आवारा कुत्तों की बढ़ती समस्या पर चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (सिवाय पश्चिम बंगाल और तेलंगाना के) के मुख्य सचिवों को तलब किया है। कारण-उन्होंने पशु जन्म नियंत्रण (ABC) नियमों के पालन पर कोई अनुपालन हलफनामा दाखिल नहीं किया। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संदीप मेहता और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया की पीठ ने इस पर सख्त नाराज़गी जताई और कहा कि यह मामला “व्यापक रूप से रिपोर्ट” हुआ था, फिर भी राज्य प्रशासन ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।
पृष्ठभूमि
यह मामला “In Re: City Hounded by Strays, Kids Pay the Price” शीर्षक से स्वतः संज्ञान (सुओ मोटू) के रूप में दर्ज किया गया था। यह तब शुरू हुआ जब एक मीडिया रिपोर्ट में कई शहरों में कुत्तों के बढ़ते काटने के मामलों पर चिंता जताई गई थी।
पहले, 11 अगस्त को न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला की अध्यक्षता वाली पीठ ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया था कि सभी आवारा कुत्तों को उठाकर शेल्टरों में भेजा जाए और अस्थायी रूप से उन्हें वापस न छोड़ा जाए। ये निर्देश बाद में नोएडा, गुरुग्राम और गाजियाबाद तक बढ़ाए गए। लेकिन आदेश की “कठोरता” को लेकर चिंता जताए जाने पर मामला एक बड़ी पीठ को सौंपा गया, जिसकी अध्यक्षता न्यायमूर्ति विक्रम नाथ कर रहे थे। इस तीन-न्यायाधीशों वाली पीठ ने 22 अगस्त को उन आदेशों पर रोक लगा दी।
तब अदालत ने स्पष्ट किया कि ABC नियमों के नियम 11(9) के तहत, जिन आवारा कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण हो चुका है, उन्हें उसी इलाके में वापस छोड़ा जाना चाहिए, जब तक कि वे रेबीज से संक्रमित या आक्रामक व्यवहार न दिखाएं। अदालत ने सार्वजनिक स्थानों पर आवारा कुत्तों को खिलाने पर भी प्रतिबंध लगाया और इसके लिए तय स्थान बनाने के निर्देश दिए। साथ ही, कोर्ट ने यह भी चेतावनी दी कि कोई भी व्यक्ति या संगठन नगर निगम के कर्मचारियों के काम में बाधा न डाले।
अदालत की टिप्पणियाँ
सोमवार की सुनवाई के दौरान पीठ राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के “बेपरवाह रवैये” से खासा नाराज़ दिखी। केवल पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और दिल्ली नगर निगम ने अपने अनुपालन रिपोर्ट दाखिल किए थे। बाकी राज्यों ने, अदालत के शब्दों में, “पूरी तरह चुप्पी साध रखी थी।”
“पीठ ने कहा, ‘सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को नोटिस जारी किए गए थे। आदेश अख़बारों और सोशल मीडिया में छपे थे। क्या आपके अधिकारी यह सब नहीं जानते? जब वे जानते हैं, तो कार्रवाई क्यों नहीं करते? ऐसी लापरवाही अब और बर्दाश्त नहीं होगी,’” न्यायमूर्ति विक्रम नाथ ने टिप्पणी की।
न्यायाधीशों ने दिल्ली सरकार द्वारा हलफनामा न दाखिल करने पर भी सवाल उठाया। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अर्चना पाठक दवे की ओर देखते हुए न्यायमूर्ति नाथ ने कहा, “दिल्ली ने अब तक हलफनामा क्यों नहीं दाखिल किया? मुख्य सचिव को स्पष्टीकरण देना होगा। अन्यथा लागत लगाई जा सकती है और जबरन कार्रवाई की जाएगी।”
एक समय ऐसा भी आया जब न्यायमूर्ति नाथ ने हल्के-फुल्के अंदाज़ में कहा, “सभी मुख्य सचिव 3 नवंबर को अदालत में उपस्थित रहें, नहीं तो हम कोर्ट की कार्यवाही ऑडिटोरियम में करेंगे।” अदालत में हंसी जरूर छिड़ी, मगर संदेश बिल्कुल साफ था-अब ढिलाई नहीं चलेगी।
निर्णय
सुनवाई समाप्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सभी दोषी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को अगले सोमवार, यानी 3 नवंबर को व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होने का निर्देश दिया। अदालत ने चेतावनी दी कि अनुपालन न करने पर “कठोर कदम” उठाए जाएंगे।
पीठ ने यह भी दोहराया कि ABC नियमों का पालन “वैकल्पिक” नहीं बल्कि “कानूनी दायित्व” है। सुनवाई यहीं समाप्त हुई, लेकिन संदेश गूंजता रहा-राज्य अब आवारा कुत्तों की समस्या पर आंखें मूंदकर नहीं बैठ सकते।
Case: In Re: City Hounded by Strays, Kids Pay the Price- SMW (C) No. 5/2025
Court: Supreme Court of India
Bench: Justice Vikram Nath, Justice Sandeep Mehta, and Justice N.V. Anjaria
Date of Hearing: October 27, 2025









