था को प्रभावित करती हैं।

“यह राशि चार सप्ताह के भीतर दिल्ली हाईकोर्ट लीगल सर्विसेज कमेटी में जमा करानी होगी,”
— दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश

शीर्षक: अनिल वर्मा बनाम दिल्ली राज्य सरकार एवं अन्य