सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 के खिलाफ हुए हिंसक प्रदर्शनों से जुड़ी एक याचिका में की गई आपत्तिजनक और अपुष्ट बातों पर कड़ी आपत्ति जताई। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने याचिकाकर्ता अधिवक्ता शशांक शेखर झा को बताया कि सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करते समय जिम्मेदारी और गरिमा बनाए रखना आवश्यक है।
"संस्थान की गरिमा और शालीनता हमेशा बनाए रखनी चाहिए... सोचिए कि याचिका में क्या बातें लिखनी हैं और क्या हटानी हैं। प्रचार पाने की कोशिश न करें। ठंडे दिमाग से सोचिए,"
— न्यायमूर्ति सूर्यकांत
कोर्ट ने इस बात पर चिंता जताई कि याचिका सिर्फ मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित थी और उसमें कोई सत्यापन नहीं किया गया था। जब विस्थापित लोगों के नाम पूछे गए, तो झा कोई जानकारी नहीं दे सके।
"आपने याचिका मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर दायर की है! आपने इसका सत्यापन कहां किया?"
— न्यायमूर्ति सूर्यकांत
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पीठ ने यह भी बताया कि याचिका में आपत्तिजनक भाषा और अपुष्ट आरोप लगाए गए हैं, और कुछ व्यक्तियों के नाम लिए गए हैं जिन्हें पक्षकार नहीं बनाया गया।
"आप उन व्यक्तियों के खिलाफ आरोप लगा रहे हैं जो हमारे सामने नहीं हैं। क्या हम ऐसे आरोपों को बिना उनकी सुनवाई के स्वीकार कर सकते हैं?"
— न्यायमूर्ति सूर्यकांत
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि चूंकि सुप्रीम कोर्ट रिकॉर्ड की अदालत है, इसलिए उसमें दाखिल हर दस्तावेज स्थायी होता है और उसमें शालीनता बनाए रखना आवश्यक है। उन्होंने याचिकाकर्ता को चेतावनी दी कि ऐसे मामलों को जिम्मेदारी से दायर किया जाना चाहिए, खासकर जब उनके पास केवल सात वर्षों का अनुभव है और उन्होंने कई तथ्यों का सत्यापन नहीं किया।
जब झा ने याचिका में संशोधन करने पर सहमति जताई, तब कोर्ट ने याचिका को वापस लेने की अनुमति दी और निर्देश दिया कि भविष्य में यथोचित और सटीक तथ्यों के साथ नई याचिका दायर की जाए।
"हां, उन लोगों को न्याय मिलना चाहिए जिनकी कोई आवाज़ नहीं है, लेकिन यह सही तरीके से किया जाना चाहिए। इस तरह नहीं,"
— न्यायमूर्ति सूर्यकांत
इसी प्रकार की एक अन्य याचिका, जो अधिवक्ता विशाल तिवारी ने दायर की थी, उसे भी वापस लेने की अनुमति दी गई। तिवारी ने कहा कि वह याचिका दायर होने के बाद दिए गए कुछ "उत्तेजक बयानों", जिनमें एक सांसद द्वारा सुप्रीम कोर्ट और भारत के प्रधान न्यायाधीश पर की गई टिप्पणी शामिल है, को रिकॉर्ड पर लाना चाहते हैं।
दोनों याचिकाओं में मुर्शिदाबाद हिंसा की जांच के लिए विशेष निकायों के गठन की मांग की गई थी — एक सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय न्यायिक जांच आयोग और एक विशेष जांच दल की मांग की गई थी। साथ ही, घृणा भाषणों पर कार्रवाई और राज्य सरकार से हिंसा पर रिपोर्ट की मांग की गई थी।
पृष्ठभूमि:
वक्फ संशोधन अधिनियम 8 अप्रैल 2025 को प्रभाव में आया। इसके बाद मुर्शिदाबाद में हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गए। इन झड़पों में कम से कम 3 लोगों की मौत हुई, कई घायल हुए और बड़ी संख्या में लोग विस्थापित हो गए। कई वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया, एक स्थानीय सांसद के घर पर हमला हुआ और एक पुलिस की जीप को भी जला दिया गया।
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स्थिति पर नियंत्रण के लिए प्रशासन ने धारा 144 लागू कर दी और इंटरनेट सेवाएं अस्थायी रूप से बंद कर दी गईं। इस हिंसा के संबंध में 274 लोगों को गिरफ्तार किया गया और 60 एफआईआर दर्ज की गईं। कलकत्ता हाईकोर्ट ने मुर्शिदाबाद जिले में केंद्रीय बलों की तैनाती का आदेश दिया, भड़काऊ भाषणों पर रोक लगाई और राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह हिंसा की जांच और विस्थापितों के पुनर्वास के लिए टीम गठित करे।
"जब मामला अदालत में है, तो इस तरह की घटनाएं नहीं होनी चाहिए,"
— प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना
यह घटनाक्रम वक्फ (संशोधन) अधिनियम की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के दौरान सामने आया।
मामलों के शीर्षक:
1. विशाल तिवारी बनाम भारत संघ व अन्य, डब्ल्यूपी (सी) संख्या 377/2025
2. शशांक शेखर झा बनाम पश्चिम बंगाल राज्य व अन्य, डायरी संख्या 20020-2025