पंद्रह साल से चली आ रही एक लंबी वैवाहिक लड़ाई में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को रेखा मीनोचा और उनके पति अमित शाह मीनोचा का विवाह भंग कर दिया। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेष अधिकारों का उपयोग करते हुए इस कड़वे विवाद का अंत किया और पति को आदेश दिया कि वह रेखा और उनके नाबालिग पुत्र को ₹1 करोड़ स्थायी भरण-पोषण (पर्मानेंट एलिमनी) के रूप में अदा करे।
पृष्ठभूमि
रेखा और अमित का विवाह 5 अक्टूबर 2009 को हुआ था, लेकिन कुछ ही महीनों में रिश्तों में दरार आ गई। रेखा ने ससुराल पक्ष पर मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न का आरोप लगाया, जिसके चलते उन्हें अप्रैल 2010 में घर छोड़ना पड़ा। उसी वर्ष उन्होंने मायके में एक पुत्र को जन्म दिया।
वर्षों तक यह विवाद अदालतों में चलता रहा। रेखा ने पहले दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की अर्जी दी और बाद में महिलाओं के घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम (DV Act) के तहत भी न्याय मांगा। 2019 में ट्रायल कोर्ट ने अमित को आदेश दिया कि वह रेखा और उनके बेटे के लिए मासिक भरण-पोषण दे, साथ ही मानसिक पीड़ा और उत्पीड़न के लिए ₹4 लाख मुआवज़े के रूप में अदा करे।
दोनों पक्षों ने इन आदेशों को चुनौती दी। मामला अपीलीय अदालत और फिर राजस्थान हाई कोर्ट तक पहुंचा। 2023 में हाई कोर्ट ने अमित की याचिका आंशिक रूप से स्वीकार की ₹4 लाख का मुआवज़ा रद्द कर दिया और रेखा की भरण-पोषण याचिका खारिज कर दी। इसके बाद रेखा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने गौर किया कि यह जोड़ा अप्रैल 2010 से - यानी पंद्रह साल से अधिक - अलग रह रहा है और पुनर्मिलन की कोई संभावना नहीं है। सुप्रीम कोर्ट मध्यस्थता केंद्र में हुए सुलह के प्रयास भी असफल रहे।
पीठ ने कहा, “पक्षकारों के बीच संबंध अपरिवर्तनीय रूप से टूट चुके हैं।” न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि “अब इस विवाह को बनाए रखने का कोई सार्थक उद्देश्य नहीं रह गया है।”
इससे पहले अदालत ने पति को लंबित भरण-पोषण राशि चुकाने के आदेश दिए थे। बाद में अमित ने ₹1 करोड़ एकमुश्त भुगतान (वन-टाइम सेटलमेंट) के रूप में देने की पेशकश की। उनके वकील ने अदालत में कहा कि यह राशि सभी बकाया देयों और स्थायी भरण-पोषण के रूप में दी जाएगी।
पीठ ने दोनों पक्षों की आर्थिक स्थिति पर विचार करने के बाद इस प्रस्ताव को उचित माना। आदेश में कहा गया, “₹1,00,00,000 की राशि न्यायसंगत, उचित और वाजिब मानी जाती है।”
निर्णय
मामले का निपटारा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के तहत विवाह को भंग कर दिया और ₹1 करोड़ की राशि को सभी दावों के पूर्ण और अंतिम निपटारे के रूप में मान लिया। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि पिता स्वेच्छा से पुत्र की शिक्षा में योगदान कर सकते हैं, लेकिन अब कोई कानूनी दावा शेष नहीं रहेगा।
आदेश में कहा गया, “उत्तरदाता-पति यह राशि तीन माह के भीतर अदा करेगा,” और जैसे ही भुगतान का प्रमाण रजिस्ट्री को प्राप्त होगा, तलाक का डिक्री जारी कर दी जाएगी।
इस आदेश के साथ ही दोनों पक्षों के बीच चल रही सभी दीवानी और आपराधिक कार्यवाहियाँ समाप्त हो गईं, जिससे राजस्थान के सबसे लंबे वैवाहिक विवादों में से एक का अंत हो गया।
Case Title: Rekha Minocha v. Amit Shah Minocha & Others
Case Number: Criminal Appeal No. 1595 of 2025
Court: Supreme Court of India
Bench: Justice Vikram Nath and Justice Sandeep Mehta
Date of Judgment: October 29, 2025