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रंगदृष्टिहीन ड्राइवर को वापस नौकरी देने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश, TSRTC की सेवा समाप्ति रद्द

Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट ने TSRTC को निर्देश दिया कि वह मेडिकल आधार पर रिटायर किए गए रंगदृष्टिहीन ड्राइवर को वापस नियुक्त करे। कोर्ट ने पाया कि यह कार्रवाई 1979 के सेटलमेंट और दिव्यांग अधिकार कानून का उल्लंघन है।

रंगदृष्टिहीन ड्राइवर को वापस नौकरी देने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश, TSRTC की सेवा समाप्ति रद्द

सुप्रीम कोर्ट ने TSRTC को निर्देश दिया कि वह मेडिकल आधार पर रिटायर किए गए रंगदृष्टिहीन ड्राइवर को वापस नियुक्त करे। कोर्ट ने पाया कि यह कार्रवाई 1979 के सेटलमेंट और दिव्यांग अधिकार कानून का उल्लंघन है।

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केस का पृष्ठभूमि:

CH. जोसेफ को तेलंगाना राज्य सड़क परिवहन निगम (TSRTC) ने ड्राइवर के रूप में नियुक्त किया था। एक नियमित मेडिकल जांच के दौरान उन्हें रंगदृष्टिहीन घोषित किया गया और अयोग्य मानते हुए सेवा से रिटायर कर दिया गया। उन्होंने वैकल्पिक रोजगार मांगा लेकिन TSRTC ने आंतरिक नियमों का हवाला देकर इनकार कर दिया और उन्हें अतिरिक्त मौद्रिक लाभ देकर सेवा से मुक्त कर दिया।

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जोसेफ ने यह आदेश हाई कोर्ट में चुनौती दी, जहां सिंगल जज ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया। लेकिन निगम ने अपील की और डिवीजन बेंच ने सिंगल जज के फैसले को पलट दिया। इसके बाद जोसेफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।

“जहां कर्मचारी की गरिमा शुरू होती है, वहीं नियोक्ता का विवेक समाप्त होता है।”
— सुप्रीम कोर्ट, 1 अगस्त 2025

सर्वोच्च न्यायालय ने TSRTC की कार्रवाई को अनुचित और गैरकानूनी माना, इन आधारों पर:

  • वैकल्पिक नौकरी की कोई कोशिश नहीं की गई: निगम ने जोसेफ को कोई गैर-ड्राइविंग पद देने का प्रयास नहीं किया, जबकि उन्होंने श्रमिक जैसे पद के लिए अपनी सहमति दी थी।
  • 1979 का सेटलमेंट अब भी वैध: 1979 की समझौता ज्ञापन (MOS) की क्लॉज 14 स्पष्ट रूप से रंगदृष्टिहीन ड्राइवरों को वैकल्पिक रोजगार देने की बात करती है, जिसमें वेतन और सेवा सुरक्षा का उल्लेख है।

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  • आंतरिक सर्कुलर सेटलमेंट को ओवरराइड नहीं कर सकते: 2014 और 2015 में जारी सर्कुलर जिन्हें आधार बना कर वैकल्पिक रोजगार देने से इनकार किया गया, वे महज प्रशासनिक आदेश थे और कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं।
  • पिछले फैसलों का गलत उपयोग: हाई कोर्ट ने बी.एस. रेड्डी केस पर भरोसा किया, जो केवल 1995 अधिनियम के तहत कानूनी दिव्यांगता पर आधारित था और जोसेफ के केस जैसे सेटलमेंट-आधारित अधिकारों पर लागू नहीं होता।

“जोसेफ को आठ हफ्तों के भीतर उपयुक्त गैर-ड्राइविंग पद पर पहले जैसे वेतनमान के साथ नियुक्त किया जाए और 25% बकाया वेतन दिया जाए।”

सुप्रीम कोर्ट ने TSRTC को निर्देश दिया:

  • आठ सप्ताह के भीतर जोसेफ की पुनर्नियुक्ति करें।
  • 06.01.2016 को जो वेतनमान था, उसी के अनुसार नियुक्ति दी जाए।
  • नियुक्ति तक के लिए 25% बकाया वेतन, भत्ते और लाभ दिए जाएं।
  • पूरा अंतराल “निरंतर सेवा” के रूप में गिना जाए।

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यह फैसला बताता है कि:

  • औद्योगिक समझौते कानूनी रूप से बाध्यकारी होते हैं।
  • जो कर्मचारी सेवा में रहते हुए दिव्यांग हो जाते हैं, उन्हें समुचित समायोजन दिया जाना चाहिए।
  • नियोक्ताओं को संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत समानता और गरिमा का पालन करना अनिवार्य है।

मामले का शीर्षक: सी.एच. जोसेफ बनाम तेलंगाना राज्य सड़क परिवहन निगम एवं अन्य

निर्णय तिथि: 01 अगस्त 2025

अपील का प्रकार: सिविल अपील (विशेष अनुमति याचिका (सिविल) संख्या 36278/2017)

अपीलकर्ता: सी.एच. जोसेफ

प्रतिवादी: तेलंगाना राज्य सड़क परिवहन निगम (टीएसआरटीसी) एवं अन्य