बॉम्बे हाईकोर्ट की अदालत में बुधवार को माहौल कुछ गंभीर था। न्यायिक सेवा परीक्षा से जुड़े मामलों में अक्सर ऐसा ही होता है। सिविल जज (जूनियर डिवीजन) और न्यायिक मजिस्ट्रेट परीक्षा के कुछ अभ्यर्थी, जो चयन सूची से थोड़ा पीछे रह गए थे, अपने अंकों और मूल्यांकन प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए अदालत पहुँचे थे। लंबी सुनवाई के बाद अदालत ने साफ संदेश दिया-हर असंतोष न्यायिक हस्तक्षेप का कारण नहीं बन सकता।
पृष्ठभूमि
मामला महाराष्ट्र न्यायिक सेवा परीक्षा 2022 से जुड़ा है। चार याचिकाकर्ता, जो प्रारंभिक परीक्षा और साक्षात्कार तक पहुँचे थे, अंतिम चयन सूची में जगह नहीं बना सके। उनका कहना था कि उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन ठीक तरीके से नहीं हुआ और अंक देने में एकरूपता नहीं दिखाई देती।
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कुछ याचिकाकर्ताओं ने सूचना के अधिकार के तहत अपनी उत्तर पुस्तिकाएँ माँगी थीं, लेकिन संबंधित अधिकारियों ने इसे अस्वीकार कर दिया। इसके बाद मामला हाईकोर्ट पहुँचा। याचिकाओं में न सिर्फ उत्तर पुस्तिकाएँ देखने की माँग थी, बल्कि पुनर्मूल्यांकन, मॉडरेशन और मेरिट लिस्ट दोबारा तैयार करने जैसी मांगें भी रखी गई थीं।
राज्य सरकार और महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग ने अदालत को बताया कि नियमों में पुनर्मूल्यांकन का कोई प्रावधान नहीं है और ऐसे आदेश पूरी परीक्षा प्रणाली को प्रभावित कर सकते हैं।
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अदालत की टिप्पणियाँ
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने साफ कहा कि रिट याचिका कोई “स्वचालित उपाय” नहीं है। अदालत ने टिप्पणी की, “मैंडेमस तभी जारी किया जा सकता है जब कोई स्पष्ट कानूनी अधिकार मौजूद हो।”
पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि सामान्य रूप से परीक्षाओं में पुनर्मूल्यांकन की अनुमति नहीं दी जा सकती। हालांकि, अदालत ने यह भी माना कि कुछ अपवादात्मक स्थितियाँ हो सकती हैं-जैसे जब सही उत्तर होने के बावजूद अंक न दिए गए हों।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि हर संदेह के आधार पर परीक्षा संस्था को कटघरे में नहीं खड़ा किया जा सकता। प्रतियोगी परीक्षाओं की विश्वसनीयता बनाए रखना उतना ही जरूरी है जितना कि उम्मीदवारों के अधिकारों की रक्षा करना।
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निर्णय
अंत में बॉम्बे हाईकोर्ट ने सभी चार याचिकाओं का निपटारा करते हुए आंशिक राहत दी। अदालत ने याचिकाकर्ताओं को उनकी उत्तर पुस्तिकाएँ देखने की अनुमति दी, लेकिन यह अनुमति बेहद सीमित दायरे में रहेगी। इसका उद्देश्य केवल यह जांचना होगा कि कहीं किसी निर्विवाद रूप से सही उत्तर पर अंक देने में चूक तो नहीं हुई।
हालाँकि, अदालत ने पुनर्मूल्यांकन, मॉडरेशन या मेरिट लिस्ट में बदलाव की सभी मांगों को स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि ऐसे आदेश नियमों के बाहर जाकर नहीं दिए जा सकते। इसी के साथ न्यायालय ने मामले को समाप्त कर दिया।
Case Title: Green Gene Enviro Protection & Anr. vs The State of Maharashtra & Ors.
Case No.: Writ Petition (Civil) – exact number as per record
Case Type: Writ Petition under Article 226 (Examination / Administrative Law)
Decision Date: December 2024