एक महत्वपूर्ण निर्णय में, जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि भूमि सुधार अधिनियम, 1976 की धारा 31 के तहत पूर्व स्वीकृति के बिना किसी भी कृषि भूमि का मौखिक हिबा कानूनी रूप से अमान्य है। अदालत ने कहा कि ऐसे हिबा पर आधारित म्युटेशन की दोबारा जांच की जानी चाहिए और उसे कानून के अनुसार संशोधित किया जाना चाहिए।
यह निर्णय साजा बेगम बनाम फाइनेंशियल कमिश्नर रेवेन्यू जम्मू-कश्मीर सरकार एवं अन्य मामले में आया, जहां याचिकाकर्ता ने उस रिट कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें वित्तीय आयुक्त के उस निर्णय को निरस्त किया गया था, जिसमें मौखिक हिबा के आधार पर किया गया म्युटेशन रद्द किया गया था।
न्यायमूर्ति संजीव कुमार और न्यायमूर्ति संजय परिहार की खंडपीठ ने रिट कोर्ट के निर्णय को पलटते हुए वित्तीय आयुक्त के आदेश को बहाल कर दिया। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि भूमि सुधार अधिनियम, भूमि स्थानांतरण अधिनियम, 1995 पर प्रधानता रखता है, विशेष रूप से धारा 42 के संदर्भ में, जो स्पष्ट करता है कि यदि कोई विसंगति हो तो पहले के कानून की कोई प्रभावशीलता नहीं रहेगी।
"बिना सक्षम प्राधिकारी की अनुमति के दिया गया हिबा वैध नहीं है। धारा 31 के तहत सरकार की पूर्व अनुमति लेना केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि अनिवार्यता है,"
— जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि मुस्लिम कानून या स्थानांतरण संपत्ति अधिनियम के तहत भले ही मौखिक हिबा प्रतिबंधित न हो, परंतु धारा 31 और नियम 60 की अनदेखी कर ऐसा कोई स्थानांतरण नहीं किया जा सकता। यह प्रावधान भूमि के पुनर्वितरण और कृषकों के अधिकारों की रक्षा के लिए बनाए गए हैं।
इसके साथ ही अदालत ने यह भी अस्वीकार किया कि पुनरीक्षण याचिका समयबद्ध नहीं थी। अदालत ने कहा कि कानून का उल्लंघन करने वाले भूमि हस्तांतरण को समय की सीमा वैध नहीं बना सकती।
"जब कोई स्थानांतरण कानूनन निषिद्ध हो, तो समयसीमा उसे वैध नहीं बना सकती। वित्तीय आयुक्त ने अपने पुनरीक्षणीय अधिकार क्षेत्र में सही कार्य किया,"
— जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
मामले की पृष्ठभूमि
1996 में, मस्त. मुगली ने मौखिक रूप से 22 कनाल और 13 मरला कृषि भूमि अपने पुत्र को हिबा कर दी थी। 2015 में उनकी मृत्यु के बाद, 2017 में भूमि का म्युटेशन सभी कानूनी वारिसों के नाम कर दिया गया। उनकी एक पुत्री, अपीलकर्ता ने, इस हिबा को फर्जी और गैरकानूनी बताते हुए चुनौती दी, यह दावा करते हुए कि उस समय भूमि का स्थानांतरण प्रतिबंधित था और स्टैंडिंग ऑर्डर 23-A का उल्लंघन हुआ।
फाइनेंशियल कमिश्नर ने 2022 में अपील स्वीकार की और म्युटेशन को निरस्त कर दिया। हालांकि, पुत्र ने इसे रिट कोर्ट में चुनौती दी, जिसने फाइनेंशियल कमिश्नर के आदेश को खारिज कर दिया। इसके बाद दायर पत्र पेटेंट अपील में हाईकोर्ट ने फिर से कमिश्नर के आदेश को बहाल किया और राजस्व अधिकारियों को म्युटेशन की दोबारा जांच करने का निर्देश दिया।
"राजस्व अधिकारियों को पक्षकारों को सुनकर विवादित म्युटेशन की दोबारा जांच करनी है और उसे नियम 60 के अनुसार दोबारा तय करना है,"
— जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
कानूनी प्रतिनिधित्व:
- एम. अमीन खान, याचिकाकर्ता के अधिवक्ता
- जाविद अहमद पर्रे, प्रतिवादियों के अधिवक्ता
केस-शीर्षक: साजा बेगम बनाम वित्तीय आयुक्त राजस्व जम्मू-कश्मीर सरकार एवं अन्य, 2025