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राजस्थान हाईकोर्ट ने नाबालिग की गर्भावस्था जारी रखने के अधिकार को माना, गर्भपात की अभिभावकों की याचिका खारिज

Shivam Y.

राजस्थान हाईकोर्ट ने 17 वर्षीय नाबालिग की गर्भावस्था समाप्त करने की याचिका खारिज की, अनुच्छेद 21 के तहत मातृत्व चुनने के उसके अधिकार को माना।

राजस्थान हाईकोर्ट ने नाबालिग की गर्भावस्था जारी रखने के अधिकार को माना, गर्भपात की अभिभावकों की याचिका खारिज

राजस्थान हाईकोर्ट, जयपुर बेंच ने 17 वर्षीय नाबालिग की गर्भावस्था समाप्त करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया और उसके भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रजनन संबंधी निर्णय लेने के अधिकार को मान्यता दी। न्यायमूर्ति अनूप कुमार धंड ने यह आदेश उस याचिका पर सुनाते हुए दिया, जो पीड़िता के पिता ने गर्भपात की अनुमति के लिए दायर की थी। यह गर्भधारण कथित बलात्कार के परिणामस्वरूप हुआ था।

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अदालत ने माना कि बच्चे का जीवन गर्भाधान के क्षण से शुरू होता है और इसे हर चरण में संरक्षित किया जाना चाहिए। कानून यह मान्यता देता है कि महिला को गर्भ जारी रखने या समाप्त करने का अधिकार है, और किसी भी परिस्थिति में उसे उसकी इच्छा के विरुद्ध गर्भपात करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। फैसले में कहा गया कि मां और पूर्ण विकसित भ्रूण दोनों को अनुच्छेद 21 के तहत जीवन का अधिकार प्राप्त है।

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चिकित्सा बोर्ड ने पुष्टि की कि पीड़िता 22 सप्ताह और 4 दिन की गर्भवती है, पूरी तरह स्वस्थ है और कोई जटिलता नहीं है। चिकित्सा गर्भपात अधिनियम के तहत 24 सप्ताह से पहले गर्भपात कुछ शर्तों पर संभव है, लेकिन इस मामले में पीड़िता ने स्पष्ट रूप से गर्भपात से इनकार कर दिया।

अपने बयान में नाबालिग ने कहा कि वह बच्चे को जन्म देना चाहती है और 18 वर्ष की आयु तक कानपुर के बाल कल्याण समिति में रहना चाहती है। उसने यह भी आरोप लगाया कि उसके माता-पिता का व्यवहार उसके साथ दुर्व्यवहारपूर्ण रहा है और वह घर से दूर रहना चाहती है। अदालत ने उसकी परिपक्वता, परिणामों की समझ और गर्भावस्था की उन्नत अवस्था को ध्यान में रखा।

सुप्रीम कोर्ट के A (Mother of X) बनाम महाराष्ट्र राज्य और सुचिता श्रीवास्तव बनाम चंडीगढ़ प्रशासन जैसे फैसलों का हवाला देते हुए, अदालत ने कहा कि नाबालिग का निर्णय, यदि अभिभावक के निर्णय से अलग भी हो, तो उसे महत्व दिया जाना चाहिए। न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि जबरन गर्भपात कराना न केवल पीड़िता के जीवन के अधिकार का उल्लंघन होगा बल्कि गर्भ में पल रहे बच्चे के जन्म के अधिकार का भी हनन होगा।

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अदालत ने पीड़िता की भलाई सुनिश्चित करने के लिए विस्तृत निर्देश जारी किए:

  • राज्य, प्रसव से पहले और बाद में सभी चिकित्सकीय सुविधाएं उपलब्ध कराए।
  • देखभाल के लिए एक महिला नर्सिंग अटेंडेंट नियुक्त की जाए।
  • पीड़िता को बाल कल्याण समिति में वयस्क होने तक रहने की अनुमति दी जाए।
  • प्रसव, पोषण, शिक्षा और देखभाल का पूरा खर्च राज्य उठाए।
  • पीड़िता और बच्चे की गोपनीयता हर स्तर पर बनाए रखी जाए।
  • अदालत को त्रैमासिक रिपोर्ट सौंपी जाए, जिसमें यह पुष्टि हो कि उचित देखभाल मिल रही है।

याचिका को इन निर्देशों के साथ निस्तारित किया गया, जिससे यह स्पष्ट संदेश गया कि प्रजनन संबंधी निर्णय, चाहे नाबालिग का ही क्यों न हो, संविधान के तहत एक व्यक्तिगत और संरक्षित अधिकार है।

केस का शीर्षक:- पीड़ित बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य

केस संख्या:- S.B. Civil Writ Petition No. 11124/2025

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