भारत के सुप्रीम कोर्ट ने 2 अप्रैल 2025 को दिल्ली सरकार से यह सवाल किया कि क्या केवल इसलिए कि कुछ मजदूरों के बैंक खाते आधार से लिंक नहीं हैं, उन्हें भत्ते से वंचित किया जा सकता है, जबकि वे पात्र और सत्यापित हैं।
यह मामला एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ एवं अन्य शीर्षक वाली चल रही याचिका की सुनवाई के दौरान उठा, जो दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में प्रदूषण नियंत्रण से संबंधित है। इस पर न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुयान की पीठ ने सख्त सवाल उठाए।
"क्या कोई ऐसा कानून है जो कहता है कि बिना आधार लिंक के बैंक खाता संचालित नहीं किया जा सकता? ऐसा कौन सा कानून है?"
— न्यायमूर्ति अभय ओका ने सुनवाई के दौरान पूछा।
दिल्ली सरकार की ओर से पेश वकील ने कोर्ट में माना:
"ऐसा कोई कानून नहीं है।"
Read Also:- सरकार ने निजी संस्थाओं को आधार प्रमाणीकरण की अनुमति देते हुए 2025 के संशोधन नियम जारी किए
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि दिल्ली सरकार यह स्पष्ट करे कि क्या पात्र और सत्यापित मजदूरों को केवल इस आधार पर भुगतान से वंचित किया जा सकता है कि उनके खाते आधार से लिंक नहीं हैं। इस मुद्दे पर अगली सुनवाई में विचार किया जाएगा।
गौरतलब है कि 28 फरवरी 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी एनसीआर राज्यों को निर्देश दिया था कि GRAP के तहत निर्माण कार्यों पर लगी रोक से प्रभावित मजदूरों को मुआवजा दिया जाए।
"राज्यों को सुनिश्चित करना चाहिए कि यह मुआवजा लेबर सेस फंड से दिया जाए,"
कोर्ट ने अपने 24 नवंबर 2021 के आदेश को दोहराते हुए कहा था।
सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार ने पर्यावरण विभाग के विशेष सचिव के माध्यम से एक हलफनामा दाखिल किया। इसमें बताया गया कि:
- दिल्ली भवन और अन्य निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड (DBOCWW) ने 3 दिसंबर 2024 की बैठक में प्रत्येक पात्र श्रमिक को ₹8,000 की सहायता राशि देने का निर्णय लिया।
- अब तक बोर्ड ने 93,272 श्रमिकों को ₹74.61 करोड़ की राशि वितरित की है।
हालांकि, हलफनामे में यह भी स्पष्ट किया गया कि केवल आधार से लिंक बैंक खातों में भुगतान किया गया, जिससे 5,907 पात्र श्रमिकों को भुगतान नहीं मिल सका।
Read Also:- सुप्रीम कोर्ट का फैसला: गवाह के बयान के आधार पर बिना जिरह अतिरिक्त अभियुक्त को तलब किया जा सकता है
दिल्ली सरकार का कहना है कि उन श्रमिकों से संपर्क करने के लिए कई प्रयास किए गए:
- SMS और IVR कॉल्स के माध्यम से कई बार अनुरोध किया गया कि वे अपने बैंक खातों को आधार से लिंक करें।
- इसके बावजूद, 25 मार्च 2025 तक ये 5,907 श्रमिक भुगतान से वंचित रह गए।
सरकार ने बताया कि प्रभावित मजदूरों की पहचान के लिए निम्नलिखित कदम उठाए गए:
15 सरकारी विभागों और निर्माण एजेंसियों से जानकारी मांगी गई।
- 6 विभागों ने कहा कि उनके अंतर्गत कोई मजदूर प्रभावित नहीं हुआ।
- 9 विभागों को दोबारा संपर्क किया गया, लेकिन कोई नया जवाब नहीं मिला।
जिला श्रम अधिकारियों से पंजीकृत ठेकेदारों और संस्थानों के माध्यम से जानकारी इकट्ठा करने को कहा गया। इसके तहत 505 मजदूरों को सत्यापित कर भुगतान किया गया।
36 ट्रेड यूनियनों को पत्र भेजे गए।
- केवल 3 यूनियनों ने जवाब दिया, जिनमें 82 मजदूरों की जानकारी दी गई।
- इनमें से 14 मजदूर पात्र पाए गए, और उनका भुगतान 25 और 27 मार्च 2025 को किया गया।
Read Also:- सुप्रीम कोर्ट ने दो यूपी पत्रकारों को एफआईआर के खिलाफ वैकल्पिक कानूनी उपाय अपनाने की सलाह दी
सुप्रीम कोर्ट ने सेंटर फॉर होलिस्टिक डेवलपमेंट से कहा है कि वह दिल्ली सरकार के हलफनामे पर अपनी प्रतिक्रिया अगली सुनवाई में दाखिल करे। कोर्ट यह सुनिश्चित करना चाहता है कि किसी पात्र मजदूर को केवल तकनीकी कारणों से सहायता से वंचित न किया जाए।
"दिल्ली सरकार यह भी स्पष्ट करे कि क्या केवल आधार लिंक न होने पर सत्यापित श्रमिकों को भुगतान से रोका जा सकता है,"
कोर्ट के आदेश में कहा गया।
केस नंबर – वीपी(एस) 13029/1985
केस का शीर्षक – मक मेहता बनाम भारत संघ