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कर्नाटक हाईकोर्ट: मामूली अपराध में सजा नौकरी से वंचित करने का आधार नहीं

Prince V.

कर्नाटक हाईकोर्ट ने उस उम्मीदवार को राहत दी जिसकी पेऑन की नियुक्ति मामूली अपराध में सजा के कारण रद्द कर दी गई थी। कोर्ट ने कहा, केवल ऐसी सजा नौकरी से इनकार करने का पर्याप्त आधार नहीं हो सकती।

कर्नाटक हाईकोर्ट: मामूली अपराध में सजा नौकरी से वंचित करने का आधार नहीं

कर्नाटक हाईकोर्ट ने कोलार जिले के न्याय विभाग में पेऑन पद पर चयनित एक व्यक्ति की नियुक्ति रद्द करने के आदेश को रद्द कर दिया है। अदालत ने साफ कहा कि अगर अपराध मामूली है और उसमें नैतिक पतन (moral turpitude) शामिल नहीं है, तो केवल सजा के आधार पर सरकारी नौकरी से वंचित नहीं किया जा सकता।

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मुख्य न्यायाधीश विभु बाखरू और न्यायमूर्ति सी.एम. जोशी की खंडपीठ ने कोलार के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी और प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया। यह अपील उस एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती देती थी, जो 10 जनवरी 2025 को प्रत्याशी मल्लप्पा बसप्पा सज्जन की याचिका पर दिया गया था।

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कोर्ट ने कहा, "हम एकल न्यायाधीश की इस राय से सहमत हैं कि मामूली अपराध में सजा नियुक्ति रद्द करने का आधार नहीं हो सकती।"

यह मामला 11 नवंबर 2011 को कोलार के सत्र न्यायालय द्वारा जारी अधिसूचना से जुड़ा है, जिसमें विभिन्न पदों पर भर्ती के लिए आवेदन मांगे गए थे, जिनमें पेऑन की 15 रिक्तियां भी शामिल थीं। मल्लप्पा ने निर्धारित समय पर आवेदन किया, नवंबर 2016 में उनका साक्षात्कार हुआ और उन्हें आरक्षित श्रेणी में चयनित किया गया। उनका जाति एवं आय प्रमाण पत्र सत्यापन के लिए भेजा गया और विजयपुरा के पुलिस अधीक्षक से पृष्ठभूमि की जांच करवाई गई।

पुलिस रिपोर्ट से पता चला कि मल्लप्पा को कर्नाटक पुलिस अधिनियम, 1963 की धारा 87 के तहत सार्वजनिक स्थल पर जुआ खेलने के आरोप में दोषी ठहराया गया था। उन्होंने 28 दिसंबर 2013 को मुद्देबिहाल के JMFC कोर्ट में ₹300 का जुर्माना अदा किया था।

इसके आधार पर उनकी नियुक्ति 20 सितंबर 2018 को रद्द कर दी गई। मल्लप्पा ने 2 नवंबर 2018 को एक आवेदन देकर कहा कि वह केवल जिज्ञासावश उस स्थान पर मौजूद थे, उन्होंने कोई जुआ नहीं खेला था। फिर भी, उनकी नियुक्ति रद्द ही रही, जिसके चलते उन्होंने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की।

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एकल न्यायाधीश ने याचिका स्वीकार कर ली और यह पाया कि धारा 87 के तहत किया गया अपराध न तो संज्ञेय (non-cognizable) है और न ही नैतिक पतन से जुड़ा है। यह भी स्पष्ट किया गया कि खुद जुआ अपराध नहीं है, केवल सार्वजनिक स्थानों पर जुआ खेलने को दंडनीय बनाया गया है।

कोर्ट ने यह भी नोट किया कि सजा आवेदन के बाद हुई थी, इसलिए मल्लप्पा ने आवेदन के समय कोई जानकारी नहीं छुपाई थी। खंडपीठ ने भी इस बात को स्वीकार किया।

कोर्ट ने कहा, "रिकॉर्ड में ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जिससे यह साबित हो कि नियुक्ति रद्द करने का कारण सजा छुपाना था।"

सरकारी पक्ष ने यह दलील दी कि कर्नाटक सिविल सेवा (सामान्य भर्ती) नियम, 1977 के नियम 10 के अनुसार उम्मीदवार का चरित्र अच्छा होना चाहिए। अदालत ने इसे केवल मामूली अपराध के आधार पर चरित्र को खराब मानने का कारण नहीं माना।

कोर्ट ने अवतार सिंह बनाम भारत संघ (2016) 8 SCC 471 और टी.एस. वासुदेवन नायर बनाम विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर जैसे निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि जब नियुक्ति साधारण पद जैसे पेऑन की हो, तो मानदंड उतने कठोर नहीं होने चाहिए जितने संवेदनशील पदों के लिए होते हैं।

कोर्ट ने कहा, अगर मामला तुच्छ है और दोषसिद्धि केवल नारेबाजी जैसी बातों पर आधारित हो, तो नियुक्ति देने वाला अधिकारी अपने विवेक से ऐसे तथ्यों को नजरअंदाज कर सकता है।

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कोर्ट ने यह भी दोहराया कि यदि कोई जानकारी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण नहीं है, तो उसे छुपाना नियुक्ति रद्द करने का कारण नहीं बनता।

खंडपीठ ने अंत में कहा, हम यह नहीं मानते कि 20.09.2018 का आदेश इस आधार पर टिक सकता है कि प्रत्याशी ने गलत जानकारी दी थी।

इस प्रकार, अपील खारिज कर दी गई और मल्लप्पा बसप्पा सज्जन की नियुक्ति को फिर से बहाल करने वाला एकल न्यायाधीश का आदेश बरकरार रखा गया।

मामला शीर्षक ():मुख्य प्रशासनिक अधिकारी एवं अन्य बनाम मल्लप्पा बसप्पा सज्जन

मामला संख्या:रिट अपील संख्या 860 / 2025

वकील पेशी:वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीरांहा — अधिवक्ता सुमना नागानंद की ओर से प्रस्तुत।
अधिवक्ता तुम्बीगी प्रभुगौड़ा बसवंतरायगौड़ा — प्रतिवादी संख्या 1 की ओर से उपस्थित।