हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट, शिमला ने हाल ही में राज्य बनाम अनु बाला और अन्य मामले में विशेष न्यायाधीश, कांगड़ा के आदेश के खिलाफ राज्य द्वारा दायर की गई आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया। न्यायालय ने इसे गैर-संरक्षण योग्य घोषित करते हुए स्पष्ट किया कि राज्य ऐसे मामलों में "पीड़ित पक्ष" के रूप में कार्य नहीं कर सकता।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला अनु बाला द्वारा भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 175 के तहत दायर एक आवेदन से उत्पन्न हुआ। उन्होंने भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धाराओं 332(c), 126(2), 115(2), और 351(2) तथा SC & ST एक्ट के प्रावधानों के तहत दो पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। ट्रायल कोर्ट ने पुलिस स्टेशन रेहान के SHO को मामले की जांच का आदेश दिया, जिसके बाद राज्य ने इस आदेश को चुनौती देते हुए आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दायर की।
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न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की अध्यक्षता वाली हाई कोर्ट ने कहा कि अपराध राज्य के खिलाफ होते हैं, न कि केवल व्यक्तियों के। हालांकि, राज्य अपने कर्मचारियों को कानूनी जांच से बचाने के लिए पुनरीक्षण याचिका दायर नहीं कर सकता। न्यायालय ने कहा:
"अपराध हमेशा राज्य के खिलाफ होता है, न कि किसी विशेष व्यक्ति के। राज्य सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करता है, लेकिन वह अपने कर्मचारियों को कानूनी जांच से नहीं बचा सकता।"
राज्य ने 1971 के एक अधिसूचना का हवाला दिया, जो सरकारी अधिकारियों को कोर्ट में प्रतिनिधित्व करने की अनुमति देती है। हालांकि, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह प्रावधान इस सिद्धांत को नहीं बदलता कि राज्य अपने कर्मचारियों के खिलाफ जांच में हस्तक्षेप नहीं कर सकता, जब तक कि वे कानूनी सहायता न मांगें या स्वयं का बचाव करने में असमर्थ न हों।
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प्रमुख कानूनी सिद्धांत
कानून के समक्ष समानता: न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 14 का हवाला देते हुए जोर दिया कि राज्य कानूनी मामलों में सरकारी कर्मचारियों और आम नागरिकों के बीच भेदभाव नहीं कर सकता।
राज्य की भूमिका: हालांकि राज्य अपराधों के खिलाफ कार्रवाई करता है, लेकिन वह अपने कर्मचारियों के खिलाफ जांच का विरोध नहीं कर सकता, जब तक कि कोई विशेष कानूनी अपवाद लागू न हो।
कानूनी सहायता: न्यायालय ने कहा कि आरोपी अधिकारी मुफ्त कानूनी सहायता मांग सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया, जिससे राज्य का हस्तक्षेप अनुचित था।
हाई कोर्ट ने पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए ट्रायल कोर्ट के जांच आदेश को बरकरार रखा। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि आरोपी अधिकारी अभी भी स्वतंत्र रूप से आदेश को चुनौती दे सकते हैं।
केस का शीर्षक: हिमाचल प्रदेश राज्य बनाम अनु बाला एवं अन्य
केस संख्या: Cr. Revision No. 148 of 2025