सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय वायुसेना (IAF) के उस फैसले पर सवाल उठाया है, जिसमें सौतेली मां को फैमिली पेंशन का लाभ देने से मना किया गया था। कोर्ट ने पेंशन नियमों में "मां" की परिभाषा को अधिक संवेदनशील और समावेशी बनाने की आवश्यकता बताई।
यह मामला जयश्री वाई. जोगी से जुड़ा है, जिन्होंने अपनी सौतेले बेटे को उसकी जैविक मां की मौत के बाद 6 साल की उम्र से पाला-पोसा। वर्ष 2008 में एल्यूमिनियम फॉस्फाइड जहर के कारण उसकी मौत हो गई। इसके बाद स्पेशल और ऑर्डिनरी फैमिली पेंशन के दावे को यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि वह उसकी जैविक या कानूनी रूप से गोद ली हुई मां नहीं हैं, और परिवार की आय रक्षा मंत्रालय की तय सीमा से अधिक है।
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जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्जल भुइयाँ और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने इस कठोर परिभाषा की आलोचना करते हुए कहा कि कल्याणकारी कानूनों में आधुनिक पारिवारिक संरचना का प्रतिबिंब होना चाहिए।
"सिर्फ इसलिए कि वह जैविक मां नहीं हैं, क्या उन्हें बिना किसी सहारे के छोड़ दिया जाए, जबकि उन्होंने अपना जीवन बच्चे की परवरिश में लगा दिया?" कोर्ट ने टिप्पणी की।
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जस्टिस सूर्यकांत ने पूछा कि अगर जैविक मां ने बच्चे को छोड़ दिया और उसकी देखभाल सौतेली मां ने की, तो क्या लाभ अनुपस्थित मां को मिलना चाहिए? उन्होंने कहा, "'मां' को स्थिर परिभाषा क्यों दी जानी चाहिए?" जस्टिस भुइयाँ ने भी कहा, "[मां] का जैविक होना जरूरी नहीं है।"
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि पेंशन प्रावधानों की व्याख्या सामाजिक और उद्देश्यपूर्ण दृष्टिकोण से होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि IAF के नियम "मां के बिना बच्चे" को वह माना है, जिसके पास मां या सौतेली मां न हो।
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IAF के वकील ने कहा कि नियम स्पष्ट हैं और चुनौती नहीं दी गई है, परिभाषा बदलने के लिए विधायी संशोधन जरूरी है।
आर्म्ड फोर्सेस ट्रिब्यूनल ने 2021 में IAF के रुख को बरकरार रखा था। अब सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां संकेत देती हैं कि गैर-जैविक अभिभावकों को मान्यता देने में नीति बदलाव संभव है।
मामला अब 18 सितंबर को सुना जाएगा।
केस का शीर्षक: JAYASHREE Y JOGI Versus UNION OF INDIA AND ORS.
डायरी संख्या: 53874-2023