बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में विशेष भ्रष्टाचार निवारण अदालत द्वारा तलाठी को आरोप मुक्त करने के आदेश को बरकरार रखा है। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि आरोपी के खिलाफ अभियोजन के लिए जो मंजूरी दी गई थी, वह सक्षम प्राधिकरण द्वारा नहीं दी गई थी, इसलिए वह अमान्य है। हालांकि, कोर्ट ने राज्य सरकार को सक्षम प्राधिकारी से वैध स्वीकृति प्राप्त कर दोबारा मुकदमा चलाने की अनुमति दे दी।
यह मामला राज्य सरकार (भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो - ACB) द्वारा खामगांव की विशेष अदालत के 29 दिसंबर 2022 के उस आदेश को चुनौती देने से जुड़ा है, जिसमें तलाठी संजय महादेव इंगले को आरोपमुक्त कर दिया गया था। आरोपी इंगले को 9 जुलाई 2015 को बुलढाणा जिले के खामगांव में तलाठी पद पर नियुक्त किया गया था। शिकायतकर्ता के पिता ने खामगांव में कृषि भूमि खरीदी थी, और उस पर नामांतरण के लिए आरोपी से संपर्क किया था। आरोप है कि तलाठी ने नामांतरण दर्ज करने के लिए ₹2000 की रिश्वत की मांग की थी। शिकायतकर्ता ने ACB से संपर्क किया और जाल बिछाया गया, जिसमें तलाठी को रंगे हाथों पकड़ा गया।
ACB ने जांच पूरी कर विशेष अदालत में चार्जशीट दायर की। इसके लिए मंजूरी उपविभागीय अधिकारी (SDO) ने दी थी। अभियुक्त ने यह कहते हुए डिस्चार्ज की अर्जी दी कि SDO मंजूरी देने के लिए सक्षम प्राधिकारी नहीं है, क्योंकि उसकी नियुक्ति कलेक्टर द्वारा की गई थी। विशेष अदालत ने पहले अर्जी खारिज की थी, लेकिन हाईकोर्ट ने मामले की दोबारा सुनवाई का निर्देश दिया, जिसके बाद अदालत ने अभियुक्त को आरोपमुक्त कर दिया।
राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त लोक अभियोजक श्री एम. जे. खान ने तर्क दिया कि आरोप तय हो जाने के बाद डिस्चार्ज की अर्जी मान्य नहीं होती और विशेष अदालत ने नंजप्पा बनाम कर्नाटका राज्य (2015) के फैसले की गलत व्याख्या की है। उन्होंने कहा कि वैध मंजूरी की वैधता का परीक्षण ट्रायल के दौरान ही किया जाना चाहिए।
वहीं, अभियुक्त के वकील ने दलील दी कि PC एक्ट की धारा 19 के तहत अभियोजन की पूर्व मंजूरी आवश्यक है और यह केवल वही प्राधिकारी दे सकता है जो संबंधित कर्मचारी को सेवा से हटा सकता हो। उन्होंने नंजप्पा बनाम कर्नाटका और रतीलाल भांजी मिथानी बनाम महाराष्ट्र राज्य के फैसलों पर भरोसा जताते हुए कहा कि बिना वैध मंजूरी के ट्रायल शून्य माना जाता है।
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न्यायमूर्ति उर्मिला जोशी-फाल्के ने 25 जुलाई 2025 को निर्णय सुनाते हुए कहा:
PC एक्ट की धारा 19(1) के अनुसार, सक्षम प्राधिकारी की पूर्व मंजूरी के बिना किसी लोक सेवक के विरुद्ध अदालत अभियोग संज्ञान नहीं ले सकती।
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि
वैध मंजूरी की अनुपस्थिति से पूरा ट्रायल विधिक रूप से अमान्य हो जाता है। हालांकि, नंजप्पा मामले के अनुसार, वैध मंजूरी मिलने के बाद नए सिरे से मुकदमा चलाया जा सकता है।
अदालत ने इस बात पर चिंता जताई कि सार्वजनिक सेवकों पर लगे भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों को तकनीकी आधार पर खारिज करना समाज में गलत संदेश देगा।
ऐसे मामलों में कानून की प्रक्रिया का पालन करते हुए राज्य को वैध मंजूरी लेकर पुनः मुकदमा चलाने का पूरा अधिकार है, न्यायालय ने कहा।
कोर्ट का आदेश:
- विशेष न्यायाधीश द्वारा पारित 29.12.2022 का डिस्चार्ज आदेश बरकरार रखा गया।
- राज्य सरकार को सक्षम प्राधिकारी से वैध मंजूरी प्राप्त कर पुनः मुकदमा चलाने की छूट दी गई।
- सभी पक्षों को वहीं स्थिति में लौटाया गया जहाँ से वे वैध मंजूरी मिलने के बाद फिर से कानूनी कार्यवाही शुरू कर सकते हैं।