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पुलिस द्वारा नकारात्मक रिपोर्ट दाखिल होने के बाद नामांकन पत्र में जानकारी देना आवश्यक नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट ने विधायक के खिलाफ चुनाव याचिका खारिज की

Shivam Y.

राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि जब पुलिस नकारात्मक रिपोर्ट दाखिल कर देती है, तब उम्मीदवार को ऐसी जानकारी नामांकन पत्र में देने की आवश्यकता नहीं होती। विधायक गणेशराज बंसल के खिलाफ चुनाव याचिका खारिज।

पुलिस द्वारा नकारात्मक रिपोर्ट दाखिल होने के बाद नामांकन पत्र में जानकारी देना आवश्यक नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट ने विधायक के खिलाफ चुनाव याचिका खारिज की

राजस्थान हाईकोर्ट ने हनुमानगढ़ विधायक गणेशराज बंसल के खिलाफ दाखिल चुनाव याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि जब किसी आपराधिक मामले में पुलिस नकारात्मक अंतिम रिपोर्ट दाखिल कर देती है, तो उम्मीदवार को ऐसे मामलों की जानकारी नामांकन पत्र में देने की आवश्यकता नहीं होती।

न्यायमूर्ति दिनेश मेहता ने अपने आदेश में कहा:

“जब पुलिस नकारात्मक अंतिम रिपोर्ट दाखिल कर देती है, तो नामांकन पत्र भरने वाले उम्मीदवार को उन मामलों की जानकारी देने की आवश्यकता नहीं होती।”

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कोर्ट ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता ऐसा कोई वैधानिक प्रावधान या मिसाल पेश नहीं कर सका जिससे यह सिद्ध हो कि पुलिस द्वारा क्लीन चिट देने के बाद भी ऐसे मामलों की जानकारी देना जरूरी है।

याचिकाकर्ता का आरोप था कि बंसल ने कुछ लंबित आपराधिक मामलों की जानकारी नहीं दी और उनके नामांकन पत्र पर स्टाम्प पेपर के पीछे उनके हस्ताक्षर नहीं थे। लेकिन कोर्ट ने कहा कि केवल अंतिम रिपोर्ट को संलग्न करना पर्याप्त नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी निर्वाचित प्रत्याशी को चुनौती देने के लिए चुनाव याचिका में ठोस और स्पष्ट तथ्यों की आवश्यकता होती है।

“चुनाव याचिका कोई विलासिता की मुकदमेबाज़ी नहीं है... अस्पष्ट आरोपों के आधार पर कोर्ट से जांच की अपेक्षा नहीं की जा सकती।”

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कोर्ट ने यह भी पाया कि याचिकाकर्ता ने एफआईआर नंबर, शिकायतकर्ताओं के नाम या पुलिस थानों जैसी आवश्यक जानकारी नहीं दी। इस जानकारी की अनुपस्थिति में याचिका जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 83 के तहत अधूरी मानी गई।

मामला अमित बनाम श्री गणेश राज बंसल एवं अन्य शीर्षक से दर्ज था और इसे दो आधारों पर चुनौती दी गई थी:

  1. याचिकाकर्ता ने गलती से "चुनाव संचालन नियम, 1967" का हवाला दिया जबकि सही नियम 1961 के थे।
  2. याचिका जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 81 और 83 के तहत आवश्यक सटीकता और स्पष्टता के मानकों को पूरा नहीं करती थी।

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हालांकि कोर्ट ने पहले बिंदु को सामान्य त्रुटि मानते हुए नजरअंदाज किया, लेकिन दूसरा बिंदु स्वीकार किया और याचिका को अस्पष्ट आरोपों के कारण अस्वीकार्य माना।

“याचिकाकर्ता ऐसा कोई वैधानिक प्रावधान या मिसाल प्रस्तुत नहीं कर सका जिससे यह सिद्ध हो कि पुलिस द्वारा क्लीन चिट दिए जाने के बाद भी जानकारी देना आवश्यक है।”

साथ ही, स्टाम्प पेपर के पीछे हस्ताक्षर न होने के मुद्दे को भी कोर्ट ने महत्वहीन बताया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उस पृष्ठ पर कोई जानकारी दर्ज नहीं की गई थी, इसलिए वह नामांकन पत्र का हिस्सा नहीं माना जा सकता।

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“प्रतिवादी नंबर 1 के हस्ताक्षर की अनुपस्थिति फॉर्म को अमान्य नहीं बनाती... क्योंकि उस पृष्ठ पर नामांकन फॉर्म का कोई भाग दर्ज नहीं है।”

कोर्ट ने करीम उद्दीन बर्बुहिया बनाम अमीनुल हक लश्कर एवं अन्य के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का उल्लेख करते हुए कहा कि चुनाव याचिका को विधिक आवश्यकताओं के अनुसार सटीक और स्पष्ट होना चाहिए, अन्यथा वह खारिज की जा सकती है।

केस का शीर्षक: अमित बनाम श्री गणेश राज बंसल एवं अन्य।

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