ओडिशा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि प्यार की असफलता को अपराध नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने एक व्यक्ति के खिलाफ बलात्कार के आरोपों को खारिज कर दिया, जिन पर शादी का झूठा वादा कर शारीरिक संबंध बनाने का आरोप था। न्यायमूर्ति डॉ. संजीव कुमार पाणिग्रही की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि हर टूटा हुआ वादा अपराध नहीं बनता, और न ही हर असफल रिश्ता अदालत में खींचा जाना चाहिए।
"कानून हर टूटे हुए वादे को अपराध नहीं मानता, न ही हर असफल रिश्ते को धोखा समझता है।" — ओडिशा हाईकोर्ट
मामले की पृष्ठभूमि
पीड़िता ने आरोप लगाया कि 2012 में कंप्यूटर कोर्स के दौरान उनकी मुलाकात आरोपी से हुई, और धीरे-धीरे दोनों के बीच प्यार हो गया।
पीड़िता ने दावा किया कि:
- आरोपी ने शादी का वादा कर शारीरिक संबंध बनाए।
- शादी रजिस्ट्रेशन से पहले ही पीछे हट गए।
- उन्होंने गर्भनिरोधक दवाएं दीं ताकि वह गर्भवती न हो सकें।
- रिश्ता 9 साल तक चला, लेकिन शादी नहीं हुई।
2023 में, पीड़िता ने सिविल कोर्ट में एक याचिका दायर कर खुद को आरोपी की कानूनी पत्नी घोषित करने की मांग की और उन्हें किसी और से शादी करने से रोकने की भी अपील की। साथ ही, 2021 में एफआईआर दर्ज कराई, जिसमें भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376(2)(a), 376(2)(i), 376(2)(n), 294, 506 और 34 के तहत आरोप लगाए गए।
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कोर्ट ने देखा कि पीड़िता के एफआईआर और सिविल केस के बयान में अंतर्विरोध था। एफआईआर में जहां बलात्कार के आरोप लगाए गए, वहीं सिविल केस में वह खुद को आरोपी की पत्नी बताती हैं।
"अगर कोई महिला लंबे समय तक स्वेच्छा से रिश्ते में रहती है, तो केवल शादी न होने पर उसे अपराध नहीं कहा जा सकता।" — ओडिशा हाईकोर्ट
1. क्या सहमति बाधित थी?
कोर्ट ने प्रमोद सूर्यभान पवार बनाम महाराष्ट्र राज्य केस का हवाला देते हुए कहा कि अगर:
- शादी का वादा झूठा और दुर्भावनापूर्ण हो।
- वादा न करने की पहले से योजना हो।
तभी इसे बलात्कार माना जा सकता है। 9 साल तक स्वेच्छा से चले रिश्ते में सहमति को झूठे वादे से बाधित नहीं माना जा सकता।
2. कानून को व्यक्तिगत रिश्तों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए
कोर्ट ने जी. अच्युत कुमार बनाम ओडिशा राज्य केस में कहा था कि बलात्कार के कानून का इस्तेमाल व्यक्तिगत रिश्तों को नियंत्रित करने के लिए नहीं होना चाहिए।
"बलात्कार कानून का उद्देश्य महिलाओं की रक्षा करना है, न कि असफल रिश्तों के लिए बदला लेने का जरिया बनना।"
ओडिशा हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपने विशेषाधिकार का उपयोग करते हुए आरोपी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया।
"न्यायपालिका का उद्देश्य सच्चे अपराधों का निवारण करना है, न कि व्यक्तिगत असफलताओं पर मुकदमे चलाना।"
Case Title: Manoj Kumar Munda v. State of Odisha & Anr.
Case No: CRLMC No. 4485 of 2024
Date of Judgment: February 14, 2025
Counsel for the Petitioner: Mr. Arun Kumar Acharya, Advocate
Counsel for the Respondents: Ms. J. Sahoo, Addl. Standing Counsel for the State; Mr. K. A. Guru, Advocate for the Prosecutrix