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सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षित फैसलों में देरी पर जताई नाराज़गी: इलाहाबाद हाईकोर्ट मामला

Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट ने रवींद्र प्रताप शाही मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा फैसले में देरी पर नाराज़गी जताई और समय पर निर्णय देने के लिए सख्त दिशा-निर्देश दोहराए।

सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षित फैसलों में देरी पर जताई नाराज़गी: इलाहाबाद हाईकोर्ट मामला

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में उन मामलों पर गंभीर टिप्पणी की है, जिनमें सुनवाई पूरी होने के बाद भी लंबे समय तक फैसले सुनाए नहीं जाते। यह मामला रवींद्र प्रताप शाही बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य से संबंधित है, जो इलाहाबाद हाईकोर्ट के अंतरिम आदेशों के खिलाफ दायर आपराधिक अपीलों से जुड़ा था।

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अदालत ने कहा कि दिसंबर 2021 में सुनवाई पूरी होने के बावजूद हाईकोर्ट ने वर्षों तक फैसला नहीं सुनाया। इस देरी के कारण अपीलकर्ता को सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाना पड़ा।

मामले की पृष्ठभूमि

  • यह आपराधिक अपील, प्रतिवादी संख्या 2 द्वारा, 2008 से इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित है।
  • सुनवाई पूरी होने के बाद मामला 24 दिसंबर 2021 को निर्णय के लिए सुरक्षित रखा गया था, लेकिन कोई फैसला सुनाया नहीं गया।
  • अपीलकर्ता ने कई बार शीघ्र निर्णय की मांग की, परंतु मामला बार-बार टलता रहा।
  • सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही हाईकोर्ट को तीन महीने में निपटारा करने का निर्देश दिया था, लेकिन देरी जारी रही।

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न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा ने फैसला सुनाते हुए इस स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की। अदालत ने कहा:

“यह अत्यंत चौंकाने वाला और आश्चर्यजनक है कि अपील की सुनवाई पूरी होने के लगभग एक वर्ष बाद भी निर्णय नहीं सुनाया गया। ऐसी देरी से जनता का न्याय व्यवस्था पर विश्वास डगमगाता है।”

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह कोई अकेला मामला नहीं है, बल्कि कई हाईकोर्ट्स में ऐसे ही हालात सामने आ रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने फैसले अनिल राय बनाम बिहार राज्य (2001) 7 SCC 318 का उल्लेख किया, जिसमें समय पर निर्णय सुनाने के स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए गए थे। अदालत ने दोहराया कि:

  • निर्णय अनावश्यक देरी के बिना सुनाया जाना चाहिए।
  • अगर तीन महीने में फैसला नहीं आता, तो मामला मुख्य न्यायाधीश के पास रखा जाए।
  • अगर छह महीने में भी फैसला नहीं आता, तो मामला किसी और पीठ को पुनः सुनवाई के लिए सौंपा जाए।

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अदालत ने केवल आदेश सुनाने और कारणयुक्त फैसला न देने की प्रथा की भी निंदा की, यह कहते हुए कि इससे प्रभावित पक्ष आगे न्याय पाने के अधिकार से वंचित हो जाता है।

सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिए कि:

  1. सभी हाईकोर्ट्स के रजिस्ट्रार जनरल उन मामलों की मासिक सूची तैयार करें, जिनमें निर्णय सुरक्षित रखा गया है लेकिन सुनाया नहीं गया।
  2. यदि तीन महीने में फैसला नहीं आता, तो मामला मुख्य न्यायाधीश के पास रखा जाए।
  3. यदि फिर भी निर्णय नहीं आता, तो मुख्य न्यायाधीश मामला किसी और पीठ को सौंप सकते हैं।
  4. ये सभी निर्देश अनिल राय मामले में पहले से दिए गए दिशा-निर्देशों के अतिरिक्त होंगे।

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अंततः, सुप्रीम कोर्ट ने अपीलों का निपटारा करते हुए आदेश दिया कि इस फैसले की प्रति सभी हाईकोर्ट्स को भेजी जाए, ताकि इसका पालन सुनिश्चित हो सके।

मामला: रवींद्र प्रताप शाही बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य

केस का प्रकार: आपराधिक अपील संख्या 3700-3701/2025 (विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक अपील) संख्या 4509-4510/2025 से उत्पन्न)

निर्णय की तिथि: 25 अगस्त 2025

अपीलकर्ता: रवींद्र प्रताप शाही

प्रतिवादी: उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य

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