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जब आपराधिक मामला लंबित हो तो पासपोर्ट के लिए 'अनापत्ति प्रमाण पत्र' केवल संबंधित आपराधिक अदालत ही दे सकती है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Vivek G.

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने कहा कि आपराधिक कार्यवाही लंबित होने की स्थिति में पासपोर्ट जारी करने के लिए 'अनापत्ति प्रमाण पत्र' (NOC) केवल संबंधित अदालत द्वारा दिया जा सकता है। यह है पूरा कानूनी विश्लेषण।

जब आपराधिक मामला लंबित हो तो पासपोर्ट के लिए 'अनापत्ति प्रमाण पत्र' केवल संबंधित आपराधिक अदालत ही दे सकती है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

हाल ही में जम्मू और कश्मीर एवं लद्दाख हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यदि किसी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही लंबित है, तो उसका पासपोर्ट केवल उसी स्थिति में जारी या नवीनीकृत किया जा सकता है जब संबंधित आपराधिक अदालत द्वारा 'अनापत्ति प्रमाण पत्र' (NOC) दिया गया हो। यह फैसला अब्दुल हमीद द्वारा दायर एक याचिका पर आया, जिनका पासपोर्ट नवीनीकरण एक नकारात्मक पुलिस रिपोर्ट के आधार पर खारिज कर दिया गया था।

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मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता अब्दुल हमीद के पास एक भारतीय पासपोर्ट (संख्या Z2758821) था, जो 03.12.2014 को जारी हुआ था और 02.12.2024 तक वैध था। उन्होंने 29.10.2024 को उसका नवीनीकरण कराया। लेकिन 12.12.2024 को उन्हें पासपोर्ट कार्यालय (प्रतिवादी संख्या 2) से एक सूचना प्राप्त हुई, जिसमें कहा गया कि पुलिस की नकारात्मक सत्यापन रिपोर्ट के अनुसार वे FIR संख्या 5/2021 में शामिल हैं।

यह FIR भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) में दर्ज की गई थी, जिसमें याचिकाकर्ता पर जम्मू-कश्मीर भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 5(1)(d), 5(2) और रणबीर दंड संहिता की धारा 120-बी के तहत आरोप लगाए गए थे। मामला अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निरोधक मामले), जम्मू की अदालत में लंबित था।

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हालाँकि याचिकाकर्ता ने संबंधित अधिकारियों को स्पष्टिकरण देते हुए अदालत में लंबित WP(C) No. 587/2021 और CRM(M) No. 928/2024 की जानकारी दी थी, फिर भी पासपोर्ट का नवीनीकरण अस्वीकार कर दिया गया। इसके चलते उन्होंने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

याचिकाकर्ता ने 26.12.2024 को जारी अस्वीकृति पत्र को निम्नलिखित आधारों पर चुनौती दी:

  • यह निर्णय मनमाना, अवैध और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।
  • उन्हें अपनी बात रखने का अवसर नहीं दिया गया।
  • विदेश यात्रा का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, जिसे केवल विधि द्वारा ही रोका जा सकता है।

न्यायमूर्ति संजय धार ने यह दोहराया कि विदेश यात्रा का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और इसका उल्लेख सुप्रीम कोर्ट के फैसले मेनका गांधी बनाम भारत सरकार (AIR 1978 SC 597) में किया गया है।

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“किसी भारतीय नागरिक का पासपोर्ट कानूनी प्रक्रिया अपनाए बिना रोका या अस्वीकार नहीं किया जा सकता।”

इसके बाद उन्होंने संबंधित विधिक प्रावधानों की चर्चा की:

यह प्रावधान यह अधिकार देता है कि यदि किसी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही लंबित है, तो पासपोर्ट जारी करने से इंकार किया जा सकता है।

लेकिन न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण अपवाद को उद्धृत किया:

यह अधिसूचना केंद्र सरकार को यह अधिकार देती है कि वह आपराधिक मामलों में फंसे व्यक्तियों को धारा 6(2)(f) के प्रावधानों से छूट दे सकती है, यदि वे अदालत से विदेश यात्रा की अनुमति प्राप्त करें।

“अगर आपराधिक मामला लंबित है, फिर भी पासपोर्ट जारी किया जा सकता है यदि अदालत उसे विदेश जाने की अनुमति देती है।”

इस अधिसूचना में पासपोर्ट की वैधता और नवीनीकरण की शर्तें स्पष्ट रूप से दी गई हैं।

“यदि संबंधित आपराधिक अदालत याचिकाकर्ता को ‘अनापत्ति प्रमाण पत्र’ (NOC) प्रदान करती है, तो पासपोर्ट प्राधिकरण याचिकाकर्ता को पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेज़ जारी करने के लिए पूरी तरह अधिकृत है, भले ही आपराधिक मामला लंबित हो।”

अदालत ने यह भी कहा कि बिना सुनवाई के पासपोर्ट अस्वीकार करना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।

न्यायमूर्ति संजय धार ने याचिका का निस्तारण करते हुए याचिकाकर्ता को यह स्वतंत्रता दी कि वह संबंधित आपराधिक अदालत में आवेदन दायर कर पासपोर्ट जारी करने की अनुमति प्राप्त करें।

“यदि याचिकाकर्ता अदालत में आवेदन करता है, तो अदालत उस पर अपने गुण-दोष के आधार पर विचार करेगी, भले ही चार्जशीट को चुनौती देने वाली याचिकाओं में उच्च न्यायालय द्वारा स्थगन आदेश पारित किया गया हो।”

उपस्थिति:

एस.एस. अहमद, अधिवक्ता श्री जुलकेरनैन चौधरी, याचिकाकर्ता के अधिवक्ता

विशाल शर्मा, डीएसजीआई सुश्री पलवी शर्मा, अधिवक्ता श्री रविंदर गुप्ता, एएजी प्रतिवादियों के लिए

केस-शीर्षक: अब्दुल हामिद बनाम भारत संघ और अन्य, 2025

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