17 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने कोविड-19 महामारी के दौरान दायर की गई उन याचिकाओं का निपटारा कर दिया जो कोर्ट की कार्यवाही को वर्चुअल माध्यम से देखने की सुविधा की मांग को लेकर दायर की गई थीं। इन याचिकाओं में मुख्य रूप से यह सुनिश्चित करने की मांग की गई थी कि वकीलों और वादकारियों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग (VC) लिंक के माध्यम से कोर्ट कार्यवाही में भाग लेने की सुविधा प्राप्त हो।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने याचिकाकर्ताओं को इस संबंध में संबंधित हाईकोर्ट और उनकी ई-कमेटियों के समक्ष अपनी शिकायतें रखने की अनुमति दी, जो इस प्रकार के प्रशासनिक मामलों को देखती हैं।
“इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट द्वारा गठित विभिन्न समितियों जैसे कि ई-कमेटी, NCMP, SCMS कमेटियों द्वारा प्रशासनिक पक्ष पर निपटाया जा सकता है। याचिकाकर्ता इन समितियों के समक्ष सहायक सामग्री के साथ सहयोग कर सकते हैं,” कोर्ट ने अपने आदेश में कहा।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने एक महत्वपूर्ण समस्या को उजागर किया — जिन वकीलों और वादकारियों के मामले किसी दिन की सूची में नहीं होते, वे दिए गए VC लिंक के माध्यम से सुनवाई में शामिल नहीं हो पाते। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि वर्चुअल कोर्ट कार्यवाही तक पहुंच एक मौलिक अधिकार के समान है और इसे सभी के लिए सुलभ होना चाहिए।
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याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा सिस्टम का उदाहरण देते हुए कहा:
“सुप्रीम कोर्ट की सभी 16-17 कोर्ट्स के स्थायी लिंक होते हैं। कोई भी व्यक्ति लिंक पर क्लिक करके कार्यवाही देख सकता है। जो वकील पेश नहीं हो रहे होते, उनका वीडियो और माइक म्यूट रहता है, लेकिन वे सुन सकते हैं। यह ओपन कोर्ट की तरह पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।”
हालांकि उन्होंने यह भी बताया कि देश के कई हाईकोर्ट में ऐसा नहीं है। भले ही लिंक सूची में मौजूद हो, अगर कोई वकील या वादकारी उस विशेष मामले में पक्ष नहीं है, तो उसे कार्यवाही में शामिल होने की अनुमति नहीं मिलती।
एक और समस्या यह बताई गई कि कुछ अदालतों में जब लिंक सबके लिए उपलब्ध होते हैं, तब भी जज का माइक म्यूट रहता है जिससे उनकी टिप्पणियां सुनाई नहीं देतीं। याचिकाकर्ता ने विशेष रूप से मध्य प्रदेश और राजस्थान हाईकोर्ट्स में इस समस्या का उल्लेख किया।
याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि कुछ हाईकोर्ट्स सुप्रीम कोर्ट के स्वप्निल त्रिपाठी बनाम सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया मामले में दिए गए निर्णय का पालन नहीं कर रहे, जिसमें कार्यवाहियों के लाइव स्ट्रीमिंग की अनुमति दी गई थी। ऐसे में यह अवमानना का मामला बनता है।
“अगर लिंक सबके लिए उपलब्ध हैं लेकिन जज का माइक म्यूट है, तो फिर कोई भी कार्यवाही सुनने योग्य नहीं रहती। यह समस्या विशेष रूप से मध्य प्रदेश और राजस्थान हाईकोर्ट्स में आ रही है,” याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया।
याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता सिद्धार्थ आर. गुप्ता और श्रीराम परक्कट ने पेशी दी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि सभी अदालतों में पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए और उचित कार्रवाई की जाए।
प्रत्युत्तर पक्ष की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी ने कहा कि यह याचिका महामारी की पृष्ठभूमि में दायर की गई थी और अब बहुत समय बीत चुका है। उन्होंने कहा कि यह मामला अब प्रशासनिक पक्ष से संबंधित है।
जस्टिस नाथ ने सहमति जताते हुए टिप्पणी की:
“यह कार्य न्यायिक पक्ष में नहीं बल्कि प्रशासनिक पक्ष में किया जा सकता है। आप क्यों नहीं एक बयान दे देते कि यह मामला प्रशासनिक पक्ष से निपटाया जाएगा, और हम इसे बंद कर देंगे?”
जस्टिस मेहता ने यह भी सवाल किया कि क्या सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट रजिस्ट्रारों के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू कर सकता है:
“क्या हम हाईकोर्ट के रजिस्ट्रारों के खिलाफ अवमानना याचिकाएं लेंगे?”
अंत में कोर्ट ने निर्देश दिया कि यह मामला संबंधित हाईकोर्ट की ई-कमेटियों और अन्य प्रशासनिक निकायों द्वारा निपटाया जाए। साथ ही, याचिकाकर्ताओं को अनुमति दी गई कि वे समितियों के समक्ष अपनी सहायक सामग्री और सुझाव प्रस्तुत करें।
मामले का नाम: ऑल इंडिया एसोसिएशन ऑफ जुरिस्ट्स बनाम उत्तराखंड हाईकोर्ट
वृत याचिका संख्या: W.P.(C) No. 941/2021